RIP Lata Mangeshkar: बेहद कम लोग ही जानते है लता मंगेशकर की ज़िन्दगी से जुड़ी ये बातें

नई दिल्ली (एंटरटेनमेंट डेस्क): 29 सितंबर 1929 को जन्मी लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) की मृत्यु ने सभी देशवासियों को सदमे में ला खड़ा किया है, आज उन्होनें आखिरी सांसें ली। वो सर्वश्रेष्ठ और सम्मानित पार्श्व गायिकाओं में से एक थीं। उन्होंने एक हजार से ज़्यादा हिंदी फिल्मों में गाने रिकॉर्ड किये और छत्तीस से अधिक भारतीय भाषाओं में गाया। लोग उन्हें लता दीदी और लता ताई के नाम से भी पुकारते है।

शुरूआती ज़िन्दगी

लता का जन्म शास्त्रीय गायक और थिएटर कलाकार पंडित दीनानाथ मंगेशकर (Pandit Deenanath Mangeshkar) और शेवंती के घर इंदौर मध्य प्रदेश में हुआ था। उनके भाई-बहन मीना, आशा, उषा और हृदयनाथ सभी बेहतरीन गायक और संगीतकार हैं। दीनानाथ ने एक थिएटर कंपनी चलायी जिसने संगीत नाटकों का प्रोडक्शन हुआ, जहां लता ने पांच साल की उम्र से एक्टिंग करना शुरू कर दिया था।

लता मंगेशकर के स्कूली दिन

उन्होंने अपने पिता दीनानाथ मंगेशकर के संगीत नाटकों में गायन और अभिनय तब शुरू किया जब वो सिर्फ पांच साल की थीं। स्कूल में अपने पहले दिन से ही उन्होनें दूसरे बच्चों को मौसिकी की तालीम देना शुरू कर दिया और जब टीचर ने उसे रूकने के लिए कहा तो उन्हें इतना बुरा लगा कि उन्होनें कभी स्कूल न जाने का फैसला किया। कई अन्य सूत्रों का कहना है कि उन्होनें स्कूल छोड़ दिया क्योंकि वो हमेशा अपनी छोटी बहन आशा के साथ स्कूल जाती थी और स्कूल इस पर आपत्ति जताता था।

पिता की मौत और संघर्षों से जूझती जिन्दगी

जब लता मंगेशकर केवल 13 साल की थीं, तब उनके पिता की हृदय रोग से मौत हो गयी और वो परिवार की एकमात्र कमाने वाली बन गयी। उन्होंने 40 के दशक में खुद को गायिका के तौर पर स्थापित करने के लिये संघर्ष किया। मराठी फिल्म किटी हसाल (1942) में उन्होनें अपना पहला गाना रिकॉर्ड किया। बाद में इस गाने को फिल्म से हटा दिया गया। जिसके बाद वो 1945 में मुंबई चली गयी, लेकिन उनकी पहली बड़ी हिट फिल्म महल (1949) के गीत ‘आयेगा आने वाला’ के साथ आयी, जिसके बाद वो हिंदी सिनेमा की सबसे ज्यादा मांग वाली आवाजों में से एक बन गयी। साल 1945 में मास्टर विनायक जो मंगेशकर के पारिवारिक मित्र थे और पिता की मृत्यु के बाद उनकी देखभाल कर रहे थे, ने उन्हें अपनी पहली हिंदी फिल्म, बड़ी माँ में एक छोटी भूमिका की भी पेशकश की।

म्यूजिकल करियर

साल 1942 में जब लता 13 साल की थीं, तब हृदय रोग की वज़ह से उनके पिता की मौत हो गयी। विनायक दामोदर कर्नाटकी, जो कि नवयुग चित्रपट फिल्म कंपनी के मालिक थे और लता के बहुत करीबी दोस्त थे, ने उनके करियर में उनकी काफी मदद की। लता ने वसंत जोगलेकर की मराठी फिल्म किटी हसाल (1942) के लिये सदाशिवराव नेवरेकर का लिखा गीत ‘नाचू या गड़े, खेलो सारी मणि हौस भारी’ गाया। हालांकि इसे फाइनल कट में हटा दिया गया था। इसके बाद विनायक ने उन्हें नवयुग चित्रपट की मराठी फिल्म ‘पहिली मंगला-गौर (1942)’ में एक छोटा सा रोल दिया। उन्होंने दादा चांडेकर द्वारा रचित ‘नताली चैत्रची नवलई’ गाया।

मराठी फिल्म गजभाऊ (1943) के लिये लता का पहला हिंदी गाना ‘माता एक सपूत की दुनिया बदल दे तू’ था। साल 1945 में जब विनायक की कंपनी ने अपना हेडक्वार्टर बदला तो लता मुंबई चली गयी। भिंडीबाजार घराने के उस्ताद अमन अली खान से उन्होंने संगीत की शिक्षा लेनी शुरू की। साल 1946 में उन्होंने वसंत जोगलेकर की हिंदी भाषा फिल्म ‘आप की सेवा में’ के लिये ‘पा लगून कर जोरी’ गाया। उनकी बहन आशा भोसलें ने साल 1945 में विनायक की पहली हिंदी भाषा की फिल्म, ‘बड़ी मां’ में छोटी भूमिकायें निभायी। उन्होंने उस फिल्म में एक भजन ‘माता तेरे चरणों में’ भी गाया था। साल 1946 में विनायक की दूसरी हिंदी भाषा की फिल्म ‘सुभद्रा’ की रिकॉर्डिंग के दौरान उनकी मुलाकात वसंत देसाई से हुई।

1948 में विनायक की मौत के बाद संगीत निर्देशक गुलाम हैदर लता के मेन्टॉर रहे। उन्होंने निर्माता शशधर मुखर्जी (Producer Shashadhar Mukherjee) से मुलाकात की। हालांकि मुखर्जी ने लता की आवाज को खारिज कर दिया क्योंकि उनका आवाज़ “बहुत पतली” थी। जिस पर हैदर ने जवाब दिया कि आने वाले सालों में प्रोड्यूर्स और डायरेक्टर अपनी फिल्मों में गाने के लिये “लता के पैरों में गिरेंगे” और “उनसे भीख मांगेंगे”। बाद में हैदर ने लता को पहला बड़ा ब्रेक 1948 में फिल्म ‘मजबूर’ के गाने ‘दिल मेरा तोड़ा, मुझे कहीं का ना छोरा’ से दिया। ये फिल्म ब्लॉकबस्टर पर सुपरहिट रही। सितंबर 2013 में अपने 84 वें जन्मदिन पर लता ने खुलासा किया कि “गुलाम हैदर असल में मेरे गॉडफादर हैं। वो पहले संगीत निर्देशक थे जिन्होंने मेरी प्रतिभा पर पूरी भरोसा जताया। ‘आयेगा आने वाला’ 1949 में आयी फिल्म ‘महल’ की उनकी पहली बड़ी हिट फिल्मों में से एक थी।

लता मंगेशकर का म्यूज़िकल करियर सात दशकों को फैला रहा है। मंगेशकर ने अनगिनत फिल्मों में अपनी आवाज दी, 36 से ज़्यादा भारतीय भाषाओं में एक हजार से ज़्यादा गाने रिकॉर्ड किये। ‘लग जा गले’ और ‘आजकल पांव ज़मीन पर’ जैसे भावपूर्ण गीतों के पीछे की आवाज़ मंगेशकर देश के सबसे सम्मानित गायकों में से एक हैं। भारतीय फिल्म संगीत पर उनकी आवाज़ की परछाई साफ देखी जा सकती है। 1942 से लता ने अपने मनमौजी हुनर से संगीत की सीमाओं को पीछे धकेल दिया है। पिछले कुछ सालों में लता ने मधुबाला से लेकर प्रियंका चोपड़ा तक कई नामी-गिरामी अभिनेत्रियों के लिये गाया है। वो अपनी बहुमुखी आवाज की गुणवत्ता के लिये जानी जाती हैं, उन्होंने हर तरह के एल्बम (ग़ज़ल, पॉप, आदि) रिकॉर्ड किये हैं।

लता ने मदन मोहन, आरडी बर्मन, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल और ए.आर रहमान (Madan Mohan, RD Burman, Laxmikant-Pyarelal and AR Rahman) समेत कई दिग्गज संगीत निर्देशकों के साथ काम किया है। उन्होंने 1960 के दशक में मदन मोहन के साथ काम किया, जैसे अनपढ़ से आप की नज़रों ने समझा, लग जा गले और वो कौन थी से नैना बरसे रिम झिम। लता ने लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के लिये 700 से ज्यादा गाने गाये हैं, जिनमें नसीब से मेरे नसीब में और आशा से शीशा हो या दिल हो शामिल हैं। गाता रहे मेरा दिल और फिल्म गाइड में पिया तोसे नैना लागे रे (1965) जैसे गाने एसडी बर्मन के लिये रिकॉर्ड किये।

लता ने आरडी बर्मन के पहले और आखिरी गाने – छोटे नवाब (1961) और साल 1994 में आयी फिल्म 1942- ए लव स्टोरी में कुछ ना कहो में गाया। एआर रहमान के साथ उनके सहयोग से रंग दे बसंती (2006) में लुका छुपी और फिल्म लगान (2001) में ओ पालनहारे जैसे गाने काफी लोकप्रिय हुए।  प्यार किया से डरना क्या से मुगल-ए-आज़म (1960) से अजीब दास्तान है ये तक, दिल अपना और प्रीत पराई (1960) से लेकर प्रेम पुजारी (1970) तक रंगीला रे या यहां तक ​​कि दिल से में जिया जले तक। लता ने कई बेहतरीन गानों को अपनी आवाज़ से सज़ाया। उनकी पूरी तरह से आखिरी एल्बम दिवंगत फिल्म निर्माता यश चोपड़ा द्वारा निर्देशित 2004 की फिल्म “वीर ज़ारा” थी।

लता मंगेशकर का आखिरी गीत

लता ने साल 2019 में अपना आखिरी गाना रिकॉर्ड किया था, उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी के नारे ‘सौगंध मुझे मिट्टी की’ पर आधारित एक गाने में अपनी आवाज दी थी। म्यूजिक वीडियो (Music Videos) में लता को ये कहते हुए सुना गया था, ”मैं पीएम मोदी का भाषण सुन रही थी। कुछ दिन पहले। उन्होंने उसमें कुछ पंक्तियाँ कही, मुझे लगा कि हर भारतीय की भावनाओं की अगुवाई कर रही हैं। उन्होंने मुझे छुआ भी। मैंने उन्हें रिकॉर्ड किया। और आज मैं इसे भारतीय सैनिकों और हर भारतीय को अपनी श्रद्धांजलि के तौर पर पेश करता हूं। जय हिन्द..”।

लता मंगेशकर को मिले खिताब

ता मंगेशकर को भारत की स्वर कोकिला (Nightingale of India) के नाम से भी जाना जाता है, ने राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, बीएफजेए पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ महिला पार्श्व गायिका के लिये फिल्मफेयर पुरस्कार, फिल्मफेयर विशेष पुरस्कार, फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार जीता था। इसके अलावा, उन्हें पद्म भूषण (1969), दादा साहब फाल्के पुरस्कार (1989), महाराष्ट्र भूषण (1997), पद्म विभूषण (1999), भारत रत्न (2001) लीजन ऑफ ऑनर (2007) से सम्मानित किया गया। वो 22 नवंबर, 1999 से 21 नवंबर, 2005 तक राज्यसभा सांसद भी रहीं।

दिया गया था उन्हें धीमा जहर

1962 की शुरुआत में लता मंगेशकर गंभीर रूप से बीमार पड़ गयी। डॉक्टरों को बुलाया गया और मेडिकल जांच में पता चला कि उन्हें धीमा जहर दिया गया था। जिसकी वज़ह से उन्हें तीनों दिनों तक ज़िन्दगी और मौत की जंग लड़नी पड़ी। इससे उनका शरीर खोखला हो गया था और उन्हें करीब तीन महीने बिस्तर पर ही बिताने पड़े। इस घटना के बाद से उनका रसोइया बिना मजदूरी लिये तुरंत घर से गायब हो गया। इस वक़्त के दौरान दिवंगत बॉलीवुड गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी रोजाना उनके घर आते पहले खाना चखते उसके बाद ही लता को वो खाना खाने के लिये दिया जाता था। मजरूह सुल्तानपुरी लता को दीदी कहकर बुलाते थे।

पॉलिटिकल कैरियर

साल 1999 में उन्हें राज्य सभा के सदस्य के तौर पर नामित किया गया था। उनका कार्यकाल 2006 में खत्म हो गया था, हालांकि सत्रों में हिस्सा नहीं लेने के लिये उनकी खुली आलोचना भी की गयी। तब उन्होंने संसद में अपनी गैरमौजूदगी के लिये खराब सेहत का हवाला दिया। लता दीदी ने बतौर सांसद अपनी सेवाओं के लिये पैसा या तनख्वाह या दिल्ली में घर नहीं लिया।

रहमदिल

लता मंगेशकर ने अडोरा नाम से डायमंड एक्सपोर्ट कंपनी (Adora Diamond Export Company) खोली। उन्होनें अपने कलेक्शन को स्वरंजलि नाम दिया। इस कलेक्शन के पांच टुकड़ों को क्रिस्टीज में नीलाम किया गया। इस नीलामी में कलेक्शन को 105,000 पाउंड हासिल हुए। उदार होने के नाते उन्होनें उस साल 2005 के कश्मीर भूकंप राहत के लिये ये पैसे दान कर दिये।

पंसदीदा खाना

कहा जाता है कि लता मंगेशकर अपनी मीठी आवाज को बरकरार रखने के लिये खूब हरी मिर्च खाती थीं। वो च्यूंगम चबाती थी जिससे उन्हें गाने में मदद मिलती थी। जहां तक ​कि ​उनके खानपान का सवाल है, उन्हें सी-फूड काफी पसंद था और वो रोजाना सब्जी के साथ दाल-चावल या फुल्का खाती थीं। उन्हें गाजर का हलवा और पानी पूरी भी काफी पसंद था। उन्हें हर तरह के व्यंजन पसंद थे साथ ही कोल्हापुरी मटन और सब्ज़ी बनाने में भी उन्हें मज़ा आता था।

पसंदीदा सह-गायक

साल 2015 में एक इंटरव्यूह के दौरान लता ने खुलासा किया कि किशोर कुमार उनके पसंदीदा सह-गायक थे।

गायिकी के अलावा दूसरे हुनर

उन्होंने बतौर एक्टक अपना करियर शुरू किया था। उन्होंने पाहिली मंगलागौर (1942) में एक्टिंग की और फिर चिमुकला संसार (1943) और माझे बाल (1944) जैसी फिल्मों में भी अभिनय किया। हालाँकि उन्होनें कहा कि वो अभिनय करने में असहज थी और निर्देशक के निर्देशों के मुताबिक मेकअप करना और हँसना या रोना कुछ ऐसा नहीं था जिसमें उन्हें मज़ा आता।

अभिनय और गायन के अलावा उन्होनें साल 1991 में गुलज़ार निर्देशित लेकिन के साथ अपना प्रोडक्शन हाउस भी लॉन्च किया। उन्होंने साल 2013 में अपना संगीत लेबल भी लॉन्च किया। इत्र लता एउ डी परफम का नाम 1999 में लता मंगेशकर के नाम पर रखा गया था। उन्होंने डायमंड एक्सपोर्ट कंपनी भी बनायी। उनकी हीरा कंपनी और उसके पांच डिजाइनों से 105,000 पाउंड मिले। उन्होंने साल 2005 आये कश्मीर भूकंप के राहत प्रयासों में इन पैसों का लगा दिया।

विवाद

वो कथित तौर पर प्रसिद्ध संगीतकार भूपेन हजारिका (Music composer Bhupen Hazarika) से रोमांटिक रूप से जुड़ी हुई थीं। साथ ही ये भी सामने आया है कि  दिवंगत राज सिंह डुंगापुर के साथ वो करीब एक दशकों तक प्रेम संबंध में रहे। राज सिंह राजघराने के बेटे थे और उन्होनें जाहिर तौर पर अपने माता-पिता से वादा किया था कि वो एक आम दुल्हन को घर नहीं लायेगा। ऐसा कहा जाता है कि दोनों की मुलाकात मुंबई में हुई थी, जब राज सिंह डूंगरपुर (Raj Singh Dungarpur) ने लता मंगेशकर के भाई के साथ उनके वालकेश्वर घर में क्रिकेट खेल रहे थे। लता और राज सिंह बेहद अलग-अलग पृष्ठभूमि से थे। उन दिनों इन चीजों को सामाजिक मंजूरी हासिल नहीं थी क्योंकि परिवारों के प्रति प्रतिबद्धता पहले आती थी। हालांकि दोनों अविवाहित रहे लेकिन ये उनके शाश्वत प्रेम का प्रमाण था अगर उनके सच्चे प्यार की कहानियाँ कुछ भी हों।

पसंदीदा खेल

उनका पसंदीदा खेल क्रिकेट है। बताया जाता है कि दीदी के लिये लॉर्ड्स स्टेडियम में एक परमानेंट गैलरी रिजर्व है, जहां से वो अपने पसंदीदा खेल देखने का आनंद लेती थी।

रिजेक्शन

जब लता साल 1948 के दौरान अपना म्यूजिकल करियर शुरू कर रही थी तो निर्माता शशधर मुखर्जी से नामंजूर होने का सामना करना पड़ा क्योंकि उन्होंने उनकी आवाज़ को “बहुत पतली” कहकर खारिज कर दिया था। लता मंगेशकर के गाने न सिर्फ 1980 और 1990 दशक के लोग पसन्द करते है बल्कि कई मिलेनियल्स भी उनकी आवाज़ के कायल है।

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