एशिया-प्रशांत में ड्रैगन के बढ़ती दादागिरी के चलते UK बढ़ायेगा अपने न्यूक्लियर वेपन

एजेंसिया/न्यूज डेस्क (पार्थसारथी घोष): एशिया प्रशांत क्षेत्र में ब्रिटेन (UK) को लगातार बढ़ रहे चीनी वर्चस्व से भारी परेशानी महसूस हो रही है। संभावित समारिक चुनौतियों और क्षेत्रीय शक्ति संतुलन (Strategic challenges and regional power balance) के लिए ब्रिटेन अपने परमाणु शस्त्रागार इज़ाफा करने जा रहा है।हालांकि ब्रिटेन ने खुलकर इसके लिए बीजिंग का नाम नहीं लिया। ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने खुला ऐलान किया कि वो अपने परमाणु जखीरे में 40 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा करेंगे। मौजूदा वैश्विक हालातों को देखते हुए हथियारों की दौड़ को लेकर कई देशों ने अपनी नीतियां बदली हैं। अब ब्रिटेन भी इसी फेहरिस्त में शामिल होने जा रहा है।

यूनाइटेड किंगडम ने परमाणु शस्त्रागार (United Kingdom nuclear arsenal) सीमित और निर्धारित करते हुए साल 2010 के दौरान परमाणु हथियारों की संख्या को 180 पर तय कर दिया था। माना जा रहा है कि ब्रिटिश पीएम का मौजूदा बयान वैश्विक परमाणु हथियारों की होड़ में तेजी ला सकता है। ब्रिटेन ने परमाणु हथियारों को लेकर अपनी नीति में बदलाव करना, पिछले साल की छमाही से ही शुरू कर दिया था। जिसके तहत परमाणु हथियारों की संख्या में 40 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा किया जाना तय किया गया।

ब्रिटेन का मानना है कि सुरक्षा समीक्षा के दौरान कई बड़े संभावित जोखिम और खतरे (Major Potential Risks and Dangers) उसे उभरते हुए नजर आ रहे हैं। जिससे निपटने के लिए ये कदम उठाना जरूरी हो गया। साथ ही ये कदम ब्रिटेन के सहयोगी देशों में सुरक्षा का भाव भी लायेगा। ब्रिटेन के मुताबिक कई मुल्क काफी तेजी से परमाणु हथियार बनाने और उसे संर्वधित करने में लगे हुए हैं। ऐसे में इस दौड़ में पिछड़ने के कई गंभीर नतीजे हो सकते हैं। जिसके चलते ये कदम उठाया गया।

इसके साथ ही ब्रिटेन दूसरे मोर्चे पर होमलैंड सिक्योरिटी के लिए नया हेड क्वार्टर बनाने की कवायद में जोर शोर से लगा हुआ है। ब्रिटिश होमलैंड सिक्योरिटी विभाग कट्टरपंथी आतंकवाद, केमिकल और बायोलॉजिकल हमले से रोकथाम के लिये भी अपने संसाधनों में इजाफा करेगा। कई ब्रिटिश सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले 10 सालों में उनके देश को आतंकवाद की नयी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। जिसके लिए अभी से तैयारी किया जाना बेहद जरूरी है।

ब्रिटेन के इस रवैये से साफ हो गया है कि, वो ड्रैगन के बढ़ते वर्चस्व को सीधी चुनौती देना चाहता है। खासतौर से एशिया पैसिफिक इलाके में। ब्रेक्जिट की कवायद के बाद ब्रिटिश जॉनसन सरकार ने अपनी विदेश नीतियों की प्राथमिकता सूची में कई बड़े बदलाव किये। इन्हीं बदलावों के तहत ब्रिटिश विदेश मंत्रालय ने एक दस्तावेज तैयार किया। जिसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि ब्रिटेन अमेरिका के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को और भी ज्यादा मजबूत बनाये जिससे कि ड्रैगन की बढ़ते विस्तारवाद पर नकेल कसी जा सके।

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