न्यूज डेस्क (शौर्य यादव): हर साल 9 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस (International Anti Corruption Day) मनाने की परम्परा 31 अक्टूबर 2003 से शुरू हुई। किसी भी मुल्क में भ्रष्टाचार सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक पक्षों को खोखला करता है। जिसका सीधा नुकसान आव़ाम को भुगतना पड़ता है। इसकी शुरूआत संयुक्त राष्ट्र की अगुवाई में हुई थी। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) और संपूर्ण वैश्विक समुदाय (UNODC) विश्वव्यापी भ्रष्टाचार के आंकड़े जुटाते है और इसके प्रति जागरूकता फैलाने का भी काम करते है।
यूनाइटेड नेशन द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक प्रतिवर्ष 1 ट्रिलियन डॉलर के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष ट्रांजैक्शन घूस देने के लिए की जाती है। इन पैसों की मदद से आम जनता और सरकारों को 2.6 ट्रिलियन की सीधा नुकसान होता है। यूएनडीपी के रिपोर्ट के अनुसार तीसरी दुनिया के विकासशील देशों में रिश्वत और भष्ट्राचार के देन-लेन में 10 गुना पैसे की खपत होती है। जबकि कायदे से इन पैसों का इस्तेमाल आधिकारिक तौर पर विकास कार्यों के लिए होना चाहिए था। इन दिन की थीम को ‘यूनाइटेड अगेंस्ट करप्शन (United against corruption) के आधार पर रखा गया है।
संयुक्त राष्ट्र ने इस मुद्दे को सतत विकास लक्ष्यों में जोड़ रखा है। जिसमें युवाओं की सक्रिय भूमिका को सुनिश्चित करते हुए, इसका समर्थन साल 2030 तक बनाये रखना है। शोध कार्यों द्वारा संयुक्त राष्ट्र की कई एजेंसियां विभिन्न देशों में पारदर्शी प्रशासन, रिश्वतखोरी, घूस और भष्ट्राचार के आंकड़ों का विश्लेषण कर उनको रैकिंग देती है। पिछले कई सालों की रिपोर्ट पर नज़र डाले तो डेनमार्क, फिनलैंड, स्विट्जरलैंड, सिंगापुर, न्यूज़ीलैंड और स्वीडन इस रैकिंग के सर्वोच्च पायदान पर काब़िज है, जहां भ्रष्टाचार के मामले लगभग ना के बराबर है।
इस रैकिंग में जो देश ऊंचे पायदानों पर काब़िज है, वहां जीवन प्रत्याशा, जीडीपी, मेडिकल व्यवस्थायें, लोकतांत्रिक माहौल (Democratic environment) और प्रेस की स्वतन्त्रता भी काफी बेहतरीन है। साथ ही आम जनता का जीवन स्तर भी आला दर्जे का है। इन्हीं बातों के मद्देनज़र संयुक्त ने अन्तर्राष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस की अवधारणा का रखा और उसे हासिल करने के लिए इस दिन की बुनियाद रखी। भारत में भष्ट्राचार पर नकेल कसने के लिए CVC, ACB, लोकपाल, और RTI जैसे हथियार है। बावजूद इसके लिए लचर प्रशासनिक रवैये के कारण ये सभी अपाहिज संस्थान में तब्दील हो गये है। भारत में घूसखोरी रोकने के लिए सोशल मीडिया नया हथियार बनकर सामने आया। जिसकी वजह से इन मामलों पर कुछ हद तक कार्रवाई होने लगी है।