विश्वव्यापी मुस्लिमों का रूख़ और Modern France

देश के मुसलमान फ्रांस की हत्या पर गलत स्टैंड (Wrong stand on France murder) ले रहे हैं। वे खुले दिल से हत्याओं की निंदा नहीं कर पा रहे। “हत्या तो गलत है ही…” लिखने के साथ “पर”….”लेकिन” या “किंतु-परन्तु” जोड़ कर हत्या के जस्टिफिकेशन की कोशिश करते हुए दिखने लगते हैं। हत्या सिर्फ हत्या है, एक बर्बर अपराध। कोई कार्टून कितना भी गलत बनाया जाए या छापा जाए, किसी हत्या को जस्टिफाई नहीं कर सकता। कार्टून पर सिर्फ उस देश के कानून के अनुसार कार्रवाई की जा सकती है, जहां वह कार्टून बना या छपा है। यही आधुनिक युग का मानदंड है। मुस्लिम समुदाय की जो प्रतिक्रिया हो रही है उससे दुनिया भर के मुस्लिम समुदाय को ही नुकसान होगा। खासकर प्रतिक्रियावादी दक्षिणपंथी राजनीति (Reactionary right wing politics) करने वाले दलों को मजबूती मिलेगी।

फ्रांस सरकार ने बयान जारी कर साफ-साफ कहा है कि सरकार किसी धर्म के खिलाफ नहीं, बल्कि धार्मिक कट्टरपंथ (Religious fundamentalism) के खिलाफ है। इस विषय में फ्रांस के इतिहास को भी ध्यान रखा जाना चाहिए। फ्रांसीसी लोग के अपने वोलाटाइल टेम्परामेंट (Volatile temperament) के लिए प्रसिद्ध हैं। फ्रांसीसी क्रांति का इतिहास खूनखराबे से भरा हुआ है। वहां अभिव्यक्ति की आजादी बड़ी कुर्बानियों के बाद हासिल की गई है जो बड़ी आक्रामक है तो उतनी ही फ्रांसीसी लोगों को प्रिय भी है। वे उसे हर कीमत पर बचा कर रखेंगे। यूरोप में आधे से अधिक आबादी किसी धर्म में विश्वास नहीं रखती। उनके लिए सभी धर्म की कथाएं किस्सा-ए-तोता मैना या किस्सा हातिमताई से ज्यादा महत्व नहीं रखतीं जो तब रची गईं थीं जब मानव बुद्धि और ज्ञान की शैशव अवस्था में था। जिस तरह धार्मिक व्यक्ति को अपनी कथाओं एवं अवधारणाओं में विश्वास को प्रकट करना और उनका प्रचार करना अभिव्यक्ति की आजादी है, उसी तरह उन लोगों के लिए धार्मिक कथाओं और अवधारणाओं में अविश्वास प्रकट करना और उन पर हास्य-परिहास करना अभिव्यक्ति की आजादी है। गूगल कर आप देख सकते हैं जीजस समेत ईसाई धर्म पर कितने चुटकले बनाये गए हैं। भारत में तो यह काम शुरु से होता रहा है। ऋग्वेद तक में धार्मिक कर्मकांड का उपहास मिलता है। कबीर ने हर धर्म के कर्मकांडो की जमकर खिल्ली उड़ाई है। इसी तरह हरिमोहन झा की ‘खट्टर काका’ का तीक्ष्ण व्यंग्य आज लिखा जाता तो शायद हिन्दू कट्टरपंथी न पचा पाते।

ईशनिंदा नामक कोई तत्व आधुनिक फ्रांस के जीवन में नहीं है। मौलाना वहीद्दुदीन के अनुसार ईशनिंदा की कोई अवधारणा (The concept of blasphemy) इस्लाम की मूल पुस्तकों में भी नहीं है। आज के परिदृश्य में खास जरूरत है कि भारतीय मुसलमान फ्रांस के आतंकवादी कृत्यों और इस्लामी कट्टरपंथियों की कार्यवाहियों से स्पष्ट रूप से अपने को अलग रखें और अलग दिखें। उनके साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ दिख कर वे हिंदू कट्टरपंथी ताकतों के हाथ ही मजबूत करेंगे और कुछ नहीं। ध्यान रखें सिरफिरे लोगों के आपराधिक कृत्य तभी सिरफिरे लोगों के कृत्य माने जाएंगे, जब वे अलग-थलग पड़े हुए दिखेंगे।

साभार- मनोज खरे

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