न्यूज़ डेस्क (हेमंत श्रीवास्तव): साइबर इंटेलिजेंस फर्म साइबल (Cyber intelligence firm cyble) ने मोबाइल एप ट्रूकॉलर (truecaller) को लेकर सनसनीखेज खुलासा किया है। साइबर इंटेलिजेंस फर्म के मुताबिक कुछ हैकर्स (Hackers) ने तकरीबन पौने पांच करोड़ भारतीयों का क्लासिफाइड डाटा (Classified data) मात्र ₹75000 में बेचा है। हैकर्स ने ये डाटा मोबाइल एप ट्रूकॉलर को हैक करके निकाला है। गौरतलब है कि इस ऐप की मदद से यूजर अज्ञात नंबरों की पहचान करते हैं। दूसरी ओर मोबाइल ऐप को संचालित करने वाली कंपनी ने ये दावा किया है कि- उनके डेटाबेस में किसी तरह की कोई सेंध नहीं लगी है। जिन आंकड़ों को बाजार में गैर कानूनी तरीके से बेचा जा रहा है, उसके साथ साजिशन ट्रूकॉलर का नाम जोड़ा गया है। ताकि डाटा खरीदने वाले के सामने सामने फर्जी विश्वसनीयता पेश की जा सके। आमतौर पर ट्रूकॉलर को लेकर ऐसी अफवाहें उड़ती रहती हैं। यूजर डेटा की गोपनीयता (Privacy) और सुरक्षा हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता (Highest priority) है। हमारा आईटी विभाग संदिग्ध गतिविधियों (Suspicious activities) की मॉनिटरिंग करता रहता है।
दूसरी ओर साइबल के मुताबिक बेचा जा रहा डाटा साल 2019 का है। बेचने वाला काफी विश्वसनीय है। लीक हुए डेटा में यूजर्स के मोबाइल नंबर, लैंगिक पहचान, फेसबुक आईडी, मोबाइल नेटवर्क और एरिया से जुड़ी जानकारियां हैं। साइबल पहले भी कई बार यूज़र डेटा के खुलासे सी जुड़ी जानकारियां देता रहा है। डेटा बेचने वाला शख्स डार्क वेब (Dark web) पर काफी सक्रिय है। ज्यादातर डेटा की खरीद-फरोख्त इसी माध्यम पर की जाती है। जानकारी पुख्ता होने की बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पहले भी साइबल ने फेसबुक और ऑनलाइन एजुकेशन वेबसाइट अनएकेडमी (Online education website unacademy) से यूजर डाटा लीक होने की जानकारी दी थी।
तकनीकी जानकारों के मुताबिक ज़्यादातर डेवलपर कंपनियां जो अपना ऐप गूगल प्ले स्टोर में मुफ्त में उपलब्ध करवाती है। वो यूजर का Data अपने पास रख लेती है। ये उनकी कमाई का दूसरा जरिया होता है। लेकिन इससे यूजर की निजता और वित्तीय सुरक्षा को काफी खतरा होता है। आमतौर पर ये डेटा मार्केटिंग कम्पनियां और वित्तीय ठगी (Financial fraud) करने वाले लोग खरीदते है। हाल ही में ट्रूकॉलर संचालित करने वाली कंपनी True Software Scandinavia AB Communication ने ऐप के माध्यम से Payment लेने-देने के विकल्प भी यूजर को दिये है। ऐसे में ये यूजर के विवेक के ऊपर है, वो इस ऐप को अपने मोबाइल में जगह देता है या नहीं।