इसलिये लगी है Switzerland की CERN Lab में भगवान Natraj की प्रतिमा

धर्म डेस्क (नई दिल्ली): हिन्‍दुओं के सबसे शक्‍तिशाली देवता हैं, भगवान शिव। शिव की अभिव्‍यक्‍ति ‘नटराज’ (Natraj) के रूप में भी हुई है। नटराज जिसे ‘प्राण शक्‍ति’ का प्रतीक भी माना जाता है। इन्‍हीं भगवान नटराज की विशाल प्रतिमा को स्‍विट्जरलैंड (Switzerland) के जेनेवा स्‍थित दुनिया की सबसे बड़ी भौतिकी प्रयोगशाला CERN के बाहर लगाया गया है।

European Organization For Nuclear Research (CERN) वहीं प्रयोगशाला है, जहां कुछ साल पहले ‘गॉड पार्टिकल’ जिसे हिग्‍स-बोसोन का नाम दिया गया है, का अनुसंधान हुआ। यहां अनुसंधान हुए हिग्‍स-बोसोन को ‘ब्रह्मकण’ के नाम से भी जाना जाता है।

CERN के बाहर स्‍थापित नटराज प्रतिमा के ठीक बगल में लगी पट्टिका पर महान भौतिक वैज्ञानिक फ्रित्‍जोफ कैपरा ने उद्धरण के साथ यहां लिखा है….

“हजारों वर्ष पूर्व भारतीय कलाकारों ने तांबे की श्रृंखला से भगवान शिव के नृत्‍य में लीन स्‍वरूप को बनाया। आज हमारे समय में तमाम भौतिक वैज्ञानिक फिर से उन्‍नत तकनीकों को इस्‍तेमाल करते हुए ‘कॉस्‍मिक डांस’ का प्रारूप तैयार कर रहे हैं।”

वर्तमान में वैज्ञानिकों की ‘कॉस्‍मिक डांस’ की थ्‍योरी (Theory of Cosmic Dance), दरअसल प्राचीन मिथकों, धर्म, कला और भौतिकी की बुनियाद पर ही खड़ी है। आनंद तांडव करते शिव प्रतीक हैं सभी व्‍यक्‍त-अव्‍यक्‍त के आधार का। आधुनिक भौतिक विज्ञान हमें बताता है कि निर्माण और प्रलय की प्रक्रिया सिर्फ ब्रह्मांड में जीवन के आरंभ और अंत से ही नहीं जुड़ी हुई है, बल्‍कि ये पूरी सृष्‍टि के कण-कण से जुड़ी हुई है।

कैपरा लिखते हैं, “Quantum field theory के अनुसार ‘Dance of creation & destruction’ ही सभी तत्‍वों के होने का आधार है। आधुनिक भौतिकशास्‍त्र हमें बताता है कि हर उपपरमाणविक कण ना केवल एक ‘ऊर्जानृत्य’ करता है, बल्‍कि ये खुद भी एक ‘ऊर्जा-नृत्य’ ही है। सृजन और विनाश की एक सतत प्रक्रिया।”

वैज्ञानिक फ्रित्‍जोफ कैपरा लिखते हैं कि, ”खुद हम भौतिकी के वैज्ञानिकों के लिए शिव का ‘आनंदतांडव’, उपपरमाणविक कणों का ‘ऊर्जा-नृत्‍य’ ही है, जो आधार है हर अस्‍तित्‍व और सभी प्राकृतिक घटनाओं का।”

नटराज प्रतिमा के बारे में पट्टिका पर सर्न के शोधार्थी एडन रैन्डल कोंड लिखते हैं कि, “दिन की रोशनी में जब सर्न हलचलों से भरा होता है, शिव तब भी नृत्‍य मुद्रा में ही होते हैं। जो हमें ये याद दिलाता है कि ब्रह्मांड लगातार गतिमान है, खुद को परिवर्तित कर रहा है और स्‍थिर तो ये कभी नहीं रहा।”

रैन्‍डल कोंड लिखते हैं, “ शिव, अपनी इस मुद्रा से हमें हर पल याद दिलाते हैं कि, हमें अभी भी इस ब्रह्मांड का सबसे बड़ा रहस्‍य नहीं पता है।”

मशहूर भौतिक वैज्ञानिक कार्ल सेगन के अनुसार, “हिन्‍दू धर्म विश्‍व के उन महान धर्मों में से एक है। जिसके अनुसार इस ब्रह्माण्‍ड की उत्पत्ति और विध्‍वंस की प्रक्रिया निरंतर (Constant Process of Destruction) जारी है। ”

सेगन कहते हैं, “ हिन्‍दू धर्म अकेला ऐसा धर्म है जो हमें यह बताता है कि हमारे दिन और रात की तरह ही स्‍वयं ब्रह्मा के भी दिन और रात होते हैं। हमारे 24 घंटे के दिन और रात की जगह ब्रह्मा के दिन और रात की अवधि तकरीबन 8.64 बिलियन वर्ष की होती है। हिन्‍दू धर्म एक अनवरत प्रक्रिया की बात करता है।”

जून-2014 में जब शिव की नटराज प्रतिमा यहां लगायी गई तो वैज्ञानिकों को आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा। शिव के नृत्‍य स्‍वरूप को लेकर रूढ़िवादी ईसाई तब तक आपत्‍तियां उठाते रहे, जब तक वैज्ञानिकों ने हिग्‍स-बोसोन पार्टिकल की खोज नहीं कर ली। इसके बाद वैज्ञानिकों ने आलोचकों को स्‍पष्‍ट किया कि आखिर क्‍यों सृष्‍टि के ‘संहारक’ की प्रतिमा यहां लगाई गयी है।

अमूमन हम भारतीय भी नटराज की प्रतिमा के रहस्‍य नहीं जानते हैं। दरअसल नटराज प्रतीक है शिव के तांडव स्‍वरूप का। हम में से ज्‍यादातर लोग तांडव नृत्‍य को शिव के उग्र रूप से जोड़कर देखते हैं, जबकि ऐसा नहीं है।

शिव तांडव के भी दो प्रकार हैं। पहला है ‘तांडव’, शिव का ये रूप ‘रुद्र’ कहलाता है। जबकि दूसरा है ‘आनंद-तांडव’, शिव का ये रूप ‘नटराज’ कहलाता है। रुद्र रूप में शिव समूचे ब्रह्माण्‍ड के संहारक बन जाते हैं। वहीं सर्न के बाहर लगी नटराज प्रतिमा ‘सृष्‍टि निर्माण’ का प्रतीक है।

आनंद तांडव के भी पांच रूप हैं-

  1. सृष्‍टि : निर्माण, रचना creation, evolution
  2. स्‍थिति : संरक्षण, समर्थन preservation, support
  3. संहार : विनाश Destruction
  4. तिरोभाव : मोह-माया Illusion
  5. अनुग्रह : मुक्‍ति release, grace

नटराज, दो शब्‍दों ‘नट’ यानी कला और राज से मिलकर बना है। इस स्‍वरूप में शिव कलाओं के आधार हैं।

नटराज शिव की प्रसिद्ध प्राचीन मूर्ति की चार भुजाएं हैं। उनके चारों ओर अग्‍नि का घेरा है। अपने एक पांव से शिव ने एक बौने राक्षस को दबा रखा है। दूसरा पांव नृत्‍य मुद्रा में ऊपर की ओर उठा हुआ है। शिव अपने दाहिने हाथ में डमरू पकड़े हुए हैं। डमरू की ध्‍वनि यहां सृजन का प्रतीक है। ऊपर की ओर उठे उनके दूसरे हाथ में अग्‍नि है। ये अग्‍नि विनाश का प्रतीक है। इसका अर्थ ये है कि शिव ही एक हाथ से सृजन और दूसरे से विनाश करते हैं।

शिव (Shiva) का तीसरा दाहिना हाथ अभय मुद्रा में उठा हुआ है। उनका चौथा बांया हाथ उनके उठे हुए पांव की ओर इशारा करता है, इसका अर्थ ये भी है कि शिव के चरणों में ही मोक्ष है। शिव के पैरे के नीचे दबा बौना दानव अज्ञान का प्रतीक है, जो कि शिव द्वारा नष्‍ट किया जाता है। चारों ओर उठ रही लपटें इस ब्रह्माण्‍ड का प्रतीक है। शिव की संपूर्ण आकृति ओंकार स्‍वरूप दिखाई पड़ती है। विद्वानों के अनुसार ये इस बात की ओर इशारा करती है कि ‘ॐ’ दरअसल शिव में ही निहित है।

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