एक बार भगवान के मन में आया कि आज गोपियों को अपना ऐश्वर्य दिखाना चाहिये। ये सोचकर जब भगवान निकुंज में बैठे थे और गोपियाँ उनसे मिलने आ रही थी तब भगवान कृष्ण विष्णु के रूप चार भुजाएँ प्रकट करके बैठ गये। जिनके चारों हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म था।
गोपियाँ भगवान को ढूँढती हुई एक निकुंज (Nikuj) से दूसरे निकुंज में जा रही थी। तभी उस निकुंज में आयी जहाँ भगवान बैठे हुए थे, दूर से गोपियों ने भगवान को देखा और बोली हम कब से ढूँढ रही है और कृष्ण यहाँ बैठे हुए है। जब धीरे-धीरे पास आयी तो और ध्यान से देखा तो कहने लगी अरे! ये हमारे कृष्ण नहीं है। इनकी सूरत तो कृष्ण की ही तरह है, लेकिन इनकी तो चार भुजाएँ है ये तो वैकुंठ वासी विष्णु है।
सभी गोपियों ने दूर से ही प्रणाम किया और आगे बढ़ गई, और बोली चलो सखियों कृष्ण तो इस कुंज में भी नहीं है कही दूसरी जगह देखते है। ये प्रेम है जहाँ साक्षात् भगवान विष्णु भी बैठे है तो ये जानकर कि ये तो विष्णु है कृष्ण नहीं गोपियाँ पास भी नहीं गयी।
भगवान कृष्ण ने सोचा गोपियों ने तो कुछ कहा ही नहीं, अब राधारानी जी के पास जाना चाहिये, ये सोचकर भगवान कृष्णा वैसे ही विष्णु के रूप में उस निकुंज में जाने लगे जहाँ राधारानी (Radharani) बैठी हुई थी। दूर से ही भगवान ने देखा राधा रानी जी अकेले बैठी हुई है, तो सोचने लगे राधा को अपना ये ऐश्वर्य दिखाता हूँ, और धीरे धीरे उस ओर जाने लगे लेकिन ये क्या जैसे-जैसे कृष्ण राधा रानी जी के पास जा रहे थे वैसे वैसे उनकी एक के करके चारों भुजायें गायब होने लगी और विष्णु के स्वरूप से कृष्ण रूप में आ गये,जबकि भगवान ने ऐश्वर्य को जाने के लिये कहा ही नहीं। वो तो स्वतः ही चला गया।
जब कृष्ण राधा रानी जी के पास पहुँचे तो पूरी तरह कृष्ण रूप में आ गये। अर्थात वृंदावन (Vrindavan) में अगर कृष्ण चाहे भी तो अपना ऐश्वर्य नहीं दिखा सकते क्योंकि उनके ऐश्वर्य रूप को वहाँ कोई नहीं पूछता यहाँ तक कि राधा रानी के सामने तो ठहरता ही नहीं, राधा रानी जी के सामने तो ऐश्वर्य बिना कृष्ण की अनुमति के ही चला जाता है।