अफगानिस्तान में तालिबानी आतंकियों (Taliban Militants) ने भारतीय पत्रकार दानिश सिद्दीकी की बेरहमी से हत्या कर दी। दानिश सिद्दीकी फोटो-पत्रकार थे और साल 2010 से अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी रॉयटर्स के लिए काम कर रहे थे। हाल ही में जब पश्चिमी मीडिया के अखबारों में भारत में कोरोना मरीजों के जलते शवों की तस्वीरें छपी थीं तो उनमें से कई को दानिश सिद्दीकी ने अपने कैमरे में कैद किया था। जिसके बाद उन्हें एक खास ज़मात और विचारधारा के लोगों ने जमकर ट्रोल किया।
उनकी हत्या के बाद एक बड़ा वर्ग सोशल मीडिया पर खुशी ज़ाहिर कर रहा है लेकिन ऐसा होना नहीं चाहिये। ऐसा करना कतई सही नहीं है। दानिश सिद्दीकी बतौर पत्रकार सिर्फ अपना कर्तव्य निभा रहे थे और उन्होंने अपना काम करते हुए जान गंवायी। दानिश सिद्दीकी पिछले हफ्ते से लगातार अफगानिस्तान में चल रहे संघर्ष की मीडिया कवरेज कर रहे थे और उनके साथ वहां सुरक्षा बलों की एक टुकड़ी भी थी। अफगान सेना ने बताया कि जब सैनिक कंधार के स्पिन बोल्डक शहर के बड़े इलाके को फिर से अपने कब्जे में लेने की कोशिश कर रहे तालिबानियों से उनकी मुठभेड़ हो गयी और इस मुठभेड़ में दानिश सिद्दीकी और अफगानिस्तान के कुछ सैनिक मारे गये।
कंधार का स्पिन बोल्डक (Spin Boldk) वही शहर है जिसकी सीमा पाकिस्तान से भी लगती है। तालिबान ने यहां कब्जा कर लिया है और पाकिस्तान की सीमा पर अपने झंडे भी लहराये हैं। दानिश सिद्दीकी अफगानिस्तान आने के बाद से ही अपने ट्विटर हैंडल पर काफी सक्रिय थे और उन्होंने 13 जुलाई को अपने ऊपर तालिबान के हमले का एक वीडियो भी शेयर किया था। जिसमें उन्होंने बताया कि वो हमले में बाल-बाल बचे, लेकिन तीन दिन बाद तालिबान ने उन्हें मार गिराया।
भारत सरकार अब इस मामले को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council) में ले गयी। कंधार शहर में पाकिस्तान का काफी प्रभाव है जहां इस पत्रकार की हत्या की गई थी। हाल ही में एक अफगान नेता ने कहा कि उन्हें इस्लामाबाद से धमकी मिली है कि अगर उनकी सेना स्पिन बोल्डक शहर को अपने नियंत्रण में लेने की कोशिश करती है तो पाकिस्तानी सेना इस इलाके में अफगान सेना पर हवाई हमला करेगी। यानि अगर तालिबान आज फिर इस इलाके में आ गया है तो इसका एक कारण पाकिस्तान भी है और इसे दानिश सिद्दीकी की हत्या के लिये भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने भी दानिश सिद्दीकी की हत्या पर दुख जाहिर किया। उन्होंने ये भी कहा है कि पाकिस्तान की ओर से 10 हजार जिहादी लड़ाके अफगानिस्तान में घुस आये हैं, जो किसी भी कीमत पर काबुल पर कब्जा करना चाहते हैं। कहा जा सकता हैं कि इस वक्त अफगानिस्तान तालिबान और पाकिस्तान दोनों से मिलकर लड़ रहा है और ये भारत के लिये अच्छी खबर नहीं है।
पत्रकारिता की दुनिया में दानिश सिद्दीकी (Danish Siddiqui) का करियर 12 साल लंबा था और साल 2018 में म्यांमार में रोहिंग्या संकट कवरेज के लिए उन्हें पुलित्जर पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। इसके अलावा दानिश सिद्दीकी ने पिछले साल दिल्ली में हुए दंगों को भी कवर किया था। दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के पास विरोध प्रदर्शन के दौरान उन्होंने फायरिंग करने वाले हमलावर की तस्वीर भी खींची थी। ये तस्वीर पश्चिमी मीडिया के कई अखबारों में छपी थी।
ये खबर इस बात का भी संकेत है कि अफगानिस्तान में अशरफ गनी सरकार लड़खड़ाने लगी है और तालिबान साल 2001 के बाद फिर से वापसी करने जा रहा है लेकिन बड़ी बात ये है कि पश्चिमी देश ये सब चुपचाप होते हुए देख रहे हैं और 30 देशों वाले नाटो यानि कि उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन ने भी अफगानिस्तान से अपनी सेना वापस बुलानी शुरू कर दी है। इनमें से 27 देश यूरोप के ही हैं। नाटो में करीब साढ़े सात हजार अफगान सैनिक थे।
नाटो देश मानवाधिकारों पर लंबे चौड़े भाषण देते हैं लेकिन अफगानिस्तान में तालिबान की बर्बरता पर खामोश बैठे हैं। अफगानिस्तान में तालिबान का राज अभी नहीं आया है और उसने जिहादी फरमान जारी करना भी शुरू कर दिया है। तालिबान ने अपने नये फरमान में 15 साल से ऊपर की लड़कियों और 45 साल से कम उम्र की विधवा महिलाओं की सूची मांगी है, ताकि उन्हें तालिबानी आतंकियों को सौंपा जा सके और वे शादी के नाम पर इन महिलाओं को परेशान करे और रेप कर सकें।
ये सब अफगानिस्तान में इसलिए हो रहा है क्योंकि खुद को लोकतंत्र का चैंपियन बताने वाला अमेरिका और नाटो देश वहां से अपनी सेना वापस बुला रहे हैं। इसलिए इस प्रकरण को आईना समझिये जिसमें पश्चिमी अमन और जम्हूरियत पसंद मुल्कों का असली चेहरा साफ दिखता है।