न्यूज डेस्क (देवव्रत उपाध्याय): मौत की सजा (Death Penalty) और मृत्युदंड देश में सबसे ज्यादा बहस वाले मुद्दों में से एक रहा है, भारत में बड़ी आबादी मौत की सजा देने के नियम के खिलाफ खड़ी है, जबकि दुर्लभतम मामलों में ये सजा दी जा रही है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बीते सोमवार (19 सितम्बर 2022) 5 जजों की बेंच का गठन करने का फैसला किया, जो कुछ जघन्य मामलों में दोषियों को मौत की सजा को कम करने के लिये दिशा-निर्देश तैयार करेगी ताकि देश भर में मौत की सजा से जुड़ी विसंगतियों को दूर किया जा सके।
दोषियों को मौत की सजा देने के मामले में जारी फरमान कई फैसलों के बीच मतभेद और नज़रिये की वज़ह से जरूरी हो गया है, इस सवाल पर कि क्या कानून के तहत मौत की सज़ा के लिये दोषसिद्धि दर्ज करने के बाद अदालत आचरण करने के लिये सजा के मुद्दे पर अलग सुनवाई बाध्य है?
मृत्युदंड भारत में कानूनी है और बहुत ही दुर्लभ अपराधों के लिये दोषियों को ये सजा दी जाती है। भारत में मौत की सजा देश के मुख्य मूल दंड कानून भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत “दुर्लभ से दुर्लभतम” अपराधों के लिये दी जाती है और फांसी की मुकर्रर की जाती है।
हालांकि भारत में कई कैदियों को मौत की सजा दी जाती है, लेकिन फांसी तक की प्रक्रिया बेहद लंबी होती है। मौजूदा हालातों में भारत में 488 अपराधी हैं जो मौत की सजा पर हैं, देश में सबसे हालिया फांसी 2020 में हुई थी जो कि साल 2012 के दिल्ली (Delhi) सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले के चार दोषियों को मिली।
भारत में मौजूदा कानूनों के मुताबिक मृत्युदंड बहुत दुर्लभ और असाधारण मामलों में दिया जाता है, जहां अपराध खासतौर से जघन्य होता है। दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 354(5) के अनुसार फांसी का तरीका मौत होने तक लटकाये रखने की होती है।
कुछ अपराध जिनके लिये भारत में मौत की सजा दी जा सकती है, उनमें राजद्रोह (Sedition), हत्या, किसी बच्चे को आत्महत्या (Suicide) के लिये उकसाना, बलात्कार (Rape) या गंभीर चोट पहुँचाना जो कि मौत का कारण बनता है और हत्या के साथ डकैती जैसे जघन्य अपराध इस फेहरिस्त में शामिल हैं।