नई दिल्ली (ईशा अरोड़ा): इस वक्त धरती के हालात हॉलीवुड फिल्मों की तरह बने हुए है। जहां एक मुसीबत के बाद लगातार दूसरी मुसीबत आती रहती है। एक ओर पूरी दुनिया कोरोना वायरस के चुंगल में फंसी हुई है, दूसरी तरफ नासा के मुताबिक एक Astroid तेजी से धरती की ओर बढ़ रहा है। इन सबके बीच एक नई मुसीबत धरती पर आ टूटी। आर्कटिक के ठीक ऊपर वैज्ञानिकों ने ओजोन परत बहुत बड़ा छेद होने की बात कही। अगर इस छेद का बढ़ना जारी रहा तो, धरती के तापमान में बेतहाशा बढ़ोतरी होने के साथ इंसानों को कई गंभीर बीमारियों से जूझना पड़ सकता है। मोतियाबिंद, त्वचा का कैंसर के मामलों में लगातार बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है।
जर्मन एयरोस्पेस सेंटर के वैज्ञानिकों ने कॉपरनिकस सेंटिनल 5-पी सेटेलाइट से मिलने वाले आंकड़ों के विश्लेषण के बाद पाया कि, आर्कटिक के ऊपर ओजोन की परत में असामान्य रूप से बड़ा छेद हुआ है। जिसकी वजह से पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र में भारी जलवायु परिवर्तन होने का अंदेशा है। इससे साफ है कि धरती के बढ़ते प्रदूषण के कारण उत्तरी ध्रुव के ऊपर ये अप्राकृतिक घटना घटी। ओजोन के घनत्व में कमी आने के साथ ही समताप मंडल के तापमान में भी अनियमितता देखी गयी। यूरोपियन स्पेस एजेंसी के मुताबिक पहले भी उत्तरी ध्रुव के ऊपर ओजोन की घनत्व में कमी और छेद देखे गए हैं। लेकिन मौजूदा छेद पहले की तुलना में काफी बड़ा है। दर्ज आंकड़ों के मुताबिक उत्तरी ध्रुव में ओजोन की घनत्व ये बहुत बड़ी गिरावट है। कॉपरनिकस सेंटिनल 5-पी सेटेलाइट ओजोन परत की निगरानी के लिए ट्रोपोमी जैसी उन्नत तकनीक का इस्तेमाल करता है।
धरती पर जिंदगी कायम रखने के लिए ओजोन की परत अहम किरदार निभाती है। स्ट्रेटोस्फियर में ये धरती के लिए कवच का काम करती है साथ ही सूरज से आने वाली अल्ट्रावायलेट किरणों को सोखकर पर्यावरण को संतुलित रखती है।