UP Election 2022: उत्तर प्रदेश में पिछले तीन दिनों में भाजपा के तीन मंत्रियों समेत आठ विधायकों ने इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने जातिगत समीकरण के आधार पर पार्टी से इस्तीफा दिया है। ये सभी नेता पिछड़ी जातियों से हैं, और पांच साल मंत्री और विधायक रहने के बाद अब इन नेताओं को लगता है कि उनकी जातियों के साथ अन्याय हुआ है। अब वे एक नई तरह की सोशल इंजीनियरिंग (Social Engineering) करना चाहते हैं।
इन विधायकों और मंत्रियों के जाने से बीजेपी को कितना नुकसान होगा और अखिलेश यादव को कितना फायदा होगा? लेकिन इस विश्लेषण से पहले इसका सार एक पंक्ति में है- ”इन विधायकों के जाने से बीजेपी को उतना ही नुकसान होगा, जितना रात के कर्फ्यू से कोरोना वायरस को नुकसान होगा” अगर इस राजनीतिक घटनाक्रम (Political Events) को अच्छे से समझना है तो इसे तीन हिस्सों में बांटना होगा। सबसे पहले इन मंत्रियों और विधायकों के बीजेपी छोड़ने की असली वजह क्या है? दूसरा इससे बीजेपी को कितना नुकसान हो सकता है और अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) को कितना फायदा हो सकता है? तीसरी बात इस दलबदल से यूपी की जनता क्या हासिल करेगी? और मतदाताओं को कितना फायदा होगा?
उत्तर प्रदेश मौजूदा वक़्त में सियासी क्रिकेट मैच चल रहा है, जिसमें भाजपा को पल-पल बदलते नेताओं के स्कोर का सामना करना पड़ रहा है। पिछले तीन दिनों में बीजेपी की ओर से खेलने वाले आठ विधायक पार्टी छोड़ चुके हैं। इनमें से तीन नेता योगी सरकार में मंत्री थे। ये कोई मामूली दलबदल नहीं है। एक और बात यह है कि बीजेपी छोड़ चुके आठ विधायकों में से सात ओबीसी और एक दलित समुदाय से हैं।
इस दलबदल के पीछे सोशल इंजीनियरिंग का भी हाथ हो सकता है। सोशल इंजीनियरिंग शब्द का इस्तेमाल राजनीति में तब किया जाता है, जब समुदाय विशेष (Community Specific) के नेताओं को चुनाव में विशेष धर्म, जाति और समुदाय के मतदाताओं को एकजुट करने की सियासी कवायदों (Political Exercise) का ताना-बाना बुना जाता है। आपको लगता है कि एक गाँव में कुल पाँच मतदाता होते हैं, जिनमें से तीन एक विशेष धर्म या जाति के होते हैं। अब अगर इस गांव में चुनाव होते हैं और कोई पार्टी उस धर्म या जाति से आने वाले नेता को टिकट देती है तो उन्हें फायदा होगा। ये एक सामान्य गणित है, जिस पर पूरी राजनीति चलती है।
जिस तरह हमारे देश के युवा कॉलेज जाते हैं और इंजीनियरिंग की पढ़ाई करते हैं, उसी तरह हमारे देश के नेता समाज में लोगों के बीच रहते हैं और जातियों की इंजीनियरिंग (Engineering Of Castes) करते हैं। इसलिये अगर आपको लगता है कि इन मंत्रियों और विधायकों ने भाजपा छोड़ दी है क्योंकि वे सरकार और पार्टी में अपनी जातियों की उपेक्षा से नाराज थे तो आप गलत हो सकते हैं। असल में कुछ और वज़हें भी हो सकती है, जिन्हें बारीक विश्लेषणों से समझा जा सकता है।
पहली बात यह है कि इनमें से ज़्यादातर नेताओं के अपने टिकट कटने वाले थे। यानि बीजेपी में रहते हुए राजनीतिक अज्ञातवास (Political Anonymity) में जाने का उनको पहले ही पता लग चुका था, इससे पहले ही उन्होंने बीजेपी छोड़ दी। नेता हर चुनाव में दल बदलते हैं लेकिन अक्सर ये प्रवृत्ति तब देखी जाती है जब कोई पार्टी उम्मीदवारों की लिस्ट जारी करती है। वहीं बीजेपी ने अभी तक अपने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी नहीं की थी। यानि इन नेताओं को खबर मिली थी, इस बार इन्हें टिकट नहीं मिलने वाला है। बीजेपी छोड़ने के पीछे ये सबसे बड़ी वजह थी।
आपने माइग्रेट बर्ड्स (Migrate Birds/प्रवासी पक्षियों) के बारे में तो सुना ही होगा, जो मौसम के हिसाब से अपना ठिकाना बदल लेते हैं। ठीक इसी तरह चुनाव के दौरान पार्टी बदलने वाले नेताओं को प्रवासी पक्षी भी कह सकते हैं। ये मौसम और हवा के हिसाब से अपना ठिकाना भी बदलते रहते है। इन नेताओं को टिकट नहीं मिलने का खतरा था क्योंकि वे उत्तर प्रदेश में मौजूदा जातीय समीकरण (Caste Equation) में फिट नहीं होते हैं। इस बार मुस्लिम और यादव वोट बैंक एकजुट है। और ये वोट बैंक अलग-अलग पार्टियों में नहीं बंटेगा।
उत्तर प्रदेश में 18% मुस्लिम मतदाता और 10% यादव मतदाता हैं, जिन्हें यूपी की राजनीति में एम-वाई फैक्टर के तौर पर देखा जाना है। हालांकि एमवाय फैक्टर (MY Factor) का चीफ इंजीनियर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव माना जाता है न कि उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव। उन्होंने अपने राज्य में मुस्लिम, यादव वोट बैंक इंजीनियरिंग करके सरकारें बनायी थीं। और बाद में इस फॉर्मूले का इस्तेमाल दूसरे राज्य में किया गया।
हालांकि उत्तर प्रदेश में अब तक यही रुझान देखने को मिला था कि, मुस्लिम और यादव वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा तीन प्रमुख पार्टियों के बीच बंट गया था। एक है अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party), दूसरी है मायावती की बहुजन समाज पार्टी (Bahujan samaj party) और तीसरी है कांग्रेस (Congress)। लेकिन चुनावी पंडितों का मानना है कि इस बार उत्तर प्रदेश में इस 28 फीसदी वोट बैंक का बड़ा हिस्सा एकजुट रहेगा और अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी को समर्थन देगा और यही एक बड़ी वजह है कि तीन दिन में आठ विधायक बीजेपी छोड़ गये।
मिसाल के लिये स्वामी प्रसाद मौर्य (Swami Prasad Maurya) उत्तर प्रदेश में पडरुना सीट से 3 बार विधायक रहे हैं – दो बार बसपा से और एक बार भाजपा से। लेकिन माना जा रहा है कि इस बार बीजेपी में रहते हुए इस सीट से चुनाव लड़ने पर उन्हें डर था कि कहीं वो हार न जायें क्योंकि इस बार जातिगत समीकरण उनके खिलाफ हैं।
इस सीट पर यादव, मुस्लिम और अन्य जातियों के 27 फीसदी मतदाता हैं, जो समाजवादी पार्टी के पारंपरिक मतदाता (Traditional Voters of Samajwadi Party) माने जाते हैं। साथ ही ब्राह्मण वोटरों (Brahmin voters) की संख्या 19 फीसदी है, जो उनसे नाराज माने जाते हैं। यानि स्वामी प्रसाद मौर्य कुल 46% मतदाताओं के तितर-बितर होने का जोखिम नहीं लेना उठाना थे, इसलिये उन्होंने भाजपा छोड़ दी।
हालांकि साल 2017 के चुनाव में भी उन्हें इस खतरे का सामना करना पड़ रहा था और शायद इसीलिए उन्होंने उस समय बसपा छोड़कर बीजेपी से चुनाव लड़ा था और फिर बीजेपी में आकर मोदी के नाम पर चुनाव जीता। यानि जातियों का समीकरण था लेकिन मोदी फैक्टर भी काम कर रहा था। आप कह सकते हैं कि स्वामी प्रसाद मौर्य ने साल 2017 के खाके पर ही बीजेपी छोड़ने का फैसला किया है।
ऐसा ही योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री दारा सिंह चौहान के बारे में भी कहा जा रहा है, क्योंकि उनकी सीट पर यादव समुदाय (Yadav community) के 60,000 और मुस्लिम समुदाय (Muslim community) के 22,000 मतदाता हैं। अगर इन्हें मिला दिया जाये तो वोट 82,000 हो जाते हैं। अगर दारा सिंह को ये वोट नहीं मिले तो उनके लिये चुनाव जीतना मुश्किल हो जायेगा। बता दे कि दारा सिंह चौहान (Dara Singh Chauhan) मधुबन की जगह घोसी से टिकट मांग रहे थे और भाजपा ने उन्हें टिकट देने से साफ इनकार कर दिया था। जिसके चलते उन्होंने बीजेपी छोड़ दी।
जिस नकुड़ सीट से बीजेपी छोड़ रहे मंत्री धर्म सिंह सैनी विधायक हैं, वो मुस्लिम बहुल सीट (Muslim majority seat) है। इस सीट पर सबसे ज्यादा मुस्लिम वोटरों की संख्या 1.30 लाख है। धर्म सिंह सैनी को डर था कि अगर इनमें से आधे वोट भी सीधे समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को गये तो उनकी हार निश्चित है और इसी वजह से उन्होंने अपनी सीट बचाने के लिये बीजेपी छोड़ दी। एक और बात ये है कि बीजेपी ने इन नेताओं पहले ही साफ कर दिया था कि वो इस बार उन्हें टिकट नहीं देगी। साल 2017 का चुनाव धर्म सिंह सैनी (Dharam Singh Saini) ने महज 4,000 मतों के अंतर से जीता था। लेकिन वो अपनी ताकत का प्रदर्शन ऐसे करते रहे हैं, मानों कि पिछड़ी जाति (Backward Caste) के करोड़ों मतदाता उनकी मुट्ठी में हों और वे उनके कहने पर किसी भी पार्टी के साथ जायेगें।
स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान और धर्म सिंह सैनी योगी सरकार में मंत्री थे। तीनों पिछड़ी जातियों से आते हैं। ये तीनों साल 2017 के चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हुए थे और तीनों द्वारा दिये गये इस्तीफे का लहज़ा एक ही है। इन्हें पढ़कर लगता है कि इन तीनों इस्तीफे एक ही स्क्रिप्ट राइटर ने लिखे हैं।
आप यहां दो बातें समझ गये होंगे। पहले तो इन नेताओं ने या तो भाजपा छोड़ दी क्योंकि उन्हें डर था कि पार्टी उन्हें टिकट नहीं देगी। या वो दूसरी पार्टी में चले गये क्योंकि उन्हें लगा कि वो भाजपा में रहकर मतदाताओं के बीच जातीय संतुलन नहीं बना पायेगें। यानि इन नेताओं ने अपनी सीटें बचाने के लिये बीजेपी छोड़ दी।