Utpanna Ekadashi 2020: इसी दिन उत्पन्न हुए एकादशी व्रत के प्रावधान, जानें मुहूर्त, व्रत विधि, तिथि, और महात्मय

नई दिल्ली (यथार्थ गोस्वामी):हिन्दू परम्परा में मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को उत्पन्ना एकादशी (Utpanna Ekadashi) का व्रत रखने का सनातनीय प्रावधान है। स्थापित मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु की मानस शक्तियों से एकादशी देवी उत्पत्ति मानी जाती है। इसी दिन एकादशी देवी का अवतरण हुआ था। जिससे एकादशी व्रत की परम्परा शुरू हुई। इसलिए इस एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। पद्मपुराण (Padmapuran) के अनुसार उत्पन्ना एकादशी का पालन करने वाले उपासकों को समस्त एकादशी का व्रत करने के समान फल की प्राप्ति होती है।

इस दिन के व्रत और दान-पुण्य के प्रताप का लाभ साधक को अगले जन्मों तक मिलता रहता है। साथ ही यदि कोई भक्त पहली बार एकादशी के व्रत रखना शुरू करना चाहता है तो, वो इस एकादशी का व्रत करने के साथ आने वाली सभी एकादशी का व्रत करने का संकल्प ले सकता है। यदि साधक सम्पूर्ण विधि-विधान से इस व्रत का पालन कर लेता है तो उसे अश्वमेघ यज्ञ के समान फल और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।

उत्पन्ना एकादशी का मंगलमय मुहूर्त

प्रात: पूजा मुहूर्त –उषाकाल 5 बजकर 15 मिनट से सुबह 6 बजकर 5 मिनट तक (दिनांक 11 दिसंबर 2020)

गोधूलि पूजा मुहूर्त – सांय 5 बजकर 43 मिनट से शाम 7 बजकर 3 मिनट तक (दिनांक 11 दिसंबर 2020)

व्रत का पारण – सुबह 6 बजकर 58 मिनट से सुबह 7 बजकर 2 मिनट तक (दिनांक 12 दिसंबर 2020) 

उत्पन्ना एकादशी का व्रत विधान और पूजन विधि

  • उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने वाले उपासक को दशमी तिथि के दिन से ही अन्न सहित भोजन का परित्याग कर देना चाहिए।
  • उत्पन्न एकादशी वाले दिन साधक को ब्रह्म मुहूर्त में शयन त्यागकर स्नान सहित दैनिक क्रियाकलाप से निवृत्त होकर भगवान विष्णु का मानस ध्यान कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
  • काठ की चौकी या जमीन पर लाल कपड़ा/पीताम्बरी बिछाकर भगवान विष्णु की मूर्ति या छवि को गंगाजल से पवित्र करे। गंध, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से विधिवत पूजा करें।
  • इसके बाद भगवान विष्णु को पीले फूल अर्पित करें और फलों का भोग लगाएं। ध्यान रहे इस व्रत में केवल फलों का भोग भगवान लगाया जाता है। घी का दीया जलाएं और भगवान का मानस ध्यान कर उनकी आरती उतारे।
  • विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करे। एकादशी वाले दिन भगवान का भजन और स्मरण करें। साथ ही दान अवश्य करें। संध्या के समय दीपदान के पश्चात फलाहार ग्रहण करें।
  • अगले दिन प्रात: यानी कि द्वादशी तिथि पर भगवान योगेश्वर कृष्ण की आराधना करें और जरूरतमंदों को भोजन कराएं और उन्हें यथाशक्ति दान-दक्षिणा देकर विदा करें।

उत्पन्ना एकादशी की कथा

उत्पन्ना एकादशी की कथा भगवान श्री कृष्ण ने युद्धिष्ठिर को उनके आग्रह पर सुनाई थी। कथा के अनुसार सतयुग में मुर नामक एक भयानक दैत्य था। उसे अपनी आसुरी शक्तियो (Demonic powers) पर बहुत घमंड था और इन्हीं के शक्तियों की मदद से वो स्वर्ग लोक पर कब्जा कर वहां का अधिपति बन गया। कालान्तर में उसके भय से त्रस्त समस्त देवी-देवता भगवान विष्णु के पास सहायता की याचना लेकर पहुँचे। उनके आग्रह को स्वीकार करते हुए भगवान विष्णु ने राक्षस मुर को ललकारा। जिसके बाद भगवान विष्णुजी और मुर के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया।

ये युद्ध कई सालों तक चलता रहा। मुर से युद्ध करते हुए भगवान विष्णु थक गए। विश्राम की लालसा से योगेश्वर भगवान विष्णु बद्रिकाश्रम (Badrikashram) की एक गुफा में पहुँचे। जहां मुर उनका अमुगमन करते हुए पहुँच गया। निद्रावस्था में देख मुर ने भगवान विष्णु का मारना चाहा। इस बीच भगवान विष्णु की अनंत मानस शक्तियों ने उनके शरीर से एक देवी को उत्पन्न किया। जिसने मुर राक्षस (Mura monster) का वध कर दिया। देवी के इस कार्य से विष्णु अत्यन्त प्रसन्न हुए। मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को उत्पन्न होने के कारण भगवान विष्णु ने देवी का नाम एकादशी किया। और वर देते हुए कहा कि- सभी व्रत विधानों ने एकादशी का व्रत सर्वश्रेष्ठ माना जायेगा। प्रत्येक मास की एकादशी के साथ एकादशी देवी और मेरा की संयुक्त पूजन अर्चन होगा। जो भी साधक सम्पूर्ण भक्ति भाव से उत्पन्ना एकादशी का व्रत करेगा, उस पर मेरी कृपा दृष्टि अनंतकाल तक बनी रहेगी।

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