न्यूज डेस्क (दिगान्त बरूआ): उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थ नगर (Siidharth Nagar) जिला में पुलिस (Police) की बड़ी लापरवाही देखने को मिली, जहां एंटी रोमियो स्कवॉड ने चेकिंग के दौरान कस्बा शोहरतगढ़, भारत-माता चौक रेलवे स्टेशन के पास पुलिस ने कुछ लोगों को पकड़ा। इस कवायद के दौरान उपनिरीक्षक राघवेंद्र प्रताप यादव ने कुछ लड़के-लड़कियों की धरपकड़ की जिन्हें लंबी पूछताछ के बाद हिदायत देकर छोड़ दिया गया।
विभागीय वाहवाही लूटने के चक्कर में सिद्धार्थ नगर पुलिस ने पकड़े गये लड़के-लड़कियों की फोटो अपने अधिकारिक ट्विटर हैंडल पर सार्वजनिक रूप से पोस्ट करते हुए डीआईजी बस्ती रेंज और डिस्ट्रिक मजिस्ट्रेट सिद्धार्थ नगर को भी टैग किया। ट्विट के मुताबिक चेकिंग के दौरान संदिग्धों को हिदायत देकर छोड़ दिया गया।
अगर ये संदिग्धों अश्लील हरकत कर रहे थे तो पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार क्यों नहीं किया। लेकिन वहीं दूसरी ओर अगर ये आपस में बातचीत कर रहे थे तो ऐसे में पुलिस का इन्हें हिदायत देना और साथ ही उनकी तस्वीरें अधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर शेयर कितना उचित है क्योंकि पोस्ट की गई तस्वीरों में दिखाई दे रहे लड़के-लड़कियां कोई पेशेवर अपराधी नही बल्कि स्कूल/कॉलेज में पढने वाले छात्र नज़र आ रहे है।
कानून के मुताबिक यदि नाबालिग किसी अपराध में संलिप्त पाए जाते है या कोई महिला किसी दुष्कर्म का शिकार होती है या ऐसे बच्चे पाए जाते है जिनका असर आगे चलकर उनके भविष्य पर पड़ सकता है तो ऐसे में उनकी पहचान गुप्त रखी जाती है।
लेकिन दोषी ना होने के बावजूद भी जिला पुलिस वाहवाही लूटने के चक्कर में सार्वजनिक तौर पर ट्विट करके खुलेआम लड़के-लड़कियों की फोटो शेयर की गई। पुलिस ने एक बार भी ये नही सोचा कि उनके द्वारा की गई इस हरकत से पढने-लिखने वाले बच्चों की इज़्ज़त, भविष्य और सामाजिक प्रतिष्ठा पर क्या फर्क पड़ेगा और इन बच्चों के साथ-साथ इनके परिवार वालों को भी कितना खामियाजा उठाना पड़ सकता है।
इस मुद्दे पर ट्रैडीं न्यूज ने वकील और कानूनी जानकार शैलेश चौहान बातचीत की। शैलेश चौहान ने कहा कि पीड़ितों, संदिग्धों और अभियुक्तों का खुलासा करके यूपी पुलिस ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया है। ऐसी कवायदें मीडिया ट्रायल को बढ़ावा देती है। हालांकि आम जनता न्यायिक सुनवाई के बारे में जानने का हक़ रखती है, लेकिन मीडिया के सामने अभियुक्तों की पहचान ज़ाहिर करने का कानूनी तौर पर कोई पुख़्ता बुनियाद नहीं थी। ये बात दंड प्रक्रिया संहिता पर भी पूरी तरह लागू होती है।
शैलेश चौहान ने आगे कहा कि पुलिस द्वारा किसी संदिग्ध अभियुक्त/पीड़ित व्यक्ति की निजता का उल्लंघन करना, मीडिया में उसकी तस्वीरें जारी करना या शिनाख़्त परेड से पहले उसकी पहचान सार्वजनिक करना सरासर गलत है। पुलिस के पास सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर आरोपियों और संदिग्धों की तस्वीरों को जारी और शेयर करने का कोई हक़ नहीं है। अगर अभियुक्तों या संदिग्धों की मीडिया के सामने परेड करायी जाती है तो ये भी कानूनी तौर पर गलत है।
बता दे कि एंटी रोमियो स्कवॉड का गठन योगी सरकार ने महिलाओं और लड़कियों की छेड़खानी रोकने के लिए किया था। अगर कोई शख़्स किसी महिला या बच्ची के साथ सार्वजनिक स्थान पर किसी तरह का गलत व्यवहार करता हुआ पाया जाता है तो स्कवॉड द्वारा कड़ी कार्रवाई की जाती है।
फिलहाल देखना ये होगा कि उत्तर प्रदेश पुलिस अपनी इस गलती का सुधार किस प्रकार करती है और इस प्रकार के संवेदनशील मामलों पर भविष्य में कितना गंभीरता से कार्य करती है। पुलिस का काम केवल समाज को अपराधियों से बचाना ही नही बल्कि समाज की गरिमा को भी बनाये रखना है।