हेल्थ डेस्क (यामिनी गजपति): किडनी प्रोजेक्ट (The Kidney Project) अमेरिका में एक रिसर्च प्रोजेक्ट है, जिसका मकसद किडनी नाकाम होने पर मामूली से सर्जरी करके बॉयोआर्टिफिशियल किडनी ट्रांसप्लांट (Bioartificial Kidney Transplant) करना है ताकि किडनी फेल्योर होने की दशा में कारगर इलाज मुहैया करवाया जा सके। ये रिसर्च प्रोजेक्ट वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और चिकित्सकों को एक साथ एक मंच पर लाता है ताकि ट्रांसप्लांट करने के लिये बॉयोआर्टिफिशियल किडनी तैयार की जा सके।
बॉयोआर्टिफिशियल किडनी उन मरीज़ों की काफी मदद करेगा जो कि किडनी फेल्योर (Kidney Failure) जूझ रहे है। साथ ही उन लोगों के लिये उम्मीदों की रौशनी लेकर आयेगा जो कि कुछ समय से डायलिसिस (Dialysis) और लंबे समय से किडनी ट्रांसप्लांट की आस लगाये बैठे है, जिसके डोनर दुनिया भर में काफी नाममात्र है। माना जा रहा है कि बायोआर्टिफिशियल किडनी अमेरिकी सरकार काफी आर्थिक बचत भी कर सकेगी।
इस परियोजना की अगुवाई डॉक्टर शुवो रॉय पीएच.डी. (किडनी परियोजना के तकनीकी निदेशक) और डॉक्टर विलियम फिसेल (किडनी परियोजना के चिकित्सा निदेशक) कर रहे है। नैनो तकनीक पर आधारित बायोनिक या कृत्रिम किडनी (Bionic Or Artificial Kidney) आसानी से इंसानी शरीर में प्रत्यारोपित की जा सकती है, और ये नॉर्मल किडनी के तौर पर काम करती है। यूसीएसएफ स्कूल ऑफ फार्मेसी एंड मेडिसिन (UCSF School of Pharmacy and Medicine) और किडनी प्रोजेक्ट के तकनीकी निदेशक ने ट्रोएब मीडिया से बात करते हुए कहा कि डिवाइस का क्लिनिकल परीक्षण सफल रहा। टेस्टिंग के सभी चरण मेडिकल एथिक्स बोर्ड की निगरानी में हुए।
किडनी प्रोजेक्ट टीम किडनी रोगियों को डायलिसिस और ट्रांसप्लांट करने के लिये किडनी की कमी के बोझ से परे सेहत, मोबिलिटी और जीवन की गुणवत्ता मुहैया कराने की कोशिश करती है। पिछले कुछ सालों में द किडनी प्रोजेक्ट ने हेमोफिल्टर (Hemofilter) की कामयाब टेस्टिंग की, जो कि खून से अपशिष्ट उत्पादों और विषाक्त पदार्थों को हटाता/छानता है। बायोरिएक्टर (Bioreactor) जो अलग-अलग प्रयोगों में खून में इलेक्ट्रोलाइट्स के संतुलन जैसे काम करके हूबहू किडनी के जैसे ही काम करता है। फिलहाल द किडनी प्रोजेक्ट उन लाखों लोगों के लिये उम्मीदों की रौशनी बनकर उभर है, जो कि किडनी की गंभीर बीमारियों से जूझ रहे है।