हाल के महीनों में जंग के मैदान में बढ़त के साथ, दुबारा सिर उठाने वाले तालिबान ने अब आधे से ज़्यादा अफगानिस्तान (Afghanistan) पर नियंत्रण करने का दावा किया है। दूसरी ओर अमेरिका समर्थित अफगानिस्तान सरकार युद्धग्रस्त देश में सत्ता पर अपनी पकड़ तेजी से खोती जा रही है।
तालिबान पर काबू पाने के लिये 20 साल से ज़्यादा वक़्त तक नाटो और अमेरिकी सुरक्षा बलों ने इस एशियाई मुल्क में ऑप्रेशंस का अंज़ाम दिया। ऐसे में अफगानिस्तान में $ 2 ट्रिलियन से अधिक की रकम फूंकने के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका की वापसी हुई। अमेरिका इस दावे के साथ जा रहा है कि अफगानिस्तान सरकार अपनी रक्षा करने में सक्षम है और अमेरिकी सेना ने देश में जो कार्य निर्धारित किये उन्हें हासिल कर लिया गया है। हालाँकि स्थिति उतनी ही विकट है जितनी पहले थी।
अफगान सरकार वर्तमान में देश के केवल 20 प्रतिशत हिस्से को नियंत्रित करती है। तालिबान के बढ़ते प्रभाव ने रूस, तुर्की और ईरान से लेकर भारत, चीन और पाकिस्तान तक की चिंता बढ़ा दी है।
जैसे ही तालिबान कंधार के करीब पहुंच गया भारत ने अपने सभी राजनयिकों और कर्मचारियों को कंधार वाणिज्य दूतावास से निकाल लिया। भारतीय विदेश मंत्रालय के एक बयान के अनुसार "भारत अफगानिस्तान में विकसित हो रहे सुरक्षा हालातों का बारीकी से निरीक्षण कर रहा है। ऐसे हमारे कर्मियों की सुरक्षा सर्वोपरि है।”
काबुल में भारतीय दूतावास जो चालू रहता है, ने पिछले सप्ताह अफगानिस्तान में आने, रहने या काम करने वाले सभी भारतीय नागरिकों को सतर्क कर दिया। दूतावास ने उन्हें अत्यधिक सावधानी बरतने और सभी गैर-जरूरी यात्रा से बचने की सलाह दी। एडवाइजरी में कहा गया कि भारतीय नागरिकों को अफगानिस्तान में अपहरण के गंभीर खतरे का सामना करना पड़ रहा है।
अफ़ग़ानिस्तान में आतंकवादी समूहों द्वारा हाल ही में किये गये हमलों के सिलसिलों में अक्सर आम नागरिक भी निशाने पर रहे हैं।
Afghanistan में तालिबानी आतंकवाद की बढ़ोत्तरी पर चिंता
भारत से लेकर रूस तक पूरे एशिया में सक्रिय लगभग 20 आतंकी समूहों के साथ तालिबान (Taliban) के घनिष्ठ संबंध हैं। तालिबान के प्रभाव का विस्तार मध्य पूर्व एशिया और दक्षिण एशियाई मुल्कों के लिये खतरे की घंटी है।
जहां ज़्यादातर मुल्क दशकों से आतंकवाद से निपटने की कवायद में लगे हुए हैं। पाकिस्तान में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान या टीटीपी के दुबारा सिर उठाने के कारण चिंताएं बढ़ी हैं।
इस्लामाबाद साल 2001 के बाद से 70,000 से ज़्यादा नागरिकों की मौत के लिये टीटीपी संगठन को जिम्मेदार ठहराता आया है। सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) और जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) के हजारों आतंकवादी भी पाकिस्तान स्थित अन्य आंतकी ज़मातों के साथ अफगानिस्तान में लड़ रहे हैं। ये साल 2020 में तालिबान और अमेरिका द्वारा हस्ताक्षरित शांति समझौते का भी सीधे तौर पर और साफ उल्लंघन है। लगातार शक्तिशाली हो रहे तालिबान के साथ सेना में शामिल होने वाले ऐसे आतंकी संगठनों के नाम क्षेत्र में सुरक्षा के लिये गंभीर चिंता का सब़ब है।
Afghanistan में भारत का निवेश
भारत का अफगानिस्तान में बड़ा निवेश है, जिसने पिछले कुछ सालों में विभिन्न परियोजनाओं में लगभग 2200 करोड़ रुपये का निवेश किया है। पिछले साल ही भारत सरकार ने 600 करोड़ रुपये की नयी परियोजनाओं का ऐलान किया था। अफगानिस्तान में बिजली की तेजी आये इस बदलाव के कारण भारतीय निवेश (Indian investment) पर भी असर पड़ सकता है।