हेल्थ डेस्क (यामिनी गजपति): एक क्रांतिकारी प्रयोग (Pig’s Heart Experiment) ने कल (18 जनवरी 2022) अपने शुरूआती 10 दिन पूरे किये। 57 वर्षीय व्यक्ति जिसके शरीर में सुअर का हृदय ट्रांसप्लांट (Heart Transplant) हुआ था, ऐतिहासिक सर्जरी के 10 दिन बाद भी ज़िन्दा है। अमेरिका की मैरीलैंड यूनिवर्सिटी (University of Maryland) के मुताबिक इस शख्स का स्वास्थ्य पहले के मुकाबले स्थिर है और अब वो काफी बेहतर महसूस कर रहा है। अब ये बहुत बड़ी बात है और किसी चमत्कार से कम नहीं।
साल 1997 में जब एक मरीज को सुअर का दिल प्रत्यारोपित किया गया तो महज सात दिन बाद उसकी मौत हो गयी, लेकिन इस बार 10 दिनों की सर्जरी के बावजूद मरीज ठीक है, और वो मौजूदा वक़्त में चिकित्सकीय सहायता (Medical Aid) पर है।
संयुक्त राज्य अमेरिका में डॉक्टरों ने कहा है कि जब किसी जानवर के दिल को मानव शरीर में प्रत्यारोपित किया जाता है तो पहले 10 दिन सबसे खतरनाक होते हैं। क्योंकि इन 10 दिनों में इस सर्जरी के साइड इफेक्ट (Side Effect) देखने को मिलते हैं और मरीज की जान जाने का खतरा होता है। उसे संक्रमण को पकड़ सकता हैं या उसका शरीर नये प्रत्यारोपित अंग (Newly Transplanted Organs) को पूरी तरह नाकार सकता है। लेकिन इस मामले में अब अमेरिका में डॉक्टरों ने 10 दिन की बाधा को पार कर लिया है। ये पूरी दुनिया के लिये एक नई उम्मीद है।
अगर सुअर का हृदय इस मरीज को नया जीवन देता है तो प्रयोग दुनिया के उन लाखों लोगों के जीवन को बचाने में सक्षम होगा जो अंगों की कमी के कारण हार्ट ट्रांसप्लांट नहीं कर पा रहे हैं। मौजूदा वक़्त में भारत में हर 147 लोगों में से जिन्हें दिल की जरूरत है सिर्फ एक को ही ये कीमती अंग मिलता है। हालाँकि अभी भी बहुत सारे शोध बाकी हैं लेकिन एक दिन ये वास्तविकता बन सकता है।
लेकिन जब दुनिया आज संयुक्त राज्य अमेरिका में इन डॉक्टरों को देख रही है और 57 वर्षीय मरीज पर उनके प्रयोग और उसके चमत्कार के बारे में बात कर रही है। ऐसे में प्रसिद्ध भारतीय सर्जन डॉक्टर धनी राम बरुआ (Indian Surgeon Dr. Dhani Ram Barua) का जिक्र करना बेहद जरूरी है, जिन्होंने 25 साल पहले साल 1997 में पहली बार इस तकनीक का इस्तेमाल किया था। आज वो बेहद खराब हालात में है।
25 साल पहले साल 1997 में डॉक्टर धनी राम बरुआ ने हांगकांग के एक डॉक्टर के साथ असम के गुवाहाटी में एक आदमी के शरीर में सुअर के दिल का प्रत्यारोपण किया था। हालांकि तब ऑपरेशन सफल नहीं हुआ और 7 दिन बाद मरीज की मौत हो गयी और फिर डॉक्टर बरुआ को गैर इरादतन हत्या (Culpable Homicide) के आरोप में गिरफ्तार किया गया, जो कि हत्या नहीं है। डॉक्टर बरुआ आज बीमार हैं और गरीबी और बहुत बुरे हालात में अपने दिन गुजार रहे हैं।
कल्पना कीजिये डॉ बरुआ का एक्सपेरिमेंट जिसे दुनिया ने पागलपन बताया आज क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है। लेकिन डॉक्टर बरुआ आज भी बात करने के हालातों में नहीं हैं।