वीर दास (Vir Das) ने अमेरिका में भारत के बारे में जो अनाप शनाप बातें कही हैं, उससे भारत के लाखों लोग बुरी तरह आहत हुए हैं, और मुट्ठी भर लोग खुश हो गये हैं। वीर दास ने अपने एक स्टैंड अप कॉमेडी शो (Stand Up Comedy Show) में भारत को बलात्कारियों और चरित्रहीन लोगों का देश बताया है और ये भी कहा है कि भारत में अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं है और लोग असहिष्णु हैं।
अब जब कई लोग वीर दास को करारा जवाब देने की सोच रहे थे तो कई लोगों ने कहा कि इससे वीर दास को ही फायदा होगा। उन्होंने इस मुद्दे के छोड़ने या अनदेखा करने के लिये कहा क्योंकि उन्होंने ये सब अपनी सस्ती लोकप्रियता (Cheap Popularity) और अपने कार्यक्रम के विचारों को बढ़ाने के लिये किया गया है और वही हुआ भी, इस वीडियो को अब तक 11 लाख लोग Youtube पर देख चुके हैं, लेकिन अब जब ये वीडियो बन चुका है तो वीर दास जैसे लोगों को जवाब देना बहुत जरूरी है। अगर भारत के लोग आज ऐसे नकली ‘वीर’ का मुंहतोड़ जवाब नहीं देते हैं तो उनका हौंसला सातवें आसमान पहुँच जायेगा और ये लोग एक बार फिर वही हालात पैदा कर देंगे जिसके कारण हम सैकड़ों सालों तक मुगलों और अंग्रेजों के गुलाम रहे।
वीर दास ने जो किया उसके बाद सवाल ये है कि क्या हमारे देश को गाली देने से ही वाहवाही मिल सकती है? क्या हमारे देश का मजाक उड़ाकर ही कॉमेडी की जा सकती है? क्या हमारे देश की आलोचना से ही लोकप्रियता हासिल की जा सकती है?
आज से 128 साल पहले जब स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) महज 30 साल की उम्र में अमेरिका गये थे और शिकागो में विश्व धर्म संसद में अपना भाषण दिया था तो उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत “अमेरिका के मेरे भाइयों और बहनों” से की थी। ये सुनकर उस हॉल में मौजूद सात हजार लोग अपनी जगह पर खड़े होकर 2 मिनट तक तालियां बजाते रहे। स्वामी विवेकानंद ने अपने भाषण में कहा था – मुझे गर्व है कि मैं उस धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता का पाठ (lesson of tolerance) पढ़ाया। उन्होंने ये भी कहा कि मुझे गर्व है कि मैं उस देश से आता हूं जिसने सभी धर्मों और सभी देशों के सताये हुए लोगों को शरण दी है।
जब स्वामी विवेकानंद ने अपना भाषण समाप्त किया, तब भी वहां मौजूद हजारों लोगों ने लंबे समय तक तालियां बजाईं, इस भाषण के साथ स्वामी विवेकानंद दुनिया में भारत के सबसे बड़े ब्रांड एंबेसडर बन गये, अमेरिका और पूरी दुनिया उनसे इतनी प्रभावित हुई कि उन्हें उसी समय दुबारा में बुलाया गया और कार्यक्रम के दौरान पांच बार भाषण देने का मौका दिया।
लेकिन आज अमेरिका जा रहा एक 42 वर्षीय भारतीय, जो भारतीय फिल्मों में काम करता है, भारत में पैसा कमाता है, भारत में लोकप्रियता पाता है, कहता है कि मैं ऐसे देश से आता हूं जहां दिन में महिलाओं की पूजा की जाती है, और रात में उनके साथ सामूहिक बलात्कार (Gang Rape) किया जाता है। यानि भारत बलात्कारियों और चरित्रहीन लोगों का देश है। उनका कहना है कि मैं ऐसे देश से आता हूं जहां लोग अपने घरों में बैठकर जोर-जोर से हंसते हैं, लेकिन एक कॉमेडी क्लब में लोगों को किसी मजाक पर हंसने की इजाजत नहीं है। यानि भारत असहिष्णु लोगों का देश है।
हम वीर दास की बातों पर नहीं हंस रहे हैं, बल्कि उनकी सोच पर हंस रहे हैं, क्योंकि देश के सम्मान को ठेस पहुंचाने वाले मजाक पर तो कोई हंस सकता है? जिसमें जरा भी गर्व का भाव नहीं है।
हम न तो वीरदास और विवेकानंद की तुलना कर रहे हैं और न ही किसी की तुलना विवेकानंद से की जा सकती है। हम आपको सिर्फ ये बताना चाहते हैं कि 128 साल पहले जब भारत को सांपों और सपेरों का देश माना जाता था, तब विवेकानंद ने भारत को विश्व मंच पर जगह दी और विदेशियों को भारत का सम्मान करना सिखाया। आज जब हम चाँद पर पहुँचे हैं, दुनिया को कोरोना से बचाव के लिये वैक्सीन दे रहे हैं, इतना अनाज उगा रहे हैं कि भारत अपने साथ कई देशों को खिला सके, तब एक कॉमेडियन (Comedian) का कहना है कि उन्हें भारत की सोच पर शर्म आती है।
वीर दास ने ये सब इसलिए कहा ताकि उनके लिये तालियां बजती रहें, लेकिन भारत के बारे में स्वामी विवेकानंद ने जो कहा उसमें देश के प्रति सम्मान की भावना थी, तालियों का लालच नहीं।
भारत पहले मुगलों का गुलाम था और फिर उन लोगों की वजह से अंग्रेजों का गुलाम बन गया। जिन्होंने भारत को नीचा दिखाकर अपनी सोच को ऊंचा साबित करने की कोशिश की। असल में वे आज भी विदेशियों के गुलाम हैं। अब हम ये खुलेआम कह सकते है कि मैं एक ऐसे भारत से आता हूं जहां छोटे कमतर दर्जें के कॉमेडियन अपने देश को एक छोटे से मुनाफे के लिये बेच सकते हैं। मैं ऐसे भारत से आता हूं जहां कुछ लोग मंच पर 'वीर' (बहादुर) बन जाते हैं और असल में विदेशी देश तोड़ने वाली ताकतों के 'दास' (दास) होते हैं। मैं ऐसे भारत से आता हूं जहां ये लोग विदेशों से भीख मांगकर खुश हैं लेकिन अपने देश की समृद्धि से दुखी हैं। मैं ऐसे भारत से आता हूं, जहां ये एक्टर फिल्मों में महिलाओं का मजाक उड़ाते हैं, युवाओं को अश्लीलता सिखाते हैं, फिर विदेश में महिलाओं के सम्मान के गीत गाते हैं।
मैं ऐसे भारत से आया हूं, जहां से ये लोग पैसा कमाते हैं, इस पैसे से मस्ती करते हैं, फिर विदेश जाकर देश की गरीबी की कहानियां सुनाते हैं। लेकिन ये लोग भारत के नहीं हैं, क्योंकि इनकी कोई मर्यादा नहीं है। भारत के लोगों का दिल बहुत बड़ा है, इसलिए जो भी देखता है वो माइक उठाकर अपने देश के खिलाफ खड़ा हो जाता है। लेकिन ये लोग भारत के नहीं हैं, क्योंकि इनकी कोई मर्यादा नहीं है। भारत के लोगों का दिल बड़ा है इसलिए कोई पाबंदी नहीं है। हमें ट्रेजेडी में भी कॉमेडी मिल जाती है, लेकिन भारत कोई मजाक नहीं है।
भारत और भारत के लोग बड़े दिल वाले हैं। हम सिर्फ हजारों लोगों की गलत बातों को माफ कर देते हैं। लेकिन जब कोई देश के सम्मान को ठेस पहुंचाता है, तो उसका जवाब देना बेहद जरूरी हो जाता है क्योंकि हमारे देश को गाली देना इन लोगों का नया बिजनेस मॉडल बन गया है। इसके पास पैसा, फॉलोवर, आइडिया और सस्ती लोकप्रियता है।
भारत में कांग्रेस जैसी पार्टियां भी आती हैं, जो कि इन लोगों के समर्थन में खुलेआम खड़ी हो जाती हैं। कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल (Congress leader Kapil Sibal) ने वीर दास का समर्थन किया है। एक ट्वीट में उन्होंने लिखा है कि इसमें कोई शक नहीं कि भारत दो तरह का होता है लेकिन हम नहीं चाहते कि कोई भारतीय दुनिया के सामने जाये और कहे कि हम ढ़ोगी और असहिष्णु लोग हैं।
हालांकि कांग्रेस के एक अन्य नेता अभिषेक मनु सिंघवी (Abhishek Manu Singhvi) ने वीर दास की आलोचना की है। उन्होंने ये भी कहा कि ब्रिटिश शासन के दौरान भारत को लुटेरों और सपेरों का देश कहने वाले आज भी मौजूद हैं। उनका इशारा वीरदास की तरफ ही था।
समस्या ये है कि हमारे देश के उदारवादियों और बुद्धिजीवियों के लिये अपने देश को गाली देना एक नया फैशन बन गया है, ऐसा करके वे खुद को उदार और प्रगतिशील साबित करना चाहते हैं और बताना चाहते हैं कि हम इतने महान हैं कि हम अपनी आलोचना कर सकते हैं, रचनात्मक स्वतंत्रता (Creative Freedom) के नाम पर देश और आलोचना को सुनें।
अगर आप इस पैटर्न को देखेंगे तो आप समझ जायेगें कि भारत में रहकर, भारत में पैसा कमाकर, भारत का खाकर भी, अपने देश के खिलाफ बोलने वालों ने एक पूरा इकोसिस्टम बनाया है। वीर दास जैसे कॉमेडियन भी इस इकोसिस्टम का हिस्सा हैं, जो अपनी फिल्मों में अश्लीलता पेश करते हैं, महिलाओं के खिलाफ अश्लील डायलॉग (Obscene Dialogue) बोलते हैं, अश्लील बातें करते हैं, फिर दुनिया के सामने मंच पर खड़े होते हैं और भारत में महिलाओं की स्थिति पर कवितायें पढ़ते हैं। ये घटिया और अश्लील फिल्में इस देश में बड़े आराम से रिलीज हो जाती हैं, फिर भी वे विदेश जाकर कहते हैं कि भारत इतना असहनीय है कि वहां आप मंच पर किसी से मजाक भी नहीं कर सकते।
देश के खिलाफ अश्लीलता, हिंसा और दुष्प्रचार से भरी सामग्री रचनात्मक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर ओटीटी प्लेटफॉर्म के जरिये आपके बच्चों तक पहुंचती है। फिर भी ये लोग भारत को असहिष्णु मानते हैं।
अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर हिंदुओं और हिंदू धर्म का मजाक भी उड़ाया जाता है। लेकिन किसी दूसरे धर्म के नाम पर ऐसा कोई नहीं करता। देवताओं पर अश्लील चुटकुले तो आसानी से बन जाते हैं, लेकिन सोचिये अगर किसी दिन कोई कॉमेडियन पैगम्बर मोहम्मद (Prophet Muhammad) के बारे में कुछ कहे तो क्या होगा?
अगर कोई इस्लाम या किसी अन्य धर्म के खिलाफ कुछ भी कहता है, तो लोग कहते हैं कि ऐसा कहने की क्या जरूरत थी, आप जानते हैं कि ये लोग ये सब बर्दाश्त नहीं करते हैं। आपको याद होगा कि पेरिस के अखबार शार्ली एब्दो (Charlie Hebdo) के साथ क्या हुआ था। तब भी लोगों ने कहा था कि इस अखबार को पैगंबर मुहम्मद के कार्टून छापने की क्या जरूरत थी, इस अखबार ने अपनी मौत को खुद ही न्यौता दिया।
फिर इनमें से कुछ मुट्ठी भर लोग भी इस्लाम को असहिष्णु कहने की हिम्मत नहीं कर सकते थे। लेकिन वे भारत को असहिष्णु कहने में एक सेकंड भी बर्बाद नहीं करते।