नई दिल्ली (शौर्य यादव): किसान आंदोलन (Farmers Protest) अब धीरे-धीरे विवादों की ओर मुड़ता दिख रहा है। पॉलिटिकल हाइजैकिंग, नक्सली, खालिस्तानी और चरम वामपंथ (Extreme leftism) कनेक्शन के बाद अब किसान नेताओं में धीरे-धीरे फूट पड़ती दिख रही है। जिससे आंदोलन की धार खत्म हो सकती है। हाल ही में नोएडा सेक्टर-14 ए के दिल्ली-यूपी चिल्ला बॉर्डर पर जमे भारतीय किसान यूनियन (भानु) के नेताओं में फूट पड़ती दिख रही है। जिसके तहत यूनियन के नेशनल सेक्रेटरी महेंद्र सिंह चौरोली, राष्ट्रीय प्रवक्ता सतीश चौधरी और महिला किसान नेता ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है।
जिसके बाद इस बात के पुख़्ता कयास लगाये जा रहे है कि, इस्तीफा देने वाले नेताओं के समर्थक अब सड़के खाली कर सकते है। साथ ही आगे यूनियन के कई और नेता भी आपसी विवाद में पड़ सकते है। मौजूदा प्रकरण पुलिस और प्रशासन के लिए बड़ी राहत की बात है। इससे गतिरोध खत्म करने में काफी आसानी होगी। आंदोलन को तकरीबन 18 दिन बीतने को आये है। ऐसे में कई नेता अहम के चलते विवादों में पड़ रहे है। इस दरार का सीधा फायदा सरकार, प्रशासन और पुलिस को निश्चित रूप से मिलेगा।
सूत्रों के मुताबिक विवाद की वज़ह रास्ता खाली करने का मुद्दा बना। चिल्ला धरना-स्थल पर भाकियू-भानु का प्रदेश अध्यक्ष इस मामले पर अपनी अनदेखी होते देख, अपने समर्थकों के साथ बेरंग वापस लौट गये थे। मामले ने जैसे ही मीडिया में तूल पकड़ा तो डैमेज कंट्रोल (Damage control) करते हुए वे वापस धरना-स्थल पर आ डटे। कई किसान नेता इस घटना के समय को लेकर सवाल उठाकर रहे है। बीते शनिवार केंद्रीय मंत्रियों के साथ हुई बैठक के बाद ये प्रकरण सामने आया। किसानों का मानना है कि फूट की नींव केन्द्र सरकार के इशारे पर रखी गयी है ताकि आंदोलन को कमजोर किया जा सके।
इस अंदरूनी कलह के कारण इस्तीफा देने वाली तीनों नेता बीते रविवार को धरनास्थल से नदारद दिखे। चिल्ला बॉर्डर पर बैठे कई उग्र किसान प्रदर्शनकारी किसानों का मानना है कि रास्ते देने से आंदोलन अपनी तेजी खो बैठेगा। जिससे असहमत होकर तीन वरिष्ठ किसान नेताओं यूनियन से इस्तीफा दे दिया। भाकियू-भानु के राष्ट्रीय अध्यक्ष का मानना है कि इस फैसले से स्थानीय लोगों को राहत मिलेगी। इससे विरोध-प्रदर्शन की धार पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा।