एजेंसियां/न्यूज डेस्क (देवागंना प्रजापति): Gilgit-Baltistan: हाल ही में सैकड़ों पुलिस वालों ने पाकिस्तान के कब्जे वाले गिलगित-बाल्टिस्तान (पीओजीबी) के गिलगित शहर में विधानसभा भवन को घेर लिया था और आधे घंटे से भी कम वक्त के भीतर इसकी घेराबंदी कर दी। पीओके के मीरपुर (Mirpur) के लेखक और मानवाधिकार कार्यकर्ता अमजद अयूब मिर्जा (Amjad Ayub Mirza) के मुताबिक जिस दिन पुलिस ने कोर्ट के फरमान पर विधानसभा भवन घेरने की मांग की, उसी दिन नया मुख्यमंत्री चुना जाना था। बता दे कि अमजद अयूब मिर्जा फिलहाल यूनाइटेड किंगडम में निर्वासन में रह रहे हैं।
आधे घंटे से भी कम समय में पुलिस ने विधानसभा भवन को घेर लिया साथ ही कर्मचारियों, विधानसभा सदस्यों और मौजूद पत्रकारों को जगह खाली करने के लिए मजबूर कर दिया और फिर पुलिस ने मेन गेट को सील कर दिया। इस बीच 4 जुलाई को PoGB की अपीलीय अदालत ने PoGB के मुख्यमंत्री की कानून की डिग्री को लेकर चल रहे एक मामले पर अपना फैसला सुनाया। फैसले में कहा गया कि कानून की डिग्री फर्जी थी और इसलिये पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (Tehreek-e-Insaf) के सदस्य और सीएम खालिद खुर्शीद (CM Khalid Khurshid) को सदन के सदस्य और उनके कार्यालय दोनों को अयोग्य ठहराया गया था।
11 अप्रैल को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) के प्रधान मंत्री तनवीर इलियास (Tanveer Ilyas) को राजधानी मुजफ्फराबाद (Muzaffarabad) में उच्च न्यायालय में पेशी के लिए बुलाया गया था। न्यायिक पीठ उनका इंतजार कर रही थी और जब वो कोर्ट में पहुंचे तो उन पर सार्वजनिक बैठक के दौरान बयान देने के लिये अदालत की अवमानना का आरोप लगाया गया। जिसमें उन्होनें कहा था कि, 15 मिलियन अमेरिकी डॉलर की सऊदी-वित्त पोषित शिक्षा परियोजना को उन्होनें मैनेज करते हुए सउदी से बचाया किया था। चूंकि मामला सुनवाई की प्रक्रिया से गुजर रहा था इसलिये इस पर कोर्ट का स्थगन आदेश था।
कोर्ट ने उनके बयानों के लिये उन्हें अयोग्य करार दिया, साथ ही सदन और प्रधान मंत्री कार्यालय से उनकी सदस्यता रद्द कर दी गयी। बाद में पाकिस्तान सरकार और सैन्य प्रतिष्ठान की ओर से हेरफेर, खरीद-फरोख्त और विधान सभा सदस्यों पर दबाव के जरिये चौधरी अनवर उल हक की अगुवाई में पीटीआई फॉरवर्ड ब्लॉक की नींव रखी गयी।
हक ने पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज (Pakistan Peoples Party and Pakistan Muslim League Nawaz) के कश्मीर चैप्टर के सहयोग से पीओके में नये गठबंधन की सरकार बनायी और खुद को प्रधान मंत्री बने। अब यही कहानी अब PoGB में दोहरायी जा रही है। पीटीआई से नाखुश नेताओं को शामिल करते हुए ‘हम ख्याल तंज़ीमों’ या ‘एक समान विचारधारा वाले गुट’ का गठन जावेद मनवा ने किया, जो कि पिछली सरकार में वित्त मंत्री थे।
मनवा (Javed Manwa) ने विधानसभा के कम से कम 10 सदस्यों का समर्थन होने का दावा किया है और कहा है कि- एक गठबंधन सरकार (पीओजीबी में) वक्त की जरूरत है।’ उनका दावा है कि महीनों तक वो पीटीआई की असेंबली के अन्य सदस्यों के साथ रायशुमारी कर रहे थे। उनका ये भी दावा है कि विधानसभा के और भी सदस्य उनके गुट में शामिल होंगे। फिलहाल इमरान खान की पीटीआई पीओजीबी में तीन गुटों में बंटी हुई है। एक गुट का नेतृत्व हाजी गुलबार खान (Haji Gulbar Khan) कर रहे हैं; दूसरे गुट की कमान जावेद मनवा के हाथ में है जबकि तीसरे गुट की रहनुमाई सीएम खालिद खुर्शीद ने की।
पीओके और पीओजीबी दोनों में न्यायिक तख्तापलट की व्यवस्था लागू की गयी है। PoGB के लिये नया मुख्यमंत्री अब 13 जुलाई को चुना जायेगा। इस बात के पुख्ता संकेत हैं कि पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज के पीओजीबी चैप्टर को नये मंत्रिमंडल में शामिल किया जायेगा और मनवा का समर्थन करने के लिये उन्हें रिश्वत के तौर पर मंत्रालयों की पेशकश की जायेगी।
PoJK और PoGB दोनों में राजनीतिक प्रक्रिया में इस्लामाबाद का सीधा दखल कोई नई बात नहीं है। हैरान करने वाली बात ये है कि जिस बेशर्म तरीके से संबंधित कब्जे वाले इलाकों के निर्वाचित मौजूदा अधिकारियों को न्यायिक तख्तापलट का इस्तेमाल करके उनके कार्यालयों से बर्खास्त कर दिया गया है।
तारीखें गवाह है कि पाकिस्तान में जो भी सरकार सत्ता में आती है, उन्हें खरीद-फरोख्त और विधान सभा पर दबाव डालने की कवायदें और रणनीति बनाने का अक्सर शौक रहा है। इस काम के लिये चुनावी हेरफेर में पाकिस्तानी सेना खासा मदद मुहैया करवाती है। राजनीतिक आजादी की कमी की वज़ह से हर चुनाव पीओके में विभिन्न सैन्य चौकियों के स्थानीय सैन्य कमांडरों के जनजातीय जुड़ाव और चापलूसी की बुनियाद पर पर लड़ा जाता रहा है।
जैसे-जैसे पाकिस्तान में आर्थिक संकट दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है, दोनों कब्जे वाले इलाकों की आबादी अपनी शिकायतों को दूर करने और अपनी मांगों को आगे बढ़ाने के लिये वैकल्पिक तरीकों की तलाश कर रही है इसलिये चाहे वो पेंशनभोगी संघ हों, सरकारी कर्मचारी हों, स्कूल शिक्षक और स्वास्थ्य कार्यकर्ता हों या नागरिक समाज सभी विरोध करने और धरना देने के लिये सड़कों पर उतर आये हैं।
पाकिस्तानी आवाम़ का गुस्सा दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है और ऐसा लगता है कि उन्होंने पीओके और पीओजीबी पर मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था से उम्मीद खो दी है। इस तरह के गुस्से के नतीज़ों को जानते हुए पाकिस्तानी सेना ने कथित तौर पर तहरीक ए लबैक पाकिस्तान को निर्देश दिया है कि इस तरह के प्रदर्शनों और जलूसों को धार्मिक रंग देकर कुचल दिया जाये। बता दे कि तहरीक ए लब्बैक कट्टर इस्लामी मान्यताओं को मानने वाला गुट है।
इस बीच टीएलपी ने 7 जुलाई को पीओके में रैलियों निकालने की योजना बनायी है। इसी क्रम में 11 जुलाई को एक और रैली होने वाली है, जो कि 30,000 आजाद कश्मीर स्कूल शिक्षक संगठन के परचम तले निकाली जायेगी। जिसका मकसद अपनी मांगों को उजागर करने के लिये मुजफ्फराबाद की ओर एक लंबा मार्च निकालना है। राजनीति के गालियारों के साथ-साथ आवाम़ की खुली सिविल नाफरमानी ने इलाकों को अस्थिरता के बादलों से ढ़क दिया है।