सिद्ध बाबा शीलनाथ (Siddha Baba Sheelnath) जयपुर के क्षत्रिय घराने से थे। साल 1839 में वे नाथ सम्प्रदाय (Nath sect) से जुड़ गये और दीक्षा प्राप्त की। दीक्षा प्राप्त करके उन्होंने उत्तराखंड के घने जंगल में घोर तप किया। कई सालों तक घोर तप करने के उपरान्त वे अफ़ग़ानिस्तान चले गये।
एक बार अफ़ग़ानिस्तान में वे अपनी धूनी रमाये बैठे थे तभी कुछ उपद्रवियों ने उन पर हमला कर दिया। बाबाजी जैसे ही अपनी धूनी से उठे, उपद्रवियों को तेज झटका लगा और वे एक दूसरे के ऊपर गिरकर घायल हो गये। काबुलवासी उनकी शक्तियों से भयभीत हो गये और उनसे क्षमा याचना करने लगे।
बाबा अफ़ग़ानिस्तान से तिब्बत और फिर कैलाश मानसरोवर होते हुए साल 1900 में उज्जैन पहुंचे जहां उन्होंने भर्तृहरि गुफा में ध्यान रमाया।
एक बार उज्जैन सिंहस्थ में गुर्जरों ने साधू-संतों को कम्बल बांटे। जब कम्बल बाबा को दिया गया तब उन्होंने उसे अपनी धूनी में डाल दिया, जिससे कम्बल जल गया। बाबा तो दिगंबर अवस्था में रहते थे। गुर्जरों ने इसे अपना तिरस्कार समझा तब बाबा ने अपना चिमटा धूनी में डाला और उससे पुनः कम्बल निकालकर गुर्जरों को वापस दे दिया। उस समय देवास के जज साहेब बलवंतराव बापूजी (Judge Saheb Balwantrao Bapuji) बिड़वई उन्हें देवास ले आये, जहां रानीबाग में उनके धूने की व्यवस्था कर दी गयी। तब मल्हारराव (Malhar Rao) भी उनके दर्शन के लिये आया करते थे ।
बाद में मल्हारराव ने मल्हार इलाके में उनके धूने और आसन की पक्की व्यवस्था कर उनसे वहां रहने का आग्रह किया। यहां बाबा 1901 से 1921 तक रहे। यहां धूने के पास एक बावड़ी है। बाबा प्रतिदिन बावड़ी के पास जाकर गायब हो जाते थे। ये जनश्रुति है कि वे वहां से हरिद्वार में गंगा स्नान करने जाते थे और स्नान करके पुनः बावड़ी के निकट प्रकट हो जाते थे। ये उनका प्रतिदिन का नियम था।
स्नान करके लौटकर वे धूना रमाते। उस समय इस इलाके में घना जंगल था और रात में शेर, चीते और दूसरे खतरनाक जानवर उनकी धूनी के पास आकर बैठ जाते। उनके साथ एक शेर रहने लगा जिसको वे रोजाना भोजन कराते थे।
देवास में समय व्यतीत करने के बाद वे ऋषिकेश चले गये। वहां चैत्र कृष्ण 14 गुरुवार संवत 1977 और सन् 1921 ई.के दिन प्रातः 5:55 बजे उन्होंने महासमाधि (Mahasamadhi) ले ली। कहते हैं कि यहीं पर उनके गुरु की भी समाधि थी।
देवास के निकट मल्हार इलाके में आज भी उनकी धूनी प्रज्वलित है। यहां उनकी खड़ाऊं और तख्त रखा है। महाराजश्री नाथ सम्प्रदाय से थे। नव नाथ की परम्परा में कई सिद्ध हुए। जहां-जहां नौ नाथों की धूनी जली वहाँ योगपीठ स्थापित हुए।
मल्हार धूनी पहुँचने का रास्ता
मध्यप्रदेश के इंदौर (Indore of Madhya Pradesh) इलाके से 35 कि.मी दूर देवास है। देवास (Dewas) से ऑटो से मल्हार धूनी जा सकते हैं। ये करीब 15 मिनट की दूरी पर है।