रोजाना के पूजा-पाठ (Pooja Paath) और धार्मिक क्रियाकलापों में जाने-अनजाने में कुछ त्रुटियां रह जाती है। इन त्रुटियां पर ध्यान ना देने की वज़ह से पूजा-पाठ प्रभावी नहीं होते है और साथ ही देवगण रूष्ट भी हो जाते है। ऐसे में हम कुछ सावधानियां बताने जा रहे है, जिनका पालन करके आप पूजा को शास्त्रसम्मत तरीके से पूर्ण कर सकते है।
बरतें ये खास सावधानियां
- घर में पूजा करने वाला एक ही प्रतिमा की पूजा ना करें। अनेक देवी-देवताओं की पूजा करें। घर में दो शिवलिंग की पूजा ना करें तथा पूजा स्थान पर गणेश जी (Ganesh Ji) की तीन प्रतिमा ना रखें।
- शालिग्राम (Shaligram) की प्रतिमा जितनी छोटी हो वो ज्यादा फलदायक होगी।
- कुशा पवित्री के अभाव में स्वर्ण की अंगूठी धारण करके भी देव कार्य सम्पन्न किये जा सकते है।
- मंगल कार्यो में कुमकुम का तिलक प्रशस्त माना जाता हैं। पूजा में टूटे हुए अक्षत के टुकड़े नहीं चढ़ाना चाहिये।
- पानी, दूध, दही, घी आदि में अंगुली नहीं डालनी चाहिये। इन्हें लोटा, चम्मच आदि से लेना चाहिये क्योंकि नख स्पर्श से वस्तुयें अपवित्र हो जाती है अतः ये वस्तुएँ देव पूजा के योग्य नहीं रहती हैं।
- तांबे के बरतन में दूध, दही या पंचामृत आदि नहीं डालना चाहिये क्योंकि वो मदिरा के समान हो जाते हैं।
- आचमन तीन बार करने का विधान हैं। इससे त्रिदेव ब्रह्मा-विष्णु-महेश (Brahma-Vishnu-Mahesh) प्रसन्न होते हैं। दाहिने कान का स्पर्श करने पर भी आचमन के तुल्य माना जाता है।
- कुशा के अग्रभाग से दवताओं पर जल नहीं छिड़के।
- देवताओं को अंगूठे से नहीं मले। चकले पर से चंदन कभी नहीं लगावें। उसे छोटी कटोरी या बांयी हथेली पर रखकर लगावें।
- पुष्पों को बाल्टी, लोटा, जल में डालकर फिर निकालकर नहीं चढ़ाना चाहिये।
- भगवान के चरणों की चार बार, नाभि की दो बार, मुख की एक बार या तीन बार आरती उतारकर समस्त अंगों की सात बार आरती उतारें।
- भगवान की आरती समयानुसार जो घंटा, नगारा, झांझर, थाली, घड़ावल, शंख इत्यादि बजते हैं उनकी ध्वनि से आसपास के वायुमण्डल के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। नाद ब्रह्मा होता हैं। नाद के समय एक स्वर से जो प्रतिध्वनि होती हैं, उसमे असीम शक्ति होती हैं।
- लोहे के पात्र से भगवान को नैवेद्य अपर्ण नहीं करें।
- हवन में अग्नि प्रज्वलित होने पर ही आहुति दें। समिधा अंगुठे से अधिक मोटी नहीं होनी चाहिये और दस अंगुल लम्बी होनी चाहिए। छाल रहित या कीड़े लगी हुई समिधा यज्ञ-कार्य में वर्जित हैं। पंखे आदि से कभी हवन की अग्नि प्रज्वलित ना करें।
- मेरूहीन माला या मेरू का लंघन करके माला नहीं जपनी चाहिये। माला, रूद्राक्ष, तुलसी और चंदन की उत्तम मानी गयी हैं। माला को अनामिका (तीसरी अंगुली) पर रखकर मध्यमा (दूसरी अंगुली) से चलाना चाहिये।
- जप करते समय सिर पर हाथ या वस्त्र नहीं रखें। तिलक कराते समय सिर पर हाथ या वस्त्र रखना चाहिये। माला का पूजन करके ही जप करना चाहिये। ब्राह्मण (Brahmin) को या द्विजाती को स्नान करके तिलक अवश्य लगाना चाहिये।
- जप करते हुए जल में स्थित व्यक्ति, दौड़ते हुए, शमशान से लौटते हुए व्यक्ति को नमस्कार करना वर्जित हैं। बिना नमस्कार किये आशीर्वाद देना वर्जित हैं।
- एक हाथ से प्रणाम नही करना चाहिये। सोए हुए व्यक्ति का चरण स्पर्श नहीं करना चाहिये। बड़ों को प्रणाम करते समय उनके दाहिने पैर पर दाहिने हाथ से और उनके बांये पैर को बांये हाथ से छूकर प्रणाम करें।
- जप करते समय जीभ या होंठ को नहीं हिलाना चाहिये। इसे उपांशु जप कहते हैं। इसका फल सौगुणा फलदायक होता हैं।
- जप करते समय दाहिने हाथ को कपड़े या गौमुखी से ढ़ककर रखना चाहिये। जप के बाद आसन के नीचे की भूमि को स्पर्श कर नेत्रों से लगाना चाहिए।
- संक्रान्ति (Solstice), द्वादशी, अमावस्या, पूर्णिमा, रविवार और सन्ध्या के समय तुलसी तोड़ना निषिद्ध हैं।
- दीपक से दीपक को नही जलाना चाहिये।
- यज्ञ, श्राद्ध आदि में काले तिल का प्रयोग करना चाहिए, सफेद तिल का नहीं।