ये देखना बहुत ही दयनीय दशा है। इस तरह के युवा समाज और राष्ट्र के लिए कैंसर है। इस तरह के नारे दहशतगर्दी की ओर मुड़ने के शुरुआती कदम हैं। ऐसे लोगों को दिमागी इलाज़ की जरूरत होती है, ऐसे लोगों को मानसिक रोगियों के सेनिटॉरियम में भेज देना चाहिए। इससे पहले कि वो कट्टर दहशतगर्द में बदल जाये। इस तस्वीर के पीछे सबसे बड़ा हाथ सियासी कुर्सियों पर बैठी जोकों का है। जो युवाओं की ताकत को बेरोजगारी के बुनियादी मसले से भटकाकर असमानता फैलाने की दिशा में झोंक कर तरह-तरह के लालच में फंसाते है। साथ ही सबसे बुरे हालत दिमागी तौर पर दिवालिया हो चुके नौज़वानों का है, जो लोकतान्त्रिक आजादी के नाम पर कुछ बोलने के लिए तैयार हो जाते है। लेकिन बात जब राष्ट्रीय मुद्दों पर बोलने की आती है तो इनकी जुबान पर ताले लग जाते है, जैसे कोई सांप इन्हें सूंघ गया हो। याद रहे देश प्रथम सर्वप्रथम है और इसकी एकता और संप्रभुता से किसी तरह का कोई समझौता नहीं हो सकता है। ये मसला बेहद गंभीर और शर्मनाक है।