न्यूज डेस्क (दिगान्त बरूआ): तालिबान के सात सबसे शक्तिशाली शख्सियतों में से एक शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकजई उत्तराखंड के देहरादून में प्रतिष्ठित इंडियन मिलिट्री एकेडमी (Indian Military Academy-IMA) में कैडेट थे। इसके साथ ही स्टानिकजई पिछले तालिबान शासन के दौरान उप विदेश मंत्री भी थे। दूसरे तालिबानियों के मुकाबले में ज़्यादा पढ़ा लिखा माना जाता है। आईएमए के 1982 बैचमेट्स उन्हें ‘शेरू’ नाम से पुकारते थे।
1970 के दशक में उन्हें भारत-अफगान रक्षा सहयोग कार्यक्रम के तहत आईएमए में ट्रेनिंग दी गयी। तब वो 20 साल के थे। उस दौरान स्टानिकजई 45 कैडेटों में से एक हुआ करते थे। साल 1963 में शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकजई (Sher Mohammad Abbas Stanikzai) का जन्म पश्तूनी परिवार (Pashtuni family) में अफगानिस्तान के लोगर प्रांत के बाराकी बराक जिले में हुआ। स्टानिकजई के बैचमेट मेजर जनरल डीए चतुर्वेदी (सेवानिवृत्त) ने बताया कि वो एक औसत अफगान कैडेट (Average afghan cadet) थे, जिसके देखने में दिलकश और मिलनसार थे। वो आईएमए में वक़्त का पूरा लुत्फ उठा रहे थे।
1980 के दशक में उन्होनें अफगान सेना में लेफ्टिनेंट का ओहदा छोड़ दिया और सोवियत सेना के खिलाफ "जिहाद" में शामिल हो गये। स्टानिकजई ने दक्षिण-पश्चिमी मोर्चे के तौर पर नबी मोहम्मदी के हरकत-ए इंकलाब-ए इस्लामी और अब्दुल रसूल सयाफ के इत्तेहाद-ए-इस्लामी के साथ लड़ाई को आगे जारी रखा। साल 1996 में तालिबानी सत्ता कायम होने के बाद स्टानिकजई को विदेश मामलों का उप मंत्री और बाद में विद्रोही शासन के सार्वजनिक स्वास्थ्य के उप मंत्री का कार्यभार सौंपा गया।
उस दौरान स्टानिकजई ने तेजतर्रार अंग्रेज बोलने वाले तालिबानी मुज़ाहिद्दीन की छवि बनायी लेकिन तत्कालीन विदेश मंत्री वकील अहमद मुत्तवकिल अब्दुल गफ्फार ने उन पर कभी भरोसा नहीं किया। जब अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन की खोज में अफगानिस्तान पर हमले शुरू किये तब अब्दुल गफ्फार तालिबान से अलग हो गये और स्टानिकजई का तालिबान में और अच्छा ओहदा और जिम्मेदारियां मिली। जिसके दम पर वो तालिबान के मुख्य वार्ताकार (chief negotiating board) मंडल में शामिल हो गये।