Shri Radha Ashtami 2021: जब मनिहारिन पहना गयी राधारानी को चूड़ियां

Shri Radha Ashtami: बरसाने में एक सेठजी रहते थे। उनके कई कारोबार थे, तीन बेटे तीन बहुएँ थी। सब के सब आज्ञाकारी थे, लेकिन सेठजी के बेटी नहीं थी, यहीं अभाव उन्हें खलता था। ये चिंता संतों के दर्शन से कम हुई। संत बोले मन में जो अभाव हो उस पर भगवान का भाव स्थापित कर लो।

सुनो सेठ तुमकू मिल्यो बरसाने का वास,

यदि मानो राधे सुता काहे रहो उदास।

सेठ जी ने राधारानी (Radharani) का एक चित्र मँगवाया और अपने घर में लगाकर पुत्री भाव से रखते। रोज सुबह उठ कर राधे राधे कहते भोग लगाते और दुकान से लौटकर राधे राधे कहकर सोते।

तीन बहू बेटे हैं घर में, सुख सुविधा है पूरी,

संपति भरी भवन में रहती, नहीं कोई मजबूरी,

कृष्ण कृपा से जीवन पथ पे आती न कोई बाधा,

मैं हूँ पिता बहुत बड़भागी, बेटी है मेरी राधा।

एक दिन एक मनिहारिन चूड़ी पहनाने सेठ के अहाते में आयी और चूड़ी पहनने की गुहार लगायी। तीनों बहुयें बारी बारी से चूड़ी पहन कर चली गयीं। फिर एक हाथ और बढ़ा तो मनिहारिन ने सोचा कि कोई रिश्तेदार आया होगा उसने चूड़ी पहनायी और चली गयी।

सेठजी की दुकान पर पहुँच कर पैसे माँगे और कहा कि इस बार पैसे पहले से ज्यादा चाहिये। सेठजी बोले कि क्या चूड़ी मँहगी हो गयी है?

मनिहारिन बोली, नहीं सेठजी आज मैं चार लोगों को चूड़ी पहना कर आ रही हूँ।

सेठ जी ने कहा कि तीन बहुओं के अलावा चौथा कौन है? झूठ मत बोल, ये ले तीन का पैसा। मनिहारिन बेचारी तीन का पैसा लेकर चली गयी।

सेठजी ने घर पर पूछा कि चौथा कौन था जिसने चूड़ी पहनी हैं? बहुएँ बोली कि हम तीनों के अलावा तो कोई भी नहीं था।

रात को सोने से पहले सेठजी पुत्री राधारानी को स्मरण करके सो गये। नींद में राधा जी प्रगट हुईं, सेठजी बोले "बेटी बहुत उदास हो, क्या बात है?

बृषभानु दुलारी बोलीं,

"तनया बनायो तात, नात ना निभायो है..

चूड़ी पहनि लीनी मैं, जानि पितु गेह किंतु,

आप मनिहारिन को मोल ना चुकायो है।

तीन बहू याद किन्तु बेटी नहीं याद रही,

नैनन श्रीराधिका के नीर भरि आयो है।

कैसी भई दूरी कहो कौन मजबूरी हाय,

आज चार चूड़ी काज मोहि बिसरायो है???

सेठजी की नींद टूट गयी पर नीर नहीं टूटा रातभर रोते रहे। सबेरा हुआ स्नान ध्यान करके मनिहारिन के घर पहुँच गये। मनिहारिन देखकर चकित हुई। सेठ जी आंखों में आँसू लिये और बोले

धन धन भाग तेरो मनिहारी..

तोसे बड़भागी नहीं कोई, संत महंत पुजारी,

धन धन भाग तेरो मनिहारी..

"मैनें मानी सुता किन्तु निज नैनन नहीं निहारी,

चूड़ी पहन गयीं तेरे हाथन ते श्री बृषभानु दुलारी।

धन धन भाग तेरो मनिहारी..

बेटी की चूड़ी पहिराई लेहु, जाऊँ तेरी बलिहारी,

हाथ जोड़ बिनती करूँ, क्षमियो चूक हमारी।

"जुगल नयन जलते भरे मुख ते कहे न बोल,"

"मनिहारिन के पाँय पड़ि लगे चुकावन मोल।"

मनिहारिन सोचने लगी,

जब तोहि मिलो अमोल धन,

अब काहे माँगत मोल,

ऐ मन मेरे प्रेम से श्री राधे राधे बोल।

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