बीते गुरूवार को राहुल गांधी ने ट्विटर को लेकर ये आरोप लगाया कि ये अमेरिकी कंपनी पक्षपातपूर्ण है, ये भारत की राजनीतिक प्रक्रिया में दखल दे रही है तथा सरकार के कहे मुताबिक चल रही है। उन्होंने ये दावा भी किया कि ट्विटर की ओर से जो किया गया है वो भारत के लोकतांत्रिक ढांचे पर हमला है।
दरअसल ट्विटर ही नहीं बल्कि हर सोशल मीडिया कंपनी (Social Media Company) अमेरिकी हित को सबसे ऊपर रखती है और उसी के हिसाब से देश की राजनीतिक परिदृश्य में अपनी दखलंदाजी करती है।
कुछ साल पहले जब फेसबुक से जुड़े मामलों की जांच अमेरिकी कांग्रेस में की जा रही थी तो क्रिस्टोफर वायली जो एक डेटा साइंटिस्ट, साइकोलॉजिकल प्रोफाइलिंग के एक्सपर्ट ओर कैंब्रिज एनालिटिका (Cambridge Analytica) के रिसर्च हेड थे उन्होंने खुलासा किया था कि बड़े पैमाने पर अफ्रीका में उनकी कम्पनी ने सरकारों को अस्थिर करने का काम किया है।
उस वक़्त ट्विटर हैंडल (हाइंडसाइटफ़ाइल्स) ने कुछ ऐसे गोपनीय दस्तावेज़ों का ख़ुलासा किया था जिनमें बताया गया था कि ब्रिटिश कंपनी स्ट्रेटेजिक कम्यूनिकेशन लेबोरेटरीज़ (Strategic Communication Laboratories-SCL) ने अनेक देशों के चुनाव में दख़ल दिया था। कुख्यात कैंब्रिज़ एनालिटिका इसी ग्रुप की सहयोगी कंपनी थी। एनालिटिका में अमेरिकी धनिक रॉबर्ट मर्सर (Robert Mercer) का भी पैसा लगा था, जो लंबे समय से दक्षिणपंथी समूहों को वित्तीय मदद देते रहे हैं। एनालिटिका के जरिये मर्सर ने यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के अलग होने के अभियान ब्रेक्ज़िट और डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव अभियान में मदद की थी।
यानि इन सोशल मीडिया कम्पनियों के जरिये तीसरी दुनिया के देशो में ऐसे गुप्त संगठन जिनके पास डेटा को समझने और हासिल करने की ताकत होती है, अब चुनावों को ओर राजनीतिक प्रक्रिया प्रभावित कर रहे हैं।
अगर आप ध्यान से देखे तो साल 2014 के आम चुनाव के पहले बीजेपी और कांग्रेस के समर्थकों ने राहुल गांधी को ‘पप्पू’ तो नरेंद्र मोदी को ‘फेंकू’ के नाम से ट्रेंड कराया। ये सब फर्जी अकॉउंट (Fake Account) के जरिए किया जाता है, इन अकाउंट को मशीनों द्वारा बनाया और ऑपरेट किया जाता है। जिसे बॉट कहा जाता है। नेताओं के फॉलोअर्स की संख्या चौगुनी आठ गुनी करने में बॉट का महत्वपूर्ण योगदान होता है।