Suspension of Parliamentarians: पुरानी रही है सांसदों के निलंबन की कवायद, रूल बुक में है कई नियम

सरकार द्वारा लाये गये एक प्रस्ताव के बाद पहले ही दिन राज्यसभा में विपक्षी दलों के एक दर्जन सांसदों (Parliamentarians) को संसद के शीतकालीन सत्र से निलंबित (suspension) कर दिया गया है। इन सदस्यों को अगस्त में मानसून सत्र के आखिर में कथित तौर पर असंवैधानिक आचरण दिखाने के लिये निलंबित कर दिया गया।

मानसून सत्र के दौरान कुछ विपक्षी सदस्यों ने सामान्य बीमा व्यवसाय (राष्ट्रीयकरण) संशोधन विधेयक, 2021 के पारित होने के दौरान सदन के वेल पर धावा बोल दिया, जिसके कारण मार्शल को बुलाना पड़ा। निलंबित विपक्षी सदस्यों में कांग्रेस के छह, तृणमूल कांग्रेस और शिवसेना के दो-दो और भाकपा और सीपीएम के एक-एक सदस्य शामिल हैं।

संसद का शीतकालीन सत्र (Winter Session) बीते सोमवार (29 नवंबर 2021) को हंगामेदार तरीके से शुरू हुआ। संसदीय कार्य मंत्री प्रहलाद जोशी ने 11 अगस्त को ‘अभूतपूर्व कदाचार’, ‘अनियंत्रित और हिंसक व्यवहार’ और ‘सुरक्षा कर्मियों पर जानबूझकर हमले’ के आधार पर पूरे शीतकालीन सत्र के लिये राज्यसभा के 12 सांसदों को निलंबित करने के लिए सदन की मंजूरी मांगी। .

लगातार व्यवधानों और स्थगन के कारण मानसून सत्र निर्धारित समय से दो दिन पहले समाप्त हो गया था। विपक्षी दल पेगासस जासूसी विवाद (Pegasus spy controversy) और तीन विवादास्पद कृषि कानूनों का लगातार विरोध कर रहे थे। चर्चा के दौरान विपक्षी सांसद कथित तौर पर अधिकारियों की मेज पर चढ़ गये, काला झंडा लहराया और फाइलें फेंक दीं। अनियंत्रित व्यवहार तब शुरू हुआ जब सदन ने नये सुधार कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध पर चर्चा शुरू की।

मानसून सत्र के आखिरी दिन हंगामा हुआ। विपक्षी दलों के सांसदों ने सुरक्षाकर्मियों के साथ कथित तौर पर मारपीट भी की। हालांकि विपक्ष का आरोप है कि सुरक्षाकर्मियों ने उनके सांसदों के साथ बदसलूकी की। राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला (Lok Sabha Speaker Om Birla) ने विस्तृत जांच करने का फैसला किया। उन्होंने फैसला किया कि बेकाबू हुए हालातों की जांच की जायेगी और ऐसे मामलों में भविष्य में कार्रवाई की जायेगी।

सांसदों को राज्यसभा नियमों के नियम 256 के तहत निलंबित कर दिया गया था, जो 'सत्र से ज़्यादा के लिये' निलंबन की अनुमति नहीं देता है। इन 12 सांसदों को निलंबन के लिये क्यों चुना गया, इस पर अभी तक कोई स्पष्टता नहीं है जबकि सरकार के आरोपपत्र में 20 से अधिक सदस्यों के नाम थे।

सत्र के दौरान कांग्रेस सांसद प्रताप सिंह बाजवा द्वारा खाली कुर्सी पर नियम पुस्तिका फेंकने की तस्वीरें भी टेलीविजन चैनलों पर प्रसारित की गयी। 11 अगस्त को आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह (Aam Aadmi Party MP Sanjay Singh) पत्रकारों की मेज पर चढ़ने वाले पहले लोगों में से एक थे। लेकिन इनमें से किसी को भी सस्पेंड नहीं किया गया।

लोकसभा नियम पुस्तिका के मुताबिक सांसदों को संसदीय शिष्टाचार (Parliamentary Etiquette) के कुछ नियमों का पालन करना जरूरी है। इन नियमों को 1989 में अपडेट किया गया था। जिसके मुताबिक सांसद दूसरों के भाषण को बाधित नहीं कर सकते हैं और बहस के दौरान टिप्पणी करके या चलकर टिप्पणी करके कार्यवाही में बाधा नहीं डाल सकते हैं। सांसदों को सदन में नारे नहीं लगाने चाहिए, तख्तियां नहीं दिखानी चाहिए, विरोध में दस्तावेजों को फाड़ना नहीं चाहिए और सदन में कैसेट या टेप रिकॉर्डर नहीं बजाना चाहिये।

राज्यसभा में भी इसी तरह के नियम हैं। कार्यवाही को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए नियम पुस्तिका दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारियों को कुछ समान शक्तियां प्रदान करती है। प्रत्येक सदन का पीठासीन अधिकारी एक सांसद को उसकी बेकाबू अमर्यादित और असंवैधानिक हरकत (Uncontrollable Illegal And Unconstitutional Act) के लिए विधायी कक्ष (legislative chamber) से हटने का निर्देश दे सकता है। ऐसे मामले में संसद सदस्य दिन की शेष कार्यवाही से बेदखल किया जा सकता है।

पीठासीन अधिकारी किसी सांसद को लोकसभा या राज्यसभा के 'कार्य में लगातार और जान-बूझकर बाधा डालने' के लिये 'नाम' भी दे सकते हैं। आमतौर पर संसदीय कार्य मंत्री सांसद को सदन की सेवा से निलंबित करने का प्रस्ताव पेश करते हैं और ये सत्र के अंत तक चल सकता है।

स्पीकर को एक अतिरिक्त शक्ति देने के लिए 2001 में लोकसभा नियम में संशोधन किया गया था। जिसका इस्तेमाल करते हुए साल 2015 की तत्कालीन स्पीकर सुमित्रा महाजन ने 2015 में कांग्रेस के 25 सांसदों को सस्पेंड कर दिया था। नया नियम 374A, स्पीकर को सदन के कामकाज को बाधित करने के लिये अधिकतम पांच दिनों के लिये एक सांसद को निलंबित करने का अधिकार देता है।

1963 में लोकसभा कुछ लोकसभा सांसदों को फटकार लगाने के साथ समाप्त हुई, जिन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन (President Sarvepalli Radhakrishnan) के पहले भाषण के दौरान कार्यवाही बाधित करने वाले माहौल पैदा किये थे। जब राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन दोनों सदनों को संयुक्त भाषण दे रहे थे, तब ये सांसद लोकसभा से बेदखल कर दिये गये थे। साल 1989 में ठक्कर आयोग की रिपोर्ट की चर्चा के दौरान 63 सांसदों को लोकसभा से निलंबित कर दिया गया था।

साल 2010 में मंत्री से महिला आरक्षण बिल छीनने के लिये सात सांसदों को राज्यसभा से निलंबित कर दिया गया था। तब सांसदों ने नारे लगाये, सदन में काली मिर्च स्प्रे का इस्तेमाल किया और विरोध के संकेत के तौर पर तख्तियां दिखायी गयी थी।

संस्थापक संपादक- अनुज गुप्ता

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