प्राचीन मान्यता है की शनि देव (Shanidev) की कृपा प्राप्त करने के लिये हर शनिवार को शनि देव को तेल चढ़ाना चाहिए। जो जातक ऐसा करते है उन्हें साढ़ेसाती और ढैय्या में भी शनि की कृपा प्राप्त होती है लेकिन शनि देव को तेल क्यों चढ़ाते इसको लेकर हमारे ग्रंथो में अनेक कथायें है। इनमें से सर्वाधिक प्रचलित कथा का संबंध रामायण काल (Ramayana period) और हनुमानजी से है।
Shanidev को सरसों का तेल चढ़ाने से जुड़ी पौराणिक कथा
कथा इस प्रकार है, शास्त्रों के अनुसार त्रेतायुग (Tretayug) के रामायण काल में एक समय शनि को अपने बल और पराक्रम पर घमंड हो गया था। उस काल में हनुमानजी (Hanuman ji) के बल और पराक्रम की कीर्ति चारों दिशाओं में फैली हुई थी। जब शनि को हनुमानजी के संबंध में जानकारी प्राप्त हुई तो शनि बजरंग बली से युद्ध करने के लिये निकल पड़े। एक शांत स्थान पर हनुमानजी भगवान श्रीराम की भक्ति में लीन बैठे थे, तभी वहां शनिदेव आ गये और उन्होंने पवनपुत्र को युद्ध के लिये ललकारा।
युद्ध की ललकार सुनकर हनुमानजी ने शनिदेव को समझाने का प्रयास किया, लेकिन शनि नहीं माने और युद्ध के लिये उन्हें उकसान लगे। आखिर में हनुमानजी भी युद्ध के लिये तैयार हो गये। दोनों के बीच घमासान युद्ध हुआ। हनुमानजी ने शनि को बुरी तरह परास्त कर दिया।
युद्ध में हनुमानजी द्वारा किये गये प्रहारों से शनिदेव के पूरे शरीर में भयंकर पीड़ा हो रही थी। इस पीड़ा को दूर करने के लिये हनुमानजी ने शनि को तेल दिया। इस तेल को लगाते ही शनिदेव की समस्त पीड़ा दूर हो गयी। तभी से शनिदेव को तेल अर्पित करने की परंपरा प्रारंभ हुई। शनिदेव पर जो भी व्यक्ति तेल अर्पित करता है, उसके जीवन की समस्त परेशानियां दूर हो जाती हैं और धन अभाव खत्म हो जाता है।
एक अन्य कथा के अनुसार जब भगवान राम की सेना ने सागर सेतु बांध लिया, तब राक्षस इसे हानि न पहुंचा सकें, इसके लिये पवन सुत हनुमान को उसकी देखभाल की जिम्मेदारी सौंपी गयी। जब हनुमान जी शाम के समय अपने इष्टदेव राम के ध्यान में मग्न थे, तभी सूर्य पुत्र शनि ने अपना काला कुरूप चेहरा बनाकर क्रोधपूर्ण कहा- हे वानर मैं देवताओ में शक्तिशाली शनि हूँ। सुना हैं, तुम बहुत बलशाली हो। आँखें खोलो और मेरे साथ युद्ध करो, मैं तुमसे युद्ध करना चाहता हूँ। इस पर हनुमान ने विनम्रतापूर्वक कहा- इस समय मैं अपने प्रभु को याद कर रहा हूं। आप मेरी पूजा में विघ्न मत डालिये। आप मेरे आदरणीय है। कृपा करके आप यहां से चले जाइये।
जब शनि देव लड़ने पर उतर आये तो हनुमान जी ने अपनी पूंछ में लपेटना शुरू कर दिया। फिर उन्हें कसना प्रारंभ कर दिया जोर लगाने पर भी शनि उस बंधन से मुक्त न होकर पीड़ा से व्याकुल होने लगे। हनुमान ने फिर सेतु की परिक्रमा कर शनि के घमंड को तोड़ने के लिये पत्थरों पर पूंछ को झटका दे-दे कर पटकना शुरू कर दिया। इससे शनि का शरीर लहुलुहान हो गया, जिससे उनकी पीड़ा बढ़ती गयी।
तब शनि देव ने हनुमान जी से प्रार्थना की कि मुझे बधंन मुक्त कर दीजिये। मैं अपने अपराध की सजा पा चुका हूँ, फिर मुझसे ऐसी गलती नही होगी! तब हनुमान जी ने जो तेल दिया, उसे घाव पर लगाते ही शनि देव की पीड़ा मिट गयी। उसी दिन से शनिदेव को तेल चढ़ाया जाता हैं, जिससे उनकी पीड़ा शांत हो जाती हैं और वे प्रसन्न हो जाते हैं।
हनुमानजी की कृपा से शनि की पीड़ा शांत हुई थी, इसी वजह से आज भी शनि हनुमानजी के भक्तों पर विशेष कृपा बनाये रखते हैं।
Shanidev को तेल अर्पित करते समय रखें इस बात का ध्यान
शनि देव की प्रतिमा को तेल चढ़ाने से पहले तेल में अपना चेहरा अवश्य देखें। ज्योतिषीय भाषा में इसे छाया दान करना कहते है। ऐसा करने से शनि के दोषों से मुक्ति मिलती है। धन संबंधी कार्यों में आ रही रुकावटें दूर हो जाती हैं और सुख-समृद्धि बनी रहती है।
Shanidev को तेल चढ़ाने से जुड़ी वैज्ञानिक मान्यता
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हमारे शरीर के सभी अंगों में अलग-अलग ग्रहों का वास होता है। यानि अलग-अलग अंगों के कारक ग्रह अलग-अलग हैं। शनिदेव त्वचा, दांत, कान, हड्डियां और घुटनों के कारक ग्रह हैं। यदि कुंडली में शनि अशुभ हो तो इन अंगों से संबंधित परेशानियां जातक को झेलनी पड़ती हैं। इन अंगों की विशेष देखभाल के लिये हर शनिवार तेल मालिश की जानी चाहिये।
शनि को तेल अर्पित करने का यही अर्थ है कि हम शनि से संबंधित अंगों पर भी तेल लगायें, ताकि इन अंगों को पीड़ाओं से बचाया जा सके। मालिश करने के लिये सरसो के तेल का उपयोग करना श्रेष्ठ रहता है।