नई दिल्ली (यथार्थ गोस्वामी): दुर्गा पूजा (Durga Puja) के नौवें दिन माँ के स्वरूप को सिद्धिदात्री (Siddhidatri) रूप में पूजा जाता है। माँ की कृपादृष्टि से सभी साधकों और उपासकों को अष्ठ सिद्धियों की सहज़ प्राप्ति हो जाती है। इसलिए माँ का नाम सिद्धिदात्री पड़ा है। देवी पुराण में उल्लेखित है कि माँ की ही असीम कृपा से भगवान शंकर को ये सिद्धियां प्राप्त हुई, जिसके कारण उनका शरीर अर्द्धनारीश्वर हो गया। माँ की साधना से अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व इन सभी सिद्धियों पर साधकों का नियन्त्रण हो जाता है। माँ की पूजा वैदिक विधि विधान से करने पर जातकों की कुंडली का छठा भाव और ग्यारहवां भाव सशक्त हो उठता है।
माँ काम का नाम लेकर काम करने से सभी दुष्कर कार्य सहज ही सिद्ध हो जाते है। कमलासन पर विराजमान माँ सिद्धिदात्री का स्वरूप चर्तुभुजी है। माँ ऊपर वाले दाहिने हाथ में चक्र नीचे वाले में गदा है। बायें की तरफ वाले ऊपरी हाथ में शंख और नीचे वाले हाथ में कमल का फूल है। दुर्गा पूजन के समस्त विधान माँ की पूजा के साथ सम्पन्न होते है। माँ के आशीर्वाद से ही साधकों की लौकिक और परालौकिक कामनाओं की पूर्ति होती है।
माँ दुर्गा के नौवें स्वरूप सिद्धिदात्री की पूजा विधि
माँ के पूजन के विधान के साथ यज्ञ कर व्रत पारायण करने का विधान जुड़ा हुआ है। साथ ही इन दिन साधकों को कंजकों को यथाशक्ति भोजन करवाकर दान-दक्षिणा देनी चाहिए। काठ की चौकी को गंगाजल से शुद्ध करके उस पर वस्त्रासन बिछाकर माता की तस्वीर और श्रीविग्रह को स्थापित करें। माँ की पूजा का मानस संकल्प लेते हुए माँ के इन मंत्रों का जाप करें। ॐ सिद्धिदात्री देव्यै नमः और ऊँ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमो नम:। तदोपरान्त पूजा स्थल की शुद्धि गंगा जल या गोमूत्र से करें। ग्राम देवता, कुलदेवता, नवग्रह, नक्षत्रों और दिग्पालों का आवाह्न करें। सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि, सेव्यमाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी। मन्त्र का जाप करते हुए पूजा आरम्भ करें। तांबे या मिट्टी के घड़े में स्वच्छ जल भरकर उस पर नारियल स्थापित करें। दीपक-धूप-गंध-गुग्गल जलाकर नैवेद्य माँ के चरणों में समर्पित करें। कंचकों के लिए तैयार भोग (चना-हलवा-पूरी-खीर-नारियल-केला) को लगाये। लाल चुनरी और श्रृंगार का सामान (कुमकुम-काजल-बिंदी-मेहंदी-आलता) माँ श्रीचरणों में चढ़ाये। सकल मनोकामना पूर्ति के लिए माँ के इस मंत्र का जाप करे ‘विद्या: समस्तास्तव देवि भेदा: स्त्रिय: समस्ता: सकला जगत्सु। त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुति: स्तव्यपरा परोक्ति:।।’ भूमि खरीदने में सफलता पाने और घर बनाने की दशा शीघ्र बनाने के लिए माँ के इस मंत्र का जाप करे। गृहीतोग्रमहाचक्रे दंष्ट्रोद्धृतवसुन्धरे। वराहरूपिणि शिवे नारायणि नमोऽस्तुते।। यदि किसी उपासकों की संतान प्राप्ति करने में बाधा आ रही हो तो माँ के इस मंत्र की माला का जाप 21 बार करे। नन्दगोप गृहे जाता यशोदा-गर्भ-सम्भवा। ततस्तौ नाशयिष्यामि, विन्ध्याचल निवासिनी।। सक्षम आचार्यों की उपस्थिति में यज्ञ और होम करे। विधान पूर्ण होने पर सम्पूर्ण नवव्रतों में किसी तरह की त्रुटि रहने पर माँ से क्षमायाचना कर ले। अगले दिन घट का प्रवाह कर व्रत का पारायण करें।
माँ सिद्धिदात्री का स्रोत पाठ
कंचनाभा शखचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।
स्मेरमुखी शिवपत्नी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकारं भूषिता।
नलिस्थितां नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोअस्तुते॥
परमानंदमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
विश्वकर्ती, विश्वभती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्व वार्चिता विश्वातीता सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी।
भव सागर तारिणी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनी।
मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
माँ सिद्धिदात्री का ध्यान करने के लिए जाप मंत्र
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥
स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।
शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम्॥
पटाम्बर, परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदना पल्लवाधरां कातं कपोला पीनपयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां श्रीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
माँ सिद्धिदात्री कवच
ओंकारपातु शीर्षो मां ऐं बीजं मां हृदयो।
हीं बीजं सदापातु नभो, गुहो च पादयो॥
ललाट कर्णो श्रीं बीजपातु क्लीं बीजं मां नेत्र घ्राणो।
कपोल चिबुको हसौ पातु जगत्प्रसूत्यै मां सर्व वदनो॥
या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।