न्यूज डेस्क (श्री हर्षिणी सिंधू): Taiwan: चीनी सेना की ओर से ताइवानी समुद्र और हवाई इलाके में स्ट्राइक ड्रिल की बात कहने के कुछ दिनों बाद ताइवान ने मौजूदा चार महीने की अनिवार्य सैन्य सेवा को एक साल तक बढ़ाने का ऐलान किया। इस नियम को साल 2024 से पूरी तरह लागू कर दिया जायेगा। ये कवायद चीन के ‘एकीकरण’ के बढ़ते दावे के बीच स्व-शासित द्वीप राष्ट्र ताइवान की अपनी सुरक्षा को मजबूत करने की फौरी जरूरतों को दिखाता है।
ताइवान की राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन (President Tsai Ing-wen) ने आज (27 दिसम्बर 2022) प्रेस ब्रीफिंग में कहा कि- “ताइवान को चीन से बढ़ते खतरे के लिये तैयार रहने की जरूरत है। मौजूदा चार महीने की सैन्य सेवा तेजी से और हमेशा बदलती स्थिति का सामना करने के लिये नाकाफी है, हमने 2024 से एक साल की अनिवार्य सैन्य सेवा बहाल करने का फैसला किया है।”
बता दे कि चीनी नागरिक युद्ध के बाद की घटनाओं में साल 1949 में ताइवान की ओर से अपनायी गयी सैन्य भर्ती प्रणाली के हिस्से के तौर पर 18 साल से ज्यादा उम्र के सभी ताइवानी पुरूषों को शुरू में सेना में दो से तीन साल की सेवा करनी पड़ती थी। साल 1996 के बाद भर्ती धीरे-धीरे कम हो गयी, ये साल 2008 में एक साल और साल 2018 में चार महीने तक पहुंच गयी।
गौरतलब है कि चीन ने बीते रविवार (25 दिसंबर 222) को ताइवान जलडमरूमध्य (Taiwan Strait) की मध्य रेखा के पार 47 विमान भेजे, जो हाल ही के महीनों में ताइवान के वायु रक्षा क्षेत्र में सबसे बड़ी चीनी घुसपैठ है। चीनी घुसपैठ और सैन्य अभ्यास पूरे 2022 तक जारी रहे, यूएस हाउस स्पीकर नैन्सी पेलोसी (US House Speaker Nancy Pelosi) द्वारा ताइवान की यात्रा के बाद अगस्त में तनाव चरम पर था, नैंसी पेलौसी के ताइवान दौरे को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (Chinese Communist Party) के रोष को प्रेरित बताया था।
ताइवान में लगभग 170,000 सक्रिय सैन्य कर्मी हैं, जो कि चीन से लगभग दस गुना कम है। कथित तौर पर ताइवान का अनुमान है कि 100,000 पुरूष हर साल 18 साल के हो जाएंगे, जिसके बाद ताइवान अनिवार्य सैन्य सेवा को बढ़ाकर आकस्मिकताओं के दौरान अपनी सुरक्षा तैयार कर सकता है।
एक साल तक की सैन्य सेवा के विस्तार के लिये किसी संबंधित कानून संशोधन की आवश्यकता नहीं है, इसे ताइवानी सरकार आराम से लागू कर सकती है। ताइवान की “ऑल-आउट रक्षा” प्रणाली की समीक्षा के हिस्से के तौर पर लगभग दो सालों तक राष्ट्रीय रक्षा मंत्रालय और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद ने इस मुद्दे पर विचार-विमर्श किया, जिसके बाद इस निष्कर्ष पर पहुँचा गया।