न्यूज डेस्क (देवेंद्र कुमार): समाजवादी पार्टी (SP- Samajwadi Party) ने हाल ही में अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले बीते रविवार (13 अगस्त 2023) को उत्तर प्रदेश राज्य कार्यकारिणी समिति (Uttar Pradesh State Executive Committee) का पुनर्गठन किया। गठित की गयी नयी कार्यकारिणी में गैर-यादव ओबीसी नेताओं (Non-Yadav OBC leaders) को ज्यादा जगह दी गयी है। माना जा रहा है कि पार्टी ने ये कदम इस वज़ह से उठाया है ताकि पार्टी को सिर्फ यादवों की ही पार्टी के तौर पर ना देखा जाये।
नवगठित 182 सदस्यीय राज्य कार्यकारिणी जो कि पिछले साल के विधानसभा चुनावों में भाजपा को हराने में नाकाम रहने के बाद भंग कर दी गयी थी। मौजूदा कार्यकारिणी में 70 में से 30 पदाधिकारी गैर-यादव ओबीसी से हैं, जबकि सिर्फ पांच यादव नेताओं ने नवगठित कार्यकारिणी में जगह बनायी है। यहां तक कि अनुसूचित जातियों के 8 सदस्यों को इसमें शामिल किया गया है, जो कि यादव पदाधिकारियों की तादाद से ज्यादा है। पदाधिकारियों में जहां पांच ब्राह्मण नेता हैं, वहीं दो अनुसूचित जनजाति से हैं।
पार्टी ने इस फेहरिस्त में 12 मुसलमानों को भी शामिल किया है, जिनका सूबे में अहम प्रतिनिधित्व है, जिसे अन्य पार्टियों में जाने वाले मुस्लिम वोटों को रोकने के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है। प्रदेश कार्यकारिणी समिति में 70 पदाधिकारी, 48 सदस्य और 62 विशेष आमंत्रित सदस्य शामिल हैं। पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल के नेतृत्व वाली पदाधिकारियों की टीम में चार उपाध्यक्ष, तीन महासचिव, 61 सचिव और एक कोषाध्यक्ष हैं।
इस मामले को लेकर राज्य इकाई के अध्यक्ष नरेश उत्तर पटेल ने कहा कि- “नई टीम संतुलित है और इसमें सभी जातियों और समुदायों के नेताओं का प्रतिनिधित्व है… ये भाजपा का प्रचार है कि सपा एक जाति की पार्टी है। सपा ने हमेशा सभी जातियों और समुदायों को सम्मान और प्रतिनिधित्व दिया है।”
गैर-यादव ओबीसी को बड़ा प्रतिनिधित्व देने के लिये अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की अगुवाई वाली समाजवादी पार्टी के इस कदम का मकसद ओम प्रकाश राजभर (Om Prakash Rajbhar) की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP – Suheldev Bharatiya Samaj Party) के गठबंधन बाहर निकलने के बाद लोकसभा चुनाव में पिछड़ी जाति के मतदाताओं का समर्थन हासिल करना है। साथ ही केशव देव मौर्य (Keshav Dev Maurya) का महान दल उस इंद्रधनुष गठबंधन से है जो कि पिछले साल विधानसभा चुनावों के लिये तैयार किया गया था।
बता दे कि एसपी गठबंधन को साल 2022 के विधानसभा चुनावों में गैर-यादव ओबीसी वोटों का अच्छा हिस्सा मिला था, जब उसने राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी), एसबीएसपी, महान दल, अपना दल (कमेरावादी) और जनवादी सोशलिस्ट पार्टी के साथ गठबंधन किया था।
हालांकि चुनाव के बाद राजभर भाजपा की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में शामिल हो गये, जबकि महान दल ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को बिना शर्त समर्थन देने का ऐलान किया था। इसके अलावा हाल ही में सपा के कुछ ओबीसी नेता भाजपा में शामिल हुए, जिनमें पूर्वी यूपी के ओबीसी नेता विधायक दारा सिंह चौहान भी शामिल हैं।
सपा ने राज्य इकाई के अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल के अलावा कुछ कुर्मी (ओबीसी) नेता भी कार्यकारिणी में शामिल किये गये है। प्रदेश कार्यकारिणी में दो और कुर्मी नेता के साथ नये पैनल में निषाद समुदाय से आने वाले चार नेताओं को भी जगह दी गयी है। खासतौर से प्रतिद्वंद्वी भाजपा का अपना दल (एस) और निषाद पार्टी के साथ गठबंधन है, जिनके पास कुर्मी और निषाद समुदायों के समर्थन का बड़ा जनाधार है।
क्षेत्रवार बंटवारे में 16 पदाधिकारी पूर्वी यूपी से हैं। पार्टी ने पश्चिम यूपी (12) के नेताओं को भी जगह दी है, जहां उसका रालोद के साथ गठबंधन है। गाजियाबाद के धर्मवीर डबास और बागपत की शालिनी राकेश दोनों जाट नेताओं को नोएडा से गुर्जर नेता सुनील चौधरी के साथ राज्य सचिव नियुक्त किया गया है। सात पदाधिकारी तीन जिलों-मैनपुरी (दो), कन्नौज (तीन) और इटावा (दो) से हैं, जिन्हें यादव परिवार का गढ़ माना जाता है।
सपा के राष्ट्रीय महासचिव और अखिलेश के चाचा शिवपाल सिंह यादव के आधा दर्जन से ज्यादा वफादारों को भी समिति में जगह मिली है। पहले सपा से अलग हो चुके और अखिलेश यादव से मतभेद के बाद प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) का गठन करने वाले शिवपाल ने पिछले साल दिसंबर में अपनी पार्टी का सपा में विलय कर दिया था।
वरिष्ठ सपा नेता आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम खान, जिन्हें हाल ही में जालसाजी मामले में दोषी ठहराये जाने के बाद विधानसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया था, उन्हें सचिव पद पर बरकरार रखा गया है।
महिमा यादव, लाखन सिंह यादव, अवधेश यादव, रामसेवक यादव और महताब सिंह नवगठित कार्यकारिणी में मात्र पांच यादव नेता है, इनमें से किसी को भी उपाध्यक्ष और महासचिव का प्रमुख पद नहीं दिया गया है। पांचों को सचिव बनाया गया है। इसके उलट तीन मुस्लिम नेताओं को भी अहम पदों की जिम्मेदारी दी गयी हैं।