US Mass Shooting: अमेरिका के एक स्कूल में दर्दनाक नरसंहार हुआ, जिसमें एक 18 साल के लड़के ने 19 बच्चों की हत्या कर दी। पिछले एक दशक में अमेरिका में ये सबसे बड़ी सामूहिक गोलीबारी की घटना है। मारे गये सभी बच्चे 11 साल से कम उम्र के हैं। हत्यारे लड़के ने जानबूझकर ऐसे छोटे बच्चों को निशाना बनाया क्योंकि वो अपने माता-पिता के साथ शहर के बाकी लोगों के मन में डर पैदा करना चाहता था।
ये वारदात अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी (Washington DC) से करीब 2,700 किलोमीटर दूर टेक्सास (Texas) राज्य के एक स्कूल में हुई, जहां करीब 600 बच्चे पढ़ते हैं। इस स्कूल पर हमला करने वाले लड़के की उम्र महज 18 साल थी। हमले से ठीक एक दिन पहले उसने अपने जन्मदिन पर दो राइफलें खरीदी थीं। इसके बाद उन्होंने इन राइफलों के साथ अपनी कुछ तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर पोस्ट की थीं।
हालांकि तब लोगों ने इन तस्वीरों को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया। क्योंकि अमेरिका में हथियारों के साथ ऐसी तस्वीरें सोशल मीडिया पर डालना काफी आम बात है। लोग वहां हथियार देखने से नहीं डरते। संयुक्त राज्य अमेरिका में 18 साल से अधिक आयु के 44 प्रतिशत लोगों के घर में बंदूक है। और वहां के लोगों के लिये बंदूकें खरीदना उतना ही आसान है जितना कि हमारे देश में दुकानों से राशन खरीदना। इसलिये हत्यारे लड़के ने आसानी से दो बंदूकें खरीद कर अपने घर में रख लीं। फिर 24 मई को उसने स्कूल पर हमला कर दिया।
इस हमले से पहले उसने अपनी दादी की भी गोली मारकर हत्या कर दी थी। उसके बाद वो वहां के एक स्कूल में बंदूक लेकर घुस गया और स्कूल के छोटे बच्चों पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। कुछ ही मिनटों में 19 बच्चों की मौत हो गयी।
मरने वालों में अमेरी नाम की एक 10 साल की बच्ची भी थी, जिसने हमले के दौरान इमरजेंसी नंबर पर कॉल की थी। लेकिन इससे पहले कि वो कुछ कहती हमलावर ने उसकी जान ले ली। इसके अलावा इस घटना में चार बच्चों की मौत हो गयी क्योंकि वो भगदड़ के कारण वहां से बाहर नहीं निकल पाये। इन बच्चों को भी इस हमलावर ने गोलियों से भून दिया।
मरने में ज्यादातर अमेरिकी, भारतीय और पाकिस्तान मूल बच्चें शामिल हैं। अमेरिका खुद को दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र और शांति का सबसे बड़ा दूत बताता है। लेकिन वहां की कोई भी सरकार या राष्ट्रपति कभी भी इस नियम को खत्म नहीं कर पाये, जिसके तहत अमेरिका में 18 साल से ऊपर का कोई भी शख़्स बंदूक खरीद सकता है।
कुछ इसी तर्ज पर 16 दिसंबर 2014 को पाकिस्तान के पेशावर (Peshawar) में भी ऐसी ही एक वारदात हुई थी। तब तालिबान (Taliban) के कुछ उग्रवादी इसी तरह के हथियारों के साथ वहां के एक आर्मी पब्लिक स्कूल में दाखिल हुए और उन्होंने 132 बच्चों को मार डाला। आज अगर हम इस आतंकी हमले की तुलना अमेरिका की मौजूदा घटना से करें तो दोनों हमलों में ज्यादा अंतर नहीं है। दोनों हमलों में स्कूल के छोटे बच्चों को निशाना बनाया गया। इन दोनों हमलों का मकसद लगभग एक ही है। यानि बच्चों को मारकर लोगों के मन में डर पैदा करना।
लेकिन अमेरिका जैसे देश अपने देश में होने वाली ऐसी घटनाओं को दबा देते हैं। जब बात उठायी जाती है तो कहा जाता है कि हमला करने वाला मानसिक रूप से बीमार था, भटक गया था या उसने गलती से ऐसा कर दिया। अमेरिका ने अब तक इस मोर्चे पर कोई ऑपरेशन शुरू नहीं किया है और न ही वो इस हमले को पेशावर हमले जितना गंभीर मान रहा है। ये अमेरिका के दोहरे मापदंड को दिखाता है।
इस मामले में जिस 18 साल के लड़के की हत्या की गयी, वो एनकाउंटर में मारा गया। ये लड़का भी अब मानसिक रूप से बीमार बताया जा रहा है। पुलिस का कहना है कि लड़के की गरीबी और उसके कपड़ों को लेकर उसके स्कूल में मजाक बनाया गया, जिससे लड़का डिप्रेशन में चला गया। जिसके चलते उसने स्कूल छोड़ दिया। यानि अमेरिका इस वारदात को बाकी पुरानी घटनाओं की तरह दबाने में कामयाब रहा।
पिछले एक दशक में अमेरिका में ये सबसे बड़ी सामूहिक गोलीबारी की घटना है। इससे पहले साल 2012 में भी इसी तरह की घटना अमेरिकी राज्य कनेक्टिकट (Connecticut) के एक स्कूल में हुई थी। उस वक्त 19 साल के एक हमलावर ने 20 छात्रों की हत्या कर दी थी। अमेरिका के स्कूल में सामूहिक गोलीबारी की पहली घटना साल 1998 में हुई थी, जिसमें पांच लोग मारे गये थे। लेकिन अमेरिका ने कभी इन घटनाओं को संजीदगी से नहीं लिया।
अमेरिका में बंदूक की संस्कृति उस वक़्त से चली आ रही है, जब वहां ब्रिटिश सरकार (British government) का शासन था। तब संयुक्त राज्य अमेरिका में पुलिस और स्थायी सुरक्षा बल नहीं था, तब लोगों को अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा खुद ही करनी पड़ती थी, इसलिए उन्हें हथियार रखने का अधिकार दिया गया। इसके लिए संयुक्त राज्य अमेरिका में साल 1791 में एक कानून बनाया गया और उसके बाद अमेरिकी नागरिकों के लिये हथियारों का अधिकार संविधान के दायरे में आ गया।
हालांकि 19वीं शताब्दी तक अमेरिका ने महसूस किया था कि बंदूक संस्कृति वहां कभी भी शांति स्थापित नहीं होने देगी। लेकिन गन लॉबी और कुछ नेताओं के दबाव के चलते कभी भी इसके खिलाफ सख्त कानून नहीं बन पाया। आज अमेरिका में रोजाना औसतन 100 लोग इसकी वजह से मरते हैं।
आपने अक्सर सुना जाता है कि भारत में ब्रिटिश काल के कानून आज भी लागू हैं। धीरे-धीरे इन्हें खत्म करने की कोशिशें की जा रही है। लेकिन अमेरिका शायद दुनिया का इकलौता देश है, जिसने इस कानून को खत्म करने के लिये कोई कारगर कदम नहीं उठाया है।
आज पूरी दुनिया में सिर्फ और सिर्फ चार देश ऐसे हैं, जहां नागरिकों को हथियार रखने का संवैधानिक अधिकार हासिल है। ये देश हैं संयुक्त राज्य अमेरिका, मैक्सिको, हैती और ग्वाटेमाला (Mexico, Haiti and Guatemala)। कल्पना कीजिये कि ये कितना बड़ा विरोधाभास है कि अमेरिका एक तरफ मानवाधिकारों और शांति के बारे में बड़ी-बड़ी बातें करता है। इसके नाम पर वाशिंगटन पुरस्कार और प्रमाण पत्र के बांटने के लिये ग्लोबल जनरल स्टोर चलाता है, लेकिन दूसरी ओर लोगों को हथियार रखने का संवैधानिक अधिकार भी देता है।