EPFO के इस नियम ने उच्च पेंशन का विकल्प चुनना लगभग नामुमकिन बना दिया

न्यूज डेस्क (विश्वरूप प्रियदर्शी): कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) ने हाईयर पेंशन के लिये साइन अप करने के लिये सब्सक्राइबर्स के लिये अपने एकीकृत पोर्टल को एक्टिव कर दिया है, लेकिन प्रक्रियात्मक पेचीदियों की वजह से आवेदन करना लगभग नामुमकिन सा हो गया है।

3 फरवरी को एक आरटीआई (RTI) के जवाब में, रिटायरमेंट फंड बॉडी ने कहा कि मार्च 1996 में योजना की शुरुआत के बाद से उसे एक भी आवेदन नहीं मिला है। एक क्लॉज के तहत मंजूरी के लिये अब उच्च पेंशन के लाभ का दावा करना जरूरी है।

इस प्रावधान के लिये कर्मचारियों और नियोक्ताओं को कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) योजना, 1952 के तहत भविष्य निधि के लिये निर्धारित वैधानिक सीमा के बजाय अपने वास्तविक मूल वेतन (Actual Basic Pay) पर उच्च राशि का योगदान करने के लिये संयुक्त रूप से ईपीएफओ से पूर्व मंजूरी लेनी होगी।

सालों से सरकार पीएफ अंशदान (PF Contribution) की सीमा बढ़ा रही है, जो कि जून 2001 तक 5,000 रुपये थी, जिसे सितंबर 2014 से बढ़ाकर 6,500 रुपये और 15,000 रुपये कर दिया गया। इसका मतलब है कि सीमा के बावजूद आप अपने वास्तविक मूल वेतन 12 फीसदी ही योगदान कर जमा सकते हैं। नियोक्ता की ओर से समान योगदान पीएफ के लिये किया जाता है। ये तभी किया जा सकता है, जब नियोक्ता और कर्मचारी को ईपीएफओ से पूर्व मंजूरी मिली हो।

इश प्रावधान के तहत कितने कर्मचारियों या सदस्यों ने संयुक्त विकल्प का इस्तेमाल किया, इस सवाल के जवाब में ईपीएफओ ने कहा कि- मौजूद कार्यालय रिकॉर्ड के मुताबिक 16 मार्च 1996 से 31 दिसंबर 2022 की अवधि के दौरान ईपीएफ योजना 1952 के पैरा 26 (6) के तहत लिखित रूप में कोई भी आवेदन नहीं मिला है। ईपीएफओ ने ये भी कहा कि उसके पास 31 मार्च 2022 तक कुल सेवारत कर्मचारियों या सेवानिवृत्त और पेंशनभोगियों की तादाद के बारे में कोई जानकारी नहीं है, जिन्होंने इस खंड के तहत संयुक्त विकल्प का इस्तेमाल किया हो।

बता दे कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसले के बाद ईपीएफओ ने उच्च पेंशन विकल्प चुनने के लिये चार महीने का समय और बढ़ाया है। ईपीएफओ ने अब इस प्रावधान को खोला है, जो कि शीर्ष अदालत के आदेश के बाद लागू हुआ।

इसके तहत कर्मचारी पेंशन (Employee Pension) के ग्राहकों को अनुमति देना शामिल है, जो कि पिछले पांच सालों की सर्विस के लिये औसत वास्तविक मूल वेतन के आधार पर पेंशन का विकल्प चुनते है। फैसले को लागू करने का मतलब है कि कोई व्यक्ति जो कि 33 सालों तक ईपीएफओ का सदस्य रहा है, वो पेंशन के तौर पर पांच साल के औसत का 50 फीसदी पेंशन पाने की उम्मीद कर सकता है, बशर्ते सदस्य मानदंडों का पालन करता हो।

सेवानिवृत्ति बचत एजेंसी ने पूर्वव्यापी असर से आपके वास्तविक मूल वेतन के आधार पर पीएफ योगदान के लिये “पूर्व अनुमोदन” के प्रावधान को लागू करने का फैसला किया है, जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने खासतौर से इसका जिक्र नहीं किया था।

इस प्रावधान से ग्राहकों के लिये उच्च पेंशन का विकल्प चुनने में रूकावटें पैदा होने की उम्मीद है, क्योंकि एजेंसी से ऐसी मंजूरियां आम नहीं हैं, भले ही कर्मचारियों और उनके नियोक्ताओं ने अपने वास्तविक या उच्च वेतन पर दशकों से योगदान दिया हो।

मिसाल के लिये ज्यादातर कंपनियां अपने खुद के भविष्य निधि ट्रस्टों के साथ सीमा की परवाह किये बिना ही अपने कर्मचारियों के वास्तविक वेतन के आधार पर योगदान करती हैं। ईपीएफओ कई सालों से वास्तविक वेतन के आधार पर इन योगदानों पर प्रशासनिक शुल्क लेता रहा है, और कभी भी ईपीएफ योजना के तहत इस प्रावधान का मुद्दा नहीं उठाया गया।

कई मामलों में ईपीएफओ ने न सिर्फ निजी ट्रस्टों से, बल्कि गैर-छूट वाले प्रतिष्ठानों के कर्मचारियों से भी इन शुल्कों को मंजूर किया है, जिनका योगदान सीधे क्षेत्रीय पीएफ आयुक्तों की ओर से नियंत्रित किया जाता है। इन मामलों में भी ईपीएफओ की पूर्व अनुमति के बिना वास्तविक वेतन पर योगदान दिया गया है।

जनवरी 2019 में ईपीएफओ ने अपने क्षेत्रीय पीएफ आयुक्तों को अपने परिपत्र में ईपीएफ योजना 1952 के पैरा 26 (6) के तहत प्रावधान के लागू करने पर जोर देने से रोकने के लिये कहा था। जारी किये गये इस सर्कुलर में कहा गया था कि-  “…अगर किसी नियोक्ता और कर्मचारी ने कर्मचारी और नियोक्ता के संयुक्त विकल्प के बिना वैधानिक वेतन सीमा से ज्यादा सैलरी पर ईपीएफ योजना 1952 के तहत योगदान दिया है, और संबंधित कर्मचारी के ईपीएफ खाते को आधार पर ईपीएफओ की ओर से अपडेट है तो इस तरह के योगदान के बाद कर्मचारी, नियोक्ता और ईपीएफओ की कार्रवाई से ये माना जा सकता है कि कर्मचारी और नियोक्ता के संयुक्त विकल्प का इस्तेमाल किया है। साथ ही ये भी माना जायेगा कि ईपीएफओ ने इसे मंजूर किया है,”

बता दे कि इस सर्कुलर को केंद्रीय क्षेत्रीय पीएफ कमिश्नर राजेश बंसल (Central Regional PF Commissioner Rajesh Bansal) ने 22 जनवरी, 2019 को जारी किया था। हालांकि इस परिपत्र को बिना पर्याप्त स्पष्टीकरण के एक महीने से भी कम समय के बाद सरसरी तौर पर वापस ले लिया गया था।

ईपीएफओ के ताजातरीन आदेशों में पैरा 26(6) के तहत अनिवार्य अनुपालन के आग्रह ने आवेदकों और विशेषज्ञों को भ्रमित कर दिया है। ईपीएफओ के कदम से कर्मचारियों का एक बड़ा हिस्सा निकल जायेगा, जो कि उच्च पेंशन का विकल्प चुनने के इच्छुक हैं, क्योंकि न तो उनके पास और न ही उनके नियोक्ताओं के पास वो मंजूरियां हैं जो अभी मांगी जा रही हैं।

पिछले हफ्ते सीआईआई (CII) के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत के दौरान क्षेत्रीय पीएफ आयुक्त अपराजिता जग्गी (Regional PF Commissioner Aparajita Jaggi) ने ये नहीं बताया कि उच्च पेंशन विकल्प का इस्तेमाल करने के लिये ईपीएफओ से मंजूरी को आवश्यक पूर्व शर्त क्यों बनाया जा रहा है? इस हफ्ते की शुरुआत में ईपीएफओ ने सदस्यों के लिये ईपीएस के तहत उच्च पेंशन के लिये साइन अप करने की समय सीमा 3 मई तक बढ़ा दी थी। हालांकि ये अभी तक पेंशन जमा करने और कैलकुलेशन करने के तौर तरीकों को अभी तक साफ नहीं किया गया है।

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