Nehru Gandhi Family: ये इस परिवार पर मुसलसल लगने वाली सबसे बड़ी तोहमत है परंतु देखा जाये तो ये “परिवारवाद” की क्लासिकीय परिभाषा में आता ही नहीं है। यहां बिना किसी भावुक आख्यान का संदर्भ दिये मसलन, इस परिवार में नेहरू ने कोई दस साल आज़ादी की लड़ाई में जेल में काटे या कि इस परिवार में दो-दो प्रधानमंत्री विशुद्ध राजनीतिक कारणों से शहीद हुए आदि आदि के बजाय क्रोनोलॉजी और तथ्यात्मक पड़ताल करें तो क्या पता चलता है ?
तो पता ये चलता है कि, नेहरू की किसी cabinet में इंदिरा कभी नही रही, नेहरू के मरने के बाद भी प्रधान मंत्री शास्त्री जी हुए न कि इंदिरा ….. इंदिरा पर उनके अपने संगठन में न जाने कितनी तोहमतें मिली, कितना उपहास उड़ा इसके बावजूद इंदिरा विचलित नही हुई। कांग्रेस दो फाड़ हुई, तब सारे दिग्गज सिंडिकेट बना के बैठ गये और दूसरी तरफ इंदिरा ने उन सबसे अकेले मोर्चा लिया और चुनाव में over whelming मेजोरिटी हासिल कर अपनी नई कांग्रेस को कांग्रेस की असल वारिस सिद्ध करके दिखाया….ये कोई परिवारवाद नही हुआ। ये तो लड़ के हासिल की गई सत्ता थी।
परिवारवाद का पहला और आखिरी उदाहरण राजीव गांधी को कहा जा सकता है, जो बेहद असामान्य परिस्थितियों में सत्ता के शीर्ष पर स्थापित किये गये परंतु तब की परिस्थितियों को देखें तो ये कांग्रेस की अपनी choice थी न कि गांधी परिवार की, उंस समय तो गांधी परिवार के नाम पर कोई था भी नहीं, हालांकि राजीव का चयन भी परिस्थितियों से उपजी अपरिहार्यता ही थी। क्लासिकीय अर्थों में तो ये भी परिवारवाद न हुआ मगर चलिये एक बार मान लेते है कि राजीव पायलट थे और सीधे Paradrop हुए।
राजीव को भी अपने जीवनकाल में तमाम वरिष्ठ नेताओं तीखे विरोध का सामना करना पड़ा, सत्ता भी गंवानी पड़ी... बाद में अगले ही चुनाव प्रचार में एक आतंकी हमले मे वो मारे गये यानि एक ही कार्यकाल और इसके बाद तथाकथित परिवारवाद का किस्सा यहां खत्म हो जाता है |
उसके बाद नरसिम्हाराव प्रधान बने, पूरा tenure रहे और उनके बाद तो गैर कांग्रेस सरकारों का पूरा सिलसिला रहा ...
2004 में सोनिया की प्लेट मे प्रधानमंत्री पद रखा था परंतु अपने सामने से वो प्लेट हटा कर उन्होंने जो उदाहरण पेश किया वो आज़ाद भारत में न पहले दिखा था नहीं बाद में दिखा ...इसी तरह राहुल के पास भी 2009 में मौका था परंतु उसने भी ये ठुकरा दिया...
सोनिया तो अनेक सालों तक संगठन में भी नही शामिल हो रही थी परंतु पार्टी का मुसलसल दबाव ऐसा था कि उन्हें संगठन को अंततः सम्भालना पड़ा.....
इसरूप में देखे तो गांधी परिवार के ऊपर परिवारवाद के आरोप में कोई दम नहीं है बल्कि कांग्रेस अलबत्ता एक ऐसा संगठन रहा, जिसे अपने कमांडर के रूप में किसी न किसी रूप में गांधी ही चाहिए था ... ये मुख्य रूप से संगठन का आंतरिक मामला था जिसके लिए किसी अन्य का कोई locus नहीं बनता कि उसकी इस मुद्दे पर आलोचना करे सिवाय उसके मेम्बरान के .... और मेम्बरान ऐसा करते भी रहते है चाहे वह संगठन कांग्रेस हो, कांग्रेस for democracy हो, कांग्रेस urs हो, कांग्रेस तिवारी हो, तमिल मनिला कांग्रेस हो, चाहे नेशनलिस्ट कांग्रेस हो चाहे तृणमूल हो चाहे TRS हो चाहे आज का G 23 या अमरिंदर सिंह हो ...ये सब दल और असंतुष्ट मेम्बरान सिद्ध करते है कि मूल कांग्रेस पर गांधी परिवार का हक निराधार नहीं है वो इस जगह को डिजर्व करते है ..