Shiv Sena की विपक्षी पार्टियों से अपील, सभी साथ आये बीजेपी को हारने के लिये

न्यूज डेस्क (यामिनी गजपति): चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के ‘अगुवाई का खानदानी अधिकार’ के बयान का ज़वाब देते हुए, शिवसेना के मुखपत्र सामना (Shiv Sena mouthpiece Saamana) ने आज (4 दिसंबर 2021) कहा कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) का नेता कौन होगा, ये तय करने से पहले विपक्ष को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ एकजुट होना चाहिए। बता दे कि हाल ही में प्रशांत किशोर (Election Strategist Prashant Kishor) ने ये कहकर कांग्रेस पर निशाना साधा कि उसका नेतृत्व किसी व्यक्ति का खनदानी अधिकार नहीं था और ये भी बताया कि पार्टी पिछले 10 वर्षों में 90 फीसदी से ज़्यादा चुनाव हार गयी है।

संपादकीय में विपक्षी दलों से सत्ता में आने के लिये कांग्रेस के पीछे नहीं जाने का आग्रह किया गया। सामना ने कहा, “कांग्रेस अभी भी कई राज्यों में है। गोवा और पूर्वोत्तर राज्यों (Goa and Northeastern State) में कांग्रेस नेता तृणमूल में शामिल हो गये हैं और आप के साथ भी ऐसा ही है। यूपीए जैसा गठबंधन बनाने से भाजपा को ही मजबूती मिलेगी। सोनिया गांधी और राहुल गांधी की अगुवाई करने और यूपीए को मजबूत करने के लिये आगे आना चाहिए”

शिवसेना ने भी लखीमपुर खीरी कांड (Lakhimpur Kheri scandal) के दौरान प्रियंका गांधी की कोशिशों को सराहा और कहा कि, "अगर प्रियंका लखीमपुर खीरी नहीं जातीं तो मामला खारिज हो जाता। उन्होंने बतौर विपक्षी नेता अपना मजबूत किरदार निभाया। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (United Progressive Alliance-UPA) की अगुवाई करने की खानदानी ताकत किसके पास है, ये बात बाद में आती है, पहले हमें लोगों को विकल्प देने की जरूरत है।”

मुंबई में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के प्रमुख शरद पवार के साथ एक बैठक के बाद ममता की "कोई यूपीए नहीं है" बयान जारी किया था, जिसके बाद कई विपक्षी नेताओं ने कड़ी प्रतिक्रिया ज़ाहिर की थी। मुंबई में कार्यक्रम में टीएमसी प्रमुख ने कहा था कि अगर सभी क्षेत्रीय दल (Regional Party) एक साथ आते हैं तो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को हराना बहुत आसान होगा।

तृणमूल कांग्रेस कभी यूपीए या संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन का हिस्सा थी। यूपीए कांग्रेस समेत कई दलों का गठबंधन था, जो को साल 2004 से 2014 तक 10 वर्षों तक केंद्र में सत्ता में रहा। इस साल की शुरुआत में हुए पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में टीएमसी की प्रचंड जीत के बाद ममता लगातार राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत विकल्प की वकालत कर रही हैं, और सीधे तौर पर कांग्रेस को टक्कर दे रही हैं।

मेघालय में कांग्रेस को एक बड़ा झटका लगा, जब उसके 17 में से 12 विधायक तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गये। जिसके बाद टीएमसी सूबे में मुख्य विपक्षी पार्टी बन गया। टीएमसी का दामन थामने वाले नये नवेले लोगों में बड़ा नाम मेघालय के पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा (Former Meghalaya Chief Minister Mukul Sangma) का है। हाल ही में कांग्रेस से निकलकर टीएमसी का दामन थामने वाले नेताओं की बाढ़ सी आ गयी है। इसी क्रम में बीते सितंबर में गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री लुइज़िन्हो फलेरियो (Former Goa Chief Minister Luizinho Faleiro) कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देने के बाद टीएमसी में शामिल हो गये। फलेरियो के बाद नौ अन्य कांग्रेसी नेताओं ने भी टीएमसी का दामन थामा।

असम के सिलचर से कांग्रेस सांसद और अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सुष्मिता देव (Former President of All India Mahila Congress Sushmita Dev) इस साल अगस्त में टीएमसी में शामिल हुई, उन्हें त्रिपुरा में टीएमसी के मामलों की देखरेख करने का कार्यभार सौंपा गया है। इसके साथ ही लुइज़िन्हो फलेरियो और सुष्मिता देव दोनों को टीएमसी में शामिल होने के बाद राज्यसभा सीटों से नवाज़ा गया।

कांग्रेस नेता कीर्ति आजाद (Congress leader Kirti Azad) और हरियाणा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर (Ashok Tanwar) भी हाल ही में टीएमसी में शामिल हुए हैं। तंवर कभी राहुल गांधी के बेहद करीबी हुआ थे।

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