Shanidev: शनि शिंगणापुर एक छोटा-सा गांव है, लेकिन बहुत खास बना हुआ है। 4 कुल के लोग शादी-ब्याह में एक-दूसरे की लड़की ले-देकर खून के रिश्तेदार, सगे संबंधी बने हुए हैं। यहां के लोग सभी मेहमानों की खातिरदारी और हृदयपूर्वक आवभगत करते हैं।
श्री शनिदेव की लोहा एवं पत्थरयुक्त दिखाई देने वाली काले वर्ण वाली 5 फुट 9 इंच लंबी तथा 1 फुट 6 इंच चौड़ी प्रतिमा जो कि आंगन में धूप, ठंडक तथा बरसात में रात-दिन खुले आकाश के नीचे है। इसके बारे में स्थानीय बुजुर्गों से सुनने में मिला है कि ये लगभग 350 सालों पहले शिंगणापुर (Shani Shingnapur) में मूसलधार और घमासान बारिश में प्रकट हुई। उस दौरान बारिश इतनी तेज हुई थी कि सामने से कुछ साफ दिखाई नहीं दे रहा था।
खेती पूरी तरह से पानी तथा बाढ़ से बह गयी थी। किसी ने सोचा भी नहीं था कि इतनी तेज बारिश होगी। शायद अब तक वहां इतनी बारिश कभी हुई ही नहीं। नतीजन इस छोटे से देहात के आसपास बाढ़ आयी और गांव के बगल से ‘पानसनाला’ बहता था। मौजूदा श्याम वर्ण पत्थरनुमा श्री शनि भगवान की मूर्ति इसी बाढ़ में बहकर आयी और पड़ोस के ही बेर के पेड़ से अटककर रूक गई।
वर्षा कम होते ही बाढ़ भी कम हुई, कुछ लोग अपनी झोपड़ी से बाहर निकले। ईश्वर की कृपा से अच्छी बारिश हुई, कहकर संतुष्ट हुए। गांव में खेती के साथ-साथ पशुपालन भी व्यवसाय है अत: गायें, भैंसें आदि चराने के लिये कुछेक गोपाल चरवाहे मवेशी चराने के लिये ‘पानस-नाला’ के किनारे पर गए।
वहां उन्हें बेर के पेड़ में से एक काले रंग की बड़ी शिला दिखायी दी। इसे देखते ही वे दांतों तले उंगली दबाने लगे कि इतनी बड़ी शिला यहां बहते-बहते कैसे अटक गयी? उन्होनें इसे एक दूसरे को दिखाया, करते-करते 4-5 गोपाल इकट्ठे हुए। बातचीत के बाद उन्होंने जिज्ञासावश अपनी लाठी की नोंक से शिला को स्पर्श किया, कुरेदते ही उस स्थान से टपटप खून बहने लगा।
फलस्वरूप वहां एक बड़ी चोट के कारण जख्म दिखायी दिया। वो आघात स्पष्ट प्रतिबिम्बित हो रहा था। खून को बहते देखकर लड़के डरने लगे। कुछेक तो रक्तस्राव को देखकर भागने लगे थे। वो अपनी गायों को छोड़कर सकपकाते हुए भागकर गांव में आये। गांव में बुजुर्ग, अभिभावक और उनके माता-पिता पूछने लगे कि क्या हुआ? डरते क्यों हो? भागकर क्यों आये? अपनी गायें कहां हैं?
थोड़ी ही देर के बाद उन्होंने शनि शिला के चमत्कार की बात कह सुनायी। हकीकत सुनकर बड़े भी हैरान रह गये। शिला के रक्तस्राव की खबर हवा की तरह आसपास के इलाके में फैल गई। सारे लोग घर छोड़कर वो करिश्माई शिला देखने पहुंच गये। मौजूदा चमत्कार को तो देखते ही रहे। सोचने लगे कि अब क्या किया जाये?
शाम ढलते ही रात होने लगी थी। सब लोग वापस अपने घर चले गये कि कल सुबह कुछ करेंगे। इस फैसले के साथ लोग रात में खा-पीकर सो गये। सोए तो सही लेकिन मौजूदा अलौकिक घटना के कारण रातभर किसी को अच्छी नींद नहीं आयी। कुछ लोग रतजगा करते रहे तो कुछेक अनिच्छा से आंखें बंद कर सोने जा रहे थे, तो कुछेक अलसाये हुए निद्रा की झपकी ले रहे थे कि…!
अचानक उसी रजनी बेला में एक स्थानीय निवासी को थोड़ी-सी नींद आयी और नींद में श्याम ने जो चमत्कार देखा था, उसी संदर्भ में सपने में उससे शनिदेव ने जो बातचीत की, उसका अंश इस तरह है- ‘कल तुमने गांव वालों ने, गोपालों ने जो कुछ देखा है, वो सब सच है।’ ‘आप कौन बोल रहे हैं?’ ‘भक्त, मैं साक्षात शनिदेव बोल रहा हूं। मुझे वहां से ले उठाइये और मेरी प्रतिष्ठापना कीजिए- इति शनि भगवान।’
दूसरे ही दिन उस भक्त ने गांव के लोगों को अपने सपने के बारे में बताया किया जिसे सुनकर लोग दंग हुए। उस भक्त के कहने पर गांव के लोग बैलगाड़ी लेकर मूर्ति के पास पहुंचे। जो बेर के पेड़ में अटकी हुई थी। मूर्ति को उठाकर बैलगाड़ी में चढ़ाने की कोशिश की लेकिन वो कामयाब नहीं हुए। सभी निराश और हताश हुए। दिनभर प्रयत्न करने के बावजूद प्रतिमा टस से मस नहीं हुई। आखिर में मूर्ति गाड़ी में न चढ़ने के कारण लोग मायूस होकर अपने-अपने घर लौट आये।
दूसरे दिन फिर शनि भगवान ने अपने उसी भक्त के स्वप्न में आकर निवेदन किया कि बेटा, मैं उस स्थान से तभी उठूंगा, जो उठाने वाले रिश्ते में सगे मामा-भानजे हों। वो ही मुझे उठाकर कटी हुई बेर की डाली पर डालेंगे। दूसरा जो बैल जोतेंगे, वे काले वर्ण के हों और वो भी रिश्ते में मामा-भानजे हो। भक्त की नींद खुली तो उसने पाया कि वो तो रात की नींद में रहा, सुबह उठकर उसने ये बात गांव वालों को बतायी और गांव वालों ने भी सपने के मुताबिक ही आगे की कार्रवाई की।
तब कहीं मूर्ति कटी हुई बेर की डाली पर डाली गई। ये कितने ताज्जुब की बात रही कि जहां पहले मूर्ति को एकसाथ अनेक लोगों द्वारा उठाने का प्रयास व्यर्थ रहा। जब सिर्फ सगे मामा-भानजे उसे उठाने लगे तो वो इसमें कामयाब हो गये।
मनुष्य स्वभाव या भक्त के एक स्वभाव की बात यहां देखने लायक है। जिस भक्त के सपने में शनिदेव आते रहे, उसने मन ही मन में उस मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा अपनी ही जमीन में करने की पूरी कोशिश की, लेकिन उस जमीन पर से मूर्ति जरा भी हिलने को तैयार नहीं थी। अत: आज जिस स्थान पर मूर्ति शोभायमान है, उसी स्थान पर आते ही हलचल हुई और मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा संपन्न हुई।
इस चमत्कार के गवाह तब गांव के सारे लोग थे। कई दिनों तक मूर्ति जमीन पर मामूली चबूतरे पर थी। अब जो चबूतरा दृष्टिगोचर हो रहा है, वो तब नहीं था। इसका भी एक किस्सा है- सोनई (Sonai) के एक भक्त हैं, श्री जवाहरमल (Sh. Jawaharlal), धनी होने के बावजूद उन्हें पुत्ररत्न नहीं था।
अत: उन्होंने श्री शनिदेव से हाथ जोड़ प्रार्थना की कि ‘अगर मुझे बेटा हुआ तो मैं यहां एक सुंदर-सा चबूतरा बना दूंगा।’ प्रकृति में ऐसा खेल हुआ। शनिभक्त जवाहरमल सेठ को कुछेक दिनों बाद पुत्र होने के संकेत मिले, तब उसने फौरन यहां चबूतरा बना दिया।
यहां ये गौरतलब कि जब चबूतरे का निर्माण चल रहा था, तब कुछेक भक्तों ने ये निवेदन किया कि अब काम चल ही रहा है तो क्यों न प्रतिमा को पूरी नीचे से निकालकर अच्छा-सा चबूतरा बनाया जाये और फिर प्रतिष्ठित करें? जी हां, ना-नुकूर में कुछेक भक्तों ने अंदर खोदकर मूर्ति को पूरी निकालने की कोशिश की, लेकिन कोशिशें नाकाम रही।
नीचे काफी खुदाई की, फिर भी मूर्ति और भी नीचे दिखती रही, टस से मस नहीं हुई। महान आश्चर्य को देखकर सभी ने शनिदेव की पुन: प्रार्थना की कि हमारा मार्गदर्शन करें। फिर एक भक्त को दृष्टांत हुआ जिसमें आदेश था कि केवल चबूतरा बनाओ, मुझे उठाने या हिलाने का प्रयत्न न करें।
फलस्वरूप मूर्ति के चारों ओर तीन फिट का चबूतरा बनवाया गया। अत: आज हमें श्री शनिदेव की मूर्ति जितनी ऊपर दिखाई देती है, उतनी नीचे भी है।