Somvati Amavasya: आज है पंचग्रही योग में सोमवती अमावस्या, जानें इसका महत्त्व और विधि

न्यूज डेस्क (यथार्थ गोस्वामी): हिन्दू मान्यताओं में जिस सोमवार को अमावस्या पड़ती है। उसे सोमवती अमावस्या (Somvati Amavasya) के नाम से जाना जाता है। मार्गशीर्ष में सोमवती अमावस्या पड़ने के कारण इसका महात्मय दुगुना हो गया है। ये साल 2020 की आखिरी सोमवती अमावस्या है। इस शिव परिवार (भगवान शिव, माँ पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और नंदी ) की आराधना के विशेष प्रावधान निर्धारित किये गये है। सुहागिन महिलायें अखंड सौभाग्यवती होने के लिए इसका दिन का वस्त्र करती है। इसके साथ ही सभी जातक इपने पितरों के कल्याण और मोक्ष दे लिए दान, पुण्य, स्नान और ध्यान जैसे धार्मिक कार्यों को पूर्ण करते है।

आज के दिन व्रत और पूजन के निमित्त मात्र से कुंडली में पितृ दोष और संतानहीन योग का उन्मूलन होता है। इसके साथ ही जातकों का इस व्रत अवश्य रखना चाहिए। मार्गशीर्ष की अमावस्या माँ लक्ष्मी को भी अत्यन्त प्रिय है। अत: इस लक्ष्मी-नारायण की संयुक्त आराधना और पूजन के भी विधान है। कुछ लोग इस दिन सत्यनारायण की कथा (Katha of satyanarayan) भी अपने घरों में करवाते है। आज पंचग्रही अमावस्या के योग बने है। इसके अन्तर्गत वृश्चिक राशि में सूर्य, चंद्र, बुध, शुक्र और केतु स्थिर रहेगें। सूर्य और चंद्रमा भी एक ही राशि में स्थिर रहेगें। ऐसे में अश्वत्थ प्रदक्षिणा व्रत का भी दिवस बनता है।

अश्वत्थ प्रदक्षिणा व्रत, अश्वत्थ को जनसाधारण की भाषा में पीपल का पेड़ कहा गया है। सुहागिन महिलायें पीपल के पेड़ की प्रदक्षिणा करते हुए लाल सूत को बांधती है। साथ ही दूध, जल, पुष्प, अक्षत और चंदन पीपल को अर्पित कर अंखड सौभाग्य की याचना करती है।

सोमवती अमावस्या का समय

14 दिसम्बर 2020

प्रात: 00:44 से रात्रि 21:46

इस दिन करें ये काम

  • पवित्र नदी, तालाब या कुंड में ब्रह्म मुहूर्त स्नान में करें। सूर्य नारायण को ताम्र-पात्र (Copper vessel) में अक्षत और जल अर्पित कर, अर्घ्य दे
  • गायत्री मंत्र का जाप करे तदोपरान्त भगवान शिव की आराधना करें। पितरों को तर्पण देते हुए उनके मोक्ष की याचना करें।
  • पूजा-पाठ के उपरान्त जरूरतमंदों को भोजन करवाये निर्धनों को वस्त्र दान करें। जिन लोगों के कुंडली में चन्द्रमा कमजोर है, वे सक्षम आचार्यों की सहायता, भगवान शिव की विशेष पूजा अर्चना करवाकर चंद्रमा को बलवान कर सकते है।
  • दक्षिणवर्ती शंख का पूजन करें। संध्याबेला में माँ तुलसी की आराधना कर, दीपदान करे।

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