कांग्रेस अध्यक्ष के पूर्णकालिक पद (Full Time Post of Congress President) को लेकर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने अभी तक “अपना मन नहीं बनाया है” और सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने कांग्रेस अध्यक्ष पद नहीं लेने के लिये स्वास्थ्य कारणों का हवाला दे रही है, अटकलें लगायी जा रही हैं कि 23 साल बाद गैर-गांधी शख़्स कांग्रेस पार्टी की कमान संभाल सकता है, जिसका नाम है अशोक गहलोत।
सोनिया गांधी द्वारा गहलोत (Ashok Gehlot) को पार्टी में शीर्ष पद देने की खबरें राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में उनकी बैठक के बाद सामने आयी, जिसके एक दिन बाद राजस्थान (Rajasthan) के सीएम ने कहा कि पार्टी राहुल गांधी के कांग्रेस प्रमुख के तौर पर लौटने के पक्ष में थी।
अगर गांधी परिवार (Gandhi Family) के समर्थन वाले 71 वर्षीय गहलोत अपना नामांकन दाखिल करते हैं तो पुख़्ता तौर पर मुमकिन है कि जी-23 गुट भी उन्हें चुनौती देने के लिये उम्मीदवार खड़ा कर सकता है।
सोनिया के पूर्णकालिक अध्यक्ष के रूप में लौटने और गहलोत समेत दो-तीन कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति की एक और संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।
अगर ऐसा होता है तो गांधी परिवार न सिर्फ नेतृत्व के लंबे समय से लंबित मुद्दे से छुटकारा पा रहा होगा, बल्कि नेहरू-गांधी परिवार से बाहर के शख़्स को पार्टी प्रमुख बनाकर परिवारवाद और वंशवाद की राजनीतिक आलोचना से भी छुटकारा पा सकेगा।
अगर सचिन पायलट (Sachin Pilot) या अशोक गहलोत में से किसी एक को कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर नियुक्त किया जाता है तो ये नेतृत्व के लिये राजस्थान में दोनों नेताओं के बीच सत्ता संघर्ष को हल करने का रास्ता भी साफ कर सकता है, जहां अगले साल चुनाव होने वाले है।
कहा जाता है कि गांधी परिवार ने पायलट से वादा किया था कि वो राज्य में चुनाव से एक साल पहले उन्हें मुख्यमंत्री पद पर प्रमोट करेंगे।
कट्टर वफादार और ओबीसी चेहरा होने के अलावा गहलोत हिंदी भाषी इलाके में कांग्रेस का बड़ा चेहरा हैं, जहां पार्टी भाजपा के खिलाफ साल 2024 की लड़ाई से पहले अपनी खोई हुई जमीन को वापस पाने के लिये लगातार संघर्ष कर रही है।
हालांकि माना जा रहा है कि गहलोत को इस पेशकश के लिये तैयार नहीं होगें, क्योंकि पार्टी प्रमुख के तौर पर कार्यभार संभालने की स्थिति में उन्हें सीएम का पद छोड़ना पड़ सकता है।
अगर कोई गैर-गांधी जिसे शीर्ष नेतृत्व द्वारा “रिमोट-नियंत्रित” किया जाता है, को कांग्रेस अध्यक्ष के पूर्णकालिक पद के लिये चुना जाता है, और गांधी परिवार इस पद को लेने से इनकार करता हैं तो संगठनात्मक चुनाव बेमानी हो जायेगा।
हालांकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि किसी गैर-गांधी को पार्टी में शीर्ष पद पर पदोन्नत करने से पार्टी के भीतर अविश्वास की भावना पैदा होगी और ये कवायद गुटबाजी और ओहदें की लड़ाई को भी बढ़ा सकती है। पार्टी अध्यक्ष के रूप में गैर-गांधी का चुनाव राहुल गांधी के खिलाफ अविश्वास की हवाओं पर पुख़्ता मोहर लगाने का काम करेगी। तकनीकी रूप से कहें तो किसी गैर-गांधी के कांग्रेस का अध्यक्ष बनाना वाकई काबिले तारीफ कोशिश है, जो बहुत अच्छी है, लेकिन इसमें कुछ तकनीकी समस्या भी है।
G-23 को देखते हुए गुट द्वारा पार्टी के अंदर प्रतियोगिता के लिये मजबूर होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। हालांकि कांग्रेस के संगठनात्मक चुनावों में असल मुकाबला 2001 में देखा गया, जब जितेंद्र प्रसाद (Jitendra Prasad) ने सोनिया के खिलाफ चुनाव लड़ा लेकिन 7,448 मतों से हार गये।
लेकिन अभी ये कहना बेहद मुश्किल है कि जी-23 का उम्मीदवार कौन होगा? सामने आ रही रिपोर्टों में कहा गया है कि गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा (Ghulam Nabi Azad and Anand Sharma) जिन्होंने हाल ही में पार्टी नेतृत्व के खिलाफ साफतौर पर किये विरोध में क्रमशः जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश (Jammu and Kashmir and Himachal Pradesh) में पार्टी पदों को कबूल करने से इनकार कर दिया था, लेकिन मौजूदा हालातों में फिलहाल दोनों ही अध्यक्ष पद के लिये चुनाव लड़ने के लिये अपना दावा पेश करते नहीं दिख रहे हैं।
चाहे आजाद हों या शर्मा दोनों ही गांधी परिवार के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन उन्हें पार्टी में ओहदों को लेकर काफी समस्या है। दोनों ही केवी वेणुगोपाल और रणदीप सिंह सुरजेवाला (KV Venugopal and Randeep Singh Surjewala) को मिल रही तव़्ज़्जों के खिलाफ खड़े है।
ऐसे में गुट के पास शशि थरूर या मनीष तिवारी (Shashi Tharoor or Manish Tewari) के विकल्प बचे हुए दिख रहे हैं। हालांकि ये समझने की जरूरत है कि चुनाव लड़ना और जीतना दो अलग-अलग बातें हैं। निर्वाचक मंडल की बनावट और पार्टी पर परिवार की पकड़ को देखते हुए जिस उम्मीदवार को गांधी परिवार का समर्थन हासिल होगा उसे पुख़्ता तौर पर फायदा पहुँचेगा।