UP Election 2022: दूसरे चरण में उत्तर प्रदेश के नौ जिलों की 55 सीटों पर 61.80 फीसदी मतदान हुआ। ये आंकड़े शाम छह बजे तक के हैं। और इसमें नाममात्र का कुछ बदलाव भी हो सकता है। पिछली बार इन सीटों पर करीब 65 फीसदी वोटिंग हुई थी। इस बार 3 फीसदी कम वोट पड़े। जिन नौ जिलों में मतदान हुआ, उनमें से सात जिलों में 30 फीसदी से ज़्यादा मुस्लिम आबादी है। मुरादाबाद और रामपुर (Moradabad and Rampur) में मुस्लिम आबादी 50 फीसदी से ज्यादा है। कुल मिलाकर देखा जाये तो इस चरण में मुस्लिम वोटर काफी अहम थे।
इन नौ जिलों की 55 सीटों में से कुल 38 सीटें ऐसी हैं, जिन पर मुसलमानों के वोट बेहद अहम हैं। दिन के मतदान के दौरान अलग-अलग विधानसभा सीटों पर देखा गया कि मुस्लिम बहुल इलाकों में जमकर वोटिंग हुई। इस बार इन सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं ने 65 से 70 फीसदी तक वोट किया। साल 2017 में ये आंकड़ा 50 फीसदी था। यानि मुस्लिम समुदाय के 50 फीसदी लोगों ने वोट ही नहीं दिया, लेकिन इस बार 15 से 20 फीसदी ज्यादा वोटिंग हुई।
इसका सीधा सा मतलब है कि मुस्लिम मतदाता (Muslim Voters) जानते थे कि उन्हें किसे और क्यों वोट देना है। हालांकि यहां दूसरी बड़ी बात ये है कि मुसलमानों ने ज्यादा वोट डाले तो भी वोटिंग प्रतिशत 2017 के मुकाबले कम है, जिससे पता चलता है कि इस बार हिंदुओं ने कम वोट दिया है। यानि इस बार हिंदू वोटरों में उत्साह कम रहा है, जो बीजेपी के लिये अच्छी खबर नहीं है।
इन सीटों पर मुस्लिम वोटर ज्यादा होने के बावजूद पिछली बार बीजेपी को यहां प्रचंड जीत मिली थी। साल 2017 में बीजेपी ने 55 में से 38, समाजवादी पार्टी ने 15 और कांग्रेस ने दो सीटें जीती थीं जबकि बसपा को एक भी सीट नहीं मिली। ऐसा इसलिए था क्योंकि अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) तब सिर्फ मुस्लिम प्लस यादव वोटों की सोशल इंजीनियरिंग पर निर्भर थे।
2017 में अखिलेश यादव की पार्टी इस इलाके में हार गई क्योंकि उसने मुस्लिम और यादव वोटों को एकजुट रखने के लिये मुस्लिम उम्मीदवारों को अधिक टिकट दिया था, लेकिन इस बार उन्होंने ऐसा नहीं किया। इस बार उन्होंने उन सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों को नहीं उतारा जहां मुस्लिम मतदाता जीत और हार का फैसला करते हैं।
जिन 55 सीटों पर मतदान हुआ, उनमें से 52 सीटों पर अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने और तीन पर जयंत चौधरी के राष्ट्रीय लोक दल (Rashtriya Lok Dal) ने चुनाव लड़ा। अखिलेश यादव ने 52 में से केवल 20 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया, ये जानते हुए कि यहां 38 सीटों पर मुस्लिम फैक्टर काम करता है।
मसलन सहारनपुर की देवबंद सीट (Deoband seat of Saharanpur) पर समाजवादी पार्टी ने इस बार किसी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया। इस सीट से अखिलेश यादव ने ठाकुर समुदाय से ताल्लुक रखने वाले कार्तिकेय राणा को टिकट दिया है। इस सीट पर 65 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं और ठाकुर समुदाय (Thakur community) की भी यहां अच्छी तादाद है। अब अखिलेश यादव जानते थे कि अगर उन्होंने मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट दिया तो उन्हें ठाकुर समुदाय का वोट नहीं मिलेगा, इसलिए उन्होंने इस सीट पर मुसलमानों के दबदबे के बावजूद एक हिंदू को टिकट दिया और इसे उनकी स्मार्ट राजनीति कहा जायेगा। पिछली बार उनकी इसी गलती से बीजेपी ने ये सीट जीती थी।
इसे आप एक और उदाहरण से समझ सकते हैं। सहारनपुर जिले में कुल 6 विधानसभा सीटें हैं और यहां 40 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं लेकिन अखिलेश यादव ने इन छह सीटों में से सिर्फ दो सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है और बाकी सीटों पर अलग-अलग जातियों के नेताओं को उतारा है।
सहारनपुर की नकुड़ सीट पर कुल 3.5 लाख मतदाता हैं। सबसे ज्यादा 1 लाख 30 हजार मुस्लिम मतदाता हैं। वहीं दूसरे नंबर पर 70 हजार जाटव समुदाय के वोटर हैं। अब अखिलेश यादव ने इस सीट से न तो कोई मुस्लिम नेता उतारा है और न ही जाटव समुदाय से किसी को टिकट दिया है उन्होंने धर्म सिंह सैनी को टिकट दिया क्योंकि सैनी जाति के 35 हजार मतदाता हैं। इससे पहले समाजवादी पार्टी यहां से मुस्लिम नेता इमरान मसूद को टिकट देती थी।
इन सीटों पर मतदान के दौरान पांच अहम बातें देखी गयी। सबसे पहले, यादव और मुस्लिम वोटों वाले कुछ ओबीसी वोट समाजवादी पार्टी के पास गये। दूसरे समाजवादी पार्टी को शाक्य, सैनी और कुर्मी वोट भी मिले हैं। तीसरा बीजेपी को ठाकुर, ब्राह्मण, निषाद, कश्यप और लोधी समुदायों के वोट मिले हैं। इनमें कुर्मी और सैनी समुदायों के 50 फीसदी वोट भी बीजेपी को गये। चौथा पिछड़ी जातियों के वोटों का बंटवारा समाजवादी पार्टी और बीजेपी के बीच हो गया है और यह भाजपा के लिये अच्छी खबर नहीं है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इस इलाके में बसपा काफी कमजोर नज़र आयी। पांचवां जयंत चौधरी के साथ गठबंधन से अखिलेश यादव को फायदा हुआ है क्योंकि अनुमान है कि जाट मतदाताओं ने एकजुट होकर इस गठबंधन को वोट दिया है।
दूसरे चरण में दलित मतदाताओं का रुझान बसपा की तरफ रहा है और ये बीजेपी के लिये कुछ हद तक अच्छी खबर हो सकती है।
2017 में बसपा को इस इलाके में एक भी सीट नहीं मिली थी लेकिन तब 12 सीटें ऐसी थीं जिन पर बसपा दूसरे नंबर पर रही और इन 12 सीटों में से उस वक्त बीजेपी ने 8 सीटों पर जीत हासिल की थी। यानि बसपा की ताकत बीजेपी के लिये फायदेमंद है। अब अगर दलित वोट बसपा को गये हैं तो इसका फायदा बीजेपी को मिल सकता है।
पहला चरण भाजपा के लिए बहुत कठिन था। और दूसरा चरण और भी कठिन था। लेकिन अब बाकी चरणों में ये मुश्किलें कम होंगी क्योंकि उन सीटों पर जाति और धर्म का ये फॉर्मूला काम नहीं करेगा। हालांकि दूसरे चरण में अखिलेश यादव की पार्टी 30 से 35 सीटें जीत सकती है, पिछली बार उन्होंने 15 सीटों पर जीत हासिल की थी।