नागरिकता संशोधन कानून के देशव्यापी विरोध के बीच सरकार के समर्थक मित्र निरंतर यह सवाल कर रहे हैं कि जब देश के प्रधानमंत्री ने साफ़ कर दिया है कि सरकार की देश में एन.आर.सी लाने की कोई योजना नहीं है तो मानवीयता के हित में संसद द्वारा पारित नागरिकता संशोधन कानून के विरोध का क्या औचित्य है ? उनकी सोच है कि इसके विरोध में खड़े लोगों ने इसे समझा ही नहीं है और विपक्ष के बहकावे मे देश में अस्थिरता पैदा कर रहे हैं।
यह भी कि विपक्षी दल और देश के तमाम मुसलमान पाक, बांग्लादेश, अफगानिस्तान जैसे इस्लामी देशों से धार्मिक प्रताड़ना का शिकार होकर भारत आए हिंदू, सिख, ईसाई, जैन आदि अल्पसंख्यक शरणार्थियों के विरोध में खड़े हैं। फिलहाल हम एन.आर.सी पर चर्चा नहीं करें, लेकिन सवाल तो तब भी रह जाता है कि क्या इस्लामी देशों के प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को देश की नागरिकता देने के लिए सचमुच ऐसे किसी कानून की ज़रूरत थी ? हर सरकार द्वारा किश्तों में अबतक ऐसे हज़ारों लोगों को देश की नागरिकता दी जा चुकी है। लाखों आवेदन सरकारी कार्यालयों की धूल फांक रहे हैं।
ऐसे सभी आवेदनों की समीक्षा कर शरणार्थियों को मानवीय आधार पर बिना शोरगुल के भी नागरिकता दी जा सकती थी। न विपक्ष इसके विरोध में खड़ा है और न देश के मुसलमान ही इसकी मुख़ालफ़त कर रहे हैं। एक धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म के आधार पर विभेद करने वाले नागरिकता संशोधन कानून की ज़रूरत नहीं थी। यह कानून हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच खाई बढ़ा कर मतों के ध्रुवीकरण के उद्देश्य से लाया गया है। इसके पीछे अगर दूसरे देशों में प्रताड़ित अल्पसंख्यकों के लिए संवेदना और मानवीय सोच ही होती तो पड़ोसी म्यांमार के भीषण धार्मिक नरसंहार के बीच अपनी जान बचाकर बांग्लादेश के रास्ते भागकर भारत आए रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों ने ही क्या कसूर किया था ?
अगर सरकार देश के संविधान और प्रबल जनमत की उपेक्षा कर इस कानून को लागू करने की अपनी ज़िद पर अड़ी रही तो सर्वधर्म समभाव, अनेकता में एकता और उदारता के लिए जाना जाने वाला यह देश अपनी आत्मा ही खो बैठेगा।
साभार- ध्रुव गुप्त की फेसुबक वॉल से
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