नई दिल्ली (शौर्य यादव): देशभर में Corona महामारी फैले हुए तकरीबन 6 महीने पूरे होने वाले है। पूरे देश में रोजाना होने वाली गतिविधियां अभी भी इससे काफी प्रभावित है। वेबसाइट वार्ल्डोमीटर के मुताबिक भारत में बीते शनिवार रात 10 बजे कोरोना संक्रमण के कारण 50080 लोगों की मौत हो गयी। इस बीच डराने वाली बात ये भी सामने आ रही है कि, भारत में कोरोना वायरस के दो घातक नये स्वरूप सामने आये है, जिनकी जीनोम संरचना पर अध्ययन का काम तेजी से चल रहा है। CSIR-जिनोमिकी और समवेत जीवन विज्ञान संस्थान (Institute of Genomics and Concurrent Life Sciences) और चिकित्सा विज्ञान संस्थान की संयुक्त टीम इनकी जेनेटिक कोड को समझने में लगी हुई है। भले ही देश में मृत्युदर और रिकवरी के आंकड़े संतोषजनक हो लेकिन नये संक्रमण के मामलों पर लगाम कसना बेहद जरूरी है। ऐसे में देश की उम्मीदें तीन वैक्सीनों पर लगी हुई है। इन्हीं के दरोमदार पर देश में कोरोना के खिलाफ जंग लड़ी जायेगी।
Zydus Cadila (Zaykov-D)
अहमदाबाद की Pharmaceutical company Zydus Cadila की Vaccine Zaykov-D का Human clinical trial अभी जारी है। कंपनी के मुताबिक, आम जनता के लिए वैक्सीन के पहली खेप अगले साल तक लांच हो सकती है।कम्पनी द्वारा विकसित वैक्सीन में Genetically engineered plasmid का इस्तेमाल किया गया है। इसके एटोमिक पार्टिकल खुले तौर पर अनुवांशिक प्रतिकृति (Genetic replication) तैयार नहीं कर पाते है। जिससे मानवीय प्रतिरोधक क्षमता (Human immunity) वायरस के खिलाफ तैयार हो जाती है। साथ जेनेटिक मेमोरी (Genetic memory) में वायरस की जानकारियां संग्रहित हो जाती है, जिससे शरीर खुद ही वायरस के खिलाफ खुद को अपग्रेड कर लेता है। अनुवांशिक इंजीनियरिंग (Genetic engineering) की मदद से तैयार इस वैक्सीन में SARS COV-2 virus श्रेणी के सभी वायरसों के कवरअप हो जाते है। साथ ही ये कोरोना वायरस की मारक क्षमता को बेहद सामान्य स्तर पर ले आती है।
Bharat Biotech/Indian Council of Medical Research (Kovaxin)
हैदराबाद की Pharmaceutical company Bharat Biotech और Indian Council of Medical Research (आइसीएमआर) संयुक्त रूप से इस वैक्सीन को विकसित कर रहा है। इसका ह्यूमन ट्रायल शुरू हो चुका है। कोवाक्सिन नामक ये टीका वायरस की जैविकीय क्षमता (Biological ability) खत्म कर देता है। जिसकी वज़ह से दीर्घकालीन अवधि तक संक्रमण की संभावनायें ना के बराबर रहती है। अगर इंफेक्शन हो भी गया तो इंसानी प्रतिरक्षा प्रणाली उसके खात्मे के लिए तैयार रहेगी। टीके के प्रभाव से वायरस के खिलाफ लड़ाई में Immune system काफी कारगर ढंग से काम करेगा। वैक्सीन के संवर्धन में सार्स-सीओवी-2 एक खास प्रकार का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसे वायरस की मूल जैविकीय संरचना से National Institute of Virology में अलग किया गया था। साथ ही इसकी मॉलिक्यूलर स्टडी (Molecular study) का काम भी NIV-Pune में संपन्न किया गया था। Bharat Biotech के मुताबिक इस टीके के परीक्षण में 15 महीने से ज़्यादा का समय लगेगा।
Oxford University और AstraZeneca
Oxford University और AstraZeneca द्वारा संयुक्त रूप से विकसित इस वैक्सीन का भारत में परीक्षण करने का कार्यभार पुणे की सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (Serum Institute of India) को सौंपा गया है। देशभर में इसके मानवीय परीक्षण करने की मंजूरी Drug Controller General of India ने दे दी है। फिलहाल इसे टीके का दुनिया भर में ह्यूमन ट्रॉयल चल रहा है। अमेरिका और ब्राजील में ये टीका मानवीय परीक्षण के तीसरे स्तर पर पहुँच चुका है। कयास लगाये जा रहे है कि, निर्धारित पैमाने पर इसके ह्यूमन ट्रायल का काम नंवबर महीने तक पूरा हो जायेगा। इसमें इस्तेमाल किया गया वायरस भी आनुवांशिक प्रतिकृति तैयार नहीं करता है। डीएनए सिक्वेसिंग (DNA sequencing) में इंसानों के बेहद करीबी चिम्पैंजी को ये वायरस को प्रभावित करने वाले सामान्य वायरस का इस्तेमाल इसे वैक्सीन को विकसित करने में किया गया है। इसकी मदद से कोरोना वायरस का स्पाइक प्रोटीन इंसानी ऊतकों को नहीं भेद पाता है। साथ ही इसकी प्रोटोनिक संरचना प्रतिरक्षा तन्त्र की ज़वाबी प्रतिक्रिया में तेजी लाती है (Protonic structure accelerates the immune system’s response)।
इन सबके बीच कथित रूप से बाज़ी मारते हुए स्पूतनिक-5 रूसी वैक्सीन (Sputnik-5 Russian Vaccine) ने सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए पहली खेप तैयार कर ली है। जिसकी औपचारिक जानकारी रूसी स्वास्थ्य मंत्रालय ने बीते रविवार को दी। वैज्ञानिकों का एक बड़ा वर्ग ये मानता है कि रूस वैक्सीन विकसित करने की वैश्विक दौड़ में खुद को विजेता घोषित करने के चक्कर में निर्धारित मानकों को अनदेखी (Ignore set standards) कर रहा है।