नई दिल्ली (समरजीत अधिकारी): साल 2021 में होने वाले जापान (Japan) ओलंपिक गेम्स के मद्देनज़र टोक्यो एक फैसला लेने जा रहा है। जिससे पूरी दुनिया के पर्यावरण विशेषज्ञ काफी परेशान है। साल 2011 में आयी ज़बरदस्त सुनामी की वज़ह से फुकुशिमा दाइची न्यूक्लियर प्लांट पर काफी असर पड़ा, जिससे उसकी पावर जेनेरेशन करने की कैपिसिटी तकरीबन खत्म हो गयी। साथ ही टोक्यो इलेक्ट्रिक पावर कंपनी के फुकुशिमा दाइची न्यूक्लियर प्लांट (Tokyo Electric Power Company’s Fukushima Daiichi Nuclear Plant) के पास भारी मात्रा में (करीबन 10 लाख टन) में रेडियो एक्टिव कचरा इकट्ठा हो गया। अब जापान सरकार इसी कचरे को ठिकाने लगाने के लिए इसे समुद्र में बहाने की तैयारी कर रही है। जिसे लेकर दुनिया भर से बगावती सुर बुलंद होने लगे है। फिलहाल जापान सरकार और जापानी उद्योग मंत्री हिरोशी काजियामा (Japanese Industry Minister Hiroshi Kaziyama) की ओर से इस मामले पर अभी तक औपचारिक तौर पर कोई घोषणा नहीं की गयी है। लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट्स (रॉयटर्स) के मुताबिक जल्द ही इस काम को अंजाम दिया जायेगा।
जापानी स्थानीय मीडिया में चल रही खब़रों के मुताबिक जापान सरकार इस कदम को उठाने के लिए फैसला ले चुकी है। लोकल मीडिया में ये खब़रे गर्म है कि परमाणु संयंत्र को जल्द से जल्द शुरू करने की जरूरत है। जिसके लिए ऊर्जा सलाहकारों के कहने पर सरकार ने ये फैसला लिया है। फिलहाल इस काम के लिए कोई निर्धारित समय सीमा तय नहीं की गयी है। संयंत्र में साफ अभियान के दौरान इस न्यूक्लियर कचरे (Nuclear waste) को धड़ल्ले से समुद्र में बहाया जायेगा। जिससे जलीय जीवन और पारिस्थितिक तन्त्र पर भारी खतरा (Heavy threat to aquatic life and ecological system) मंडरा रहा है। इस काम में शामिल की गयी सरकारी एजेंसियां स्थानीय मछुआरों के हितों के देखते हुए उनसे वार्ता करेगी, जिसके लिए पैनल तैयार करने पर बात चल रही है। दोनों ओर से न्यूनतम साझा बिन्दुओं (Minimum common points) पर आम सहमति बनने के बाद सरकार इस कवायद का खुला ऐलान कर देगी।
कोरोना महामारी के कारण स्थगित हुए ओलपिंक खेल साल 2021 में शुरू किये जायेगें। आयोजन स्थल से फुकुशिमा दाइची न्यूक्लियर प्लांट की दूरी महज़ 60 किलोमीटर दूर है। जहां न्यूक्लियर कचरा पड़ा हुआ है। विशेषज्ञों के मुताबिक अगर तयशुदा प्रोटोकॉल्स (Default protocols) का पालन किया गया तो इस काम को अन्ज़ाम देने में लंबा समय लग सकता है। जापान से लगे पड़ोसी देश भी इस काम के खिलाफ खड़े हो सकते है क्योंकि कोई भी देश अपने समुद्री पानी को जहरीला नहीं बनाना चाहेगा। जापानी मछुआरों की यूनियन ने इस कवायद के खिलाफ सरकार को पत्र भी लिखा है। फुकुशिमा प्लॉन्ट से फैली रेडियोएक्टिव के कारण ही दक्षिण कोरिया ने अपने देश में समुद्री भोजन पर पाबंदी लगा रखी है। साथ दक्षिण कोरियाई सरकार (South Korean Government) ने जापान से इस रेडियोएक्टिव कचरे के निपटान से जुड़ा स्पष्टीकरण भी मांगा था। मौजूदा वक्त में फुकुशिमा प्लॉन्ट से निकले हजार से भी ज्यादा टैंक रेडियोधर्मी पानी से भरे हुए है। जिनका निपटारा करने के लिए समुद्र में खास किस्म का निर्माण कार्य करना होगा। फिलहाल देखना ये दिलचस्प है कि अन्तर्राष्ट्रीय जगत से इस जापानी कवायद के खिलाफ किस तरह की आवाज़े बुलंद होती है और टोक्यो पर उनका कितना दबाव बन पाता है।