समाज में ज़हर फैलाती TV Debates, लगनी चाहिये रोक
संविधान हमें बोलने की आजादी देता है, लेकिन क्या हो अगर इसी आज़ादी की आड़ में आम जनता के दिमाग में नफरती ज़हर घोला जाये, लोगों को आपस में लड़वाया जाये, आम जनता के मुद्दे उठाने के नाम एजेंड़ा सेटिंग, नैरेटिव बिल्डअप, इमेज मेकओवर, पॉलिटिकल प्लॉटिंग, व्यक्तिगत बयानबाज़ी और गाली गलौज जैसी हरकतें होने लगे? साफ है इन पर लगाम लगनी चाहिये। यहीं सब आज कल टीवी डिबेट्स कर रही है। इन पर लगाम लगनी चाहिये, लगाम से हमारा मतलब है कि टीवी डिबेट्स का प्रसारण पूरी तरह रोक देना चाहिये।
दिल पर हाथ रखिये और खुद से दो सवाल पूछिये रोज प्राइम टाइम स्लॉट पर होने वाली टीवी डिबेट्स से आखिर भला किसका होता है? और क्या ये डिबेट्स वाकई ज़मीनी समस्यायों का हल करते है? पहले सवाल का ज़वाब है इनसे आम आदमी को भला तो कतई नहीं होता है। भला होता है तो सियासी पार्टियों का और कार्पोरेट पत्रकारिता करने वाले मीडिया संस्थानों का। ये मीडिया संस्थान काफी सोचे समझे तरीके से मैनेजमेंट, साइकोलॉजी, मार्केटिंग और बिग डेटा एनालिसिस का इस्तेमाल करके आपके दिमाग से खेलते है। कुछ देर बैठकर गौर से सोचियेगा तो पायेगें कि ये टीवी डिबेट्स इस कदर आपके दिमाग में नफरती बीज़ रोप देते है कि आप वहीं सोचते और करते है जो कि ये चाहते है।
समाचार देखिये, सुनिये और पढ़िये उसके बाद ही तय कीजिये आप लिये क्या अच्छा और क्या बुरा। कार्पोरेट पत्रकारिता के दबाव में जूझ रहा पूर्वाग्रहों से ग्रसित एंकर टीवी डिबेट्स करके आपकी सोच को कन्ट्रोल नहीं कर सकता है। अगर करता है तो आपको खुद में झांकने की जरूरत है। अगर आप टीवी डिबेट्स के जरिये अपना ओपियन बनाते है तो अच्छे जान लीजिये आपका वजूद खतरे में है। समाचार देखिये, सुनिये और पढ़िये उसके उसे जोड़ दीजिये अपनी जेब से, घर से और चूल्हे से अगर इन पर असर पड़ता है तो मुद्दा बनता अगर नहीं तो सब लफ़्फाज़ी है।
हम टीवी डिबेट्स पर पूरी तरह से रोक चाहते है
• क्योंकि ये सिर्फ नफरत, साम्प्रदायिकता, हिंसा और ज़हरीले बोल फैलाती है।
• इनसे किसी मुद्दे को हल नहीं निकलता है।
• बेलगाम प्रवक्ताओं के बोल देश में आग लगा देते है।
• टीवी डिबेट्स पॉलिटिकल मार्केटिंग का टूल है, जिसका एजेंड़ा सेटिंग और ओपियन मेकिंग के लिये होता है। ये जनसरोकार से काफी दूर होती है।
• कार्पोरेट पत्रकारिता वाले टीवी चैनल सेल्स, एडवरटाइजिंग, मीडिया मार्केटिंग और टीआरपी की चूहादौड़ में जनता के मुद्दे उठा ही नहीं सकते है।
• लगभग सभी टीवी डिबेट्स में गाली-गलौज, छींटाकशी, निजी हमले और हो-हल्ला होता है। ऐसे में टीवी डिबेट्स सार्थक है ही नहीं।
बतौर जिम्मेदार मीडिया संस्थान TNN अपनी जिम्मेदारी काफी गहराई से समझता है। इसलिये हमने इस मुद्दे को लेकर ये पहल शुरू की है। इसके जरिये आप नीचे दिए गये लिंक पर क्लिक कर ऑनलाइन पेटिशन (online petition) साइन करके इस मुहिम से जुड़ सकते है। बने जागरूक नागारिक खुद जुड़े और अपनों को भी जोड़े आज ही और अभी।